Kapal Mochan Mela: 10 लाख से ज्यादा पंजाबी श्रद्धालु पहुंचे कपाल मोचन मेला, गुरु नानक जयंती पर किया शाही स्नान
बिलासपुर का कपाल मोचन मेला देशभर में मशहूर है. कपाल मोचन यमुनानगर जिले में सिंधुवन में बिलासपुर के पास स्थित है.
पंजाब के अलग-अलग शहरों से आए लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. मेले में तीन सरोवर है तीनों सरोवर में लोगों ने स्नान किया. इसके साथ ही कपाल मोचन मेला का समापन हुआ. पंजाब से आए हुए श्रद्धालु अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे. मेला प्रशासन के अनुसार लगभग 10 से 12 लाख लोग मेले में पहुंचे ज्यादातर लोग पंजाब से आए थे. मेले में हर प्रकार के पुख्ता प्रबंध किए गए थे.
गुरु गोविंद सिंह जी अस्त्र-शस्त्र धोए थे
यमुनानगर बिलासपुर के एसडीएम ने कहा, "कपाल मोचन में दो गुरुद्वारा साहिब है. जिसमें नौवीं पातशाही दसवीं पातशाही एक ही परिसर में है. यहां की आस्था है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने लड़ाई के बाद यहां पर आकर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे और लोग उसी सरोवर में स्नान करते हैं. गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर रात्रि 12:00 बजे लोग स्नान कर अपनी यात्रा को सफल बनाते हैं. श्रद्धालुओं के मन में इस स्थान के प्रति अटूट श्रद्धा भावना है. उनका मानना है कि यहां पर जो भी मनोकामना मानी जाए वह पूर्ण होती है. पिछले 22 से 25 सालों से लोग लगातार मेले में आ रहे हैं.
कपाल मोचन मेला देश भर में मशहूर
बिलासपुर का कपाल मोचन मेला देश भर में मशहूर है. ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल कपाल मोचन विभिन्न वर्गो, धर्मो तथा जातियों की एकता का प्रतीक है. कपाल मोचन यमुनानगर जिले में सिंधु भवन में बिलासपुर के पास स्थित है. देश भर से लाखों की संख्या में हिन्दू, मुस्लिम तथा सिख श्रद्धालु हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के अवसर पर यहां पर लगने वाले विशाल मेले में भाग लेते है.
भगवान शिव ने ब्रह्म कपाली का दोष दूर किया
पार्वती जी के कहने पर शिव जी ने सरोवर में स्नान करने पर उनकी ब्रह्म हत्या का दोष दूर हो गया था. शिव जी ने इसके बारे में गाय के बछड़े से पूछा, तुम्हे इस तीर्थ का कैसे पता लगा. तब बछड़े ने भगवान शिव को अपने पूर्व जन्म में मनुष्य होने तथा इसी स्थान पर तप कर रहे दुर्वासा ऋषि का मजाक उड़ाने पर दिए गए श्राप से पशु बनाने तथा अंतत: शिव-पार्वती जी के इस स्थान पर आगमन पर और उनके दर्शन से श्राप मुक्त होने की कथा विस्तार से सुनाई. ऐसी मान्यता है कि शिव भगवान के दर्शन के पश्चात गौ बछडा दोनों मुक्ति पाकर बैकुंठ धाम चले गए.
वेद व्यास की कर्म भूमि बिलासपुर
धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचयिता महर्षि पराशर के पुत्र भगवान वेद व्यास की कर्म भूमि भी बिलासपुर रही है. उन्हीं के विश्राम स्थान का नाम व्यास आश्रम पड़ा. समय बीतने के साथ-साथ बकरवाला तथा कुरडी खेडा गांव के लोग व्यास आश्रम के साथ रहने लगे. इस स्थान का नाम व्यासपुर पड़. जो कालांतर में बिलासपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. व्यास आश्रम के पूर्व में एक मील की दूरी पर तीर्थ गंगा सागर(चंदाखेडी तीर्थ), रामसर (पीरूवाला तीर्थ) तथा श्री कुंड तीर्थ एवं गंगा मंदिर जगाधरी स्थित है.
व्यास आश्रम के पश्चिम में सरस्वती मंदिर है, जबकि उत्तर में तीर्थ कपाल मोचन स्थित है. इस पवित्र धाम में सोम सरोवर के अतिरिक्त ऋण मोचन, धनौरा रोड पर पूर्व दिशा की और सूर्यकुण्ड स्थित है. प्राचीन समय में यहा चन्द्र कुण्ड होने की मान्यता भी है, परन्तु इस समय इसके अवशेष नहीं है.
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