नई दिल्ली: अयोध्या के राम मंदिर पर फ़ैसला कभी भी आ सकता है. कहा जा रहा देश की सबसे बड़ी अदालत का ये सबसे बड़ा फ़ैसला होगा. हर तरफ़ इन दिनों राम मंदिर की ही चर्चा है. संघ, सरकार से लेकर विपक्षी पार्टियां तक... सब इसी माथापच्ची में जुटी हैं कि फ़ैसले के बाद क्या होगा, क्या स्टैंड लिया जाए. अयोध्या समेत यूपी में अलर्ट घोषित कर दिया गया है. फ़ील्ड में तैनात सभी अफ़सरों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. सोशल मीडिया में आपत्तिजनक पोस्ट करने वालों की लिस्ट बन रही है. अयोध्या को पुलिस छावनी बना दिया गया है. किसी भी तरह के जुलूस और भीड़ पर रोक लगा दी गई है.


ठीक ऐसा ही माहौल दस साल पहले भी था.. हर तरफ़ किसी अनहोनी का डर था. पता नहीं फ़ैसले के बाद क्या होगा? राम मंदिर केस में 30 सितंबर 2010 को हाई कोर्ट से फ़ैसला आना था. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के तीन जजों को फ़ैसला सुनाना था. उन दिनों यूपी में मायावती की सरकार थी. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहे. कहीं भी हिंदू मुस्लिम झगड़ा न हो. मायावती पहली बार अकेले अपने दम पर यूपी की मुख्य मंत्री बनी थीं.. उनकी पार्टी बीएसपी की जीत को नये सामाजिक समीकरण की जीत बताया जा रहा था. सत्ता में रहने के बावजूद 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी कमाल नहीं कर पाई. ऐसे हालात में अयोध्या के फ़ैसले के बाद अमन चैन बना रहे, ये अग्निपरीक्षा थी.


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हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद कहीं भी एक पत्ता तक नहीं हिला. यूपी के किसी भी गाँव, क़स्बे या शहर में कोई विवाद नहीं हुआ. कहीं से भी साम्प्रदायिक तनातनी की एक भी खबर नहीं आई. कोई हिंसा नहीं हुई. न तो किसी ने जश्न मनाया, न ही किसी ने मातम. न ही कहीं ढोल नगाड़े बजे, न ही कोई छाता पीट पीट कर रोया. हर तरफ़ शांति बनी रही. मायावती सरकार का फ़ार्मूला काम कर गया. अब उसी तरह की तैयारी यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की भी है.


मैं उन दिनों लखनऊ में था. राम मंदिर के फ़ैसले को मीडिया में कैसे बताया और दिखाया जाए, उसके लिए भी एडवाइज़री जारी की गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच कैंपस के पास एक टेंट लगाया गया था. सभी मीडिया वालों के लिए वहीं इंतज़ाम किया गया था. फ़ैसला सुनाने के समय पत्रकारों के कोर्ट में जाने पर रोक लगा दी गई थी. मीडिया वालों के लिए फ़ैसले की 700 कॉपियां बनाई गई थीं. देश- विदेश के मीडिया संस्थानों को कोर्ट का आदेश मेल भी किया गया था. सभी पक्के वकीलों को टेंट में आकर इंटरव्यू देने को कहा गया था. तब आज के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद हिंदू पक्ष की पैरवी करने आए थे.


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अयोध्या के राम मंदिर पर इतना बड़ा फ़ैसला आ गया और यूपी में कहीं एक पत्थर भी नहीं फेंका गया. इसके लिए ज़बरदस्त तैयारी की गई थी. राज्य के कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह को मायावती ने पूरी ज़िम्मेदारी सौंप दी थी. करमवीर सिंह तब डीजीपी हुआ करते थे. लंबी बैठकों के बाद तय हुआ कि 700 कंपनी केन्द्रीय पुलिस बल केन्द्र से माँगी जाए. लेकिन मिली सिर्फ़ 50 कंपनी. ऐसे में यूपी सरकार ने कम्यूनिटी पुलिसिंग का प्लान बनाया. राज्य के तीन ज़ोन में बांट दिया गया.


एडीजी बृजलाल. डीजीपी करमवीर सिंह और गृह सचिव फतेह बहादुर को एक एक ज़ोन की ज़िम्मेदारी दी गई. इन सबने अपने मातहत अधिकारियों को गांव, क़स्बों और मोहल्लों में जाकर लोगों को जागरूक करने की ज़िम्मेदारी दी. ये बताया गया कि फ़ैसला जो भी हो, सब धैर्य बनाये रखेंगे. हर थाने में सुरक्षा समितियाँ बनाई गईं. राज्य भर में धारा 144 लगा दी गई.


सभी स्कूल कॉलेज बंद करा दिए गए थे. माहौल अघोषित कर्फ़्यू जैसा था. सारे बाज़ार और दुकानें बंद करा दी गई थीं. यूपी की जनता ने पुलिस वालों के साथ मिल कर कहीं भी कोई विवाद नहीं होने दिया. फ़ैसले के बाद मुलायम सिंह ने भले ही भड़काऊ बयान दिया, लेकिन किसी ने इस पर कान नहीं दिया.. कहते हैं इतिहास दुहराता है. एक बार देश उसी मोड़ पर खड़ा है.