सिम्डेगा (झारखंड): 'भात भात'...... बीते 4 दिनों से भूख से तड़प रही 11 साल की संतोषी ने जब अपने जीवन की अंतिम सांस ली तो ये शब्द उसकी जुबां पर थे. दरअसल भात झारखंड में उबले हुए चावलों को कहते हैं. संतोषी की मां कोयली देवी बताती हैं कि आधार से राशन कार्ड लिंक न होने के कारण उन्हें राशन नहीं मिला और उनकी बेटी की भूख से मर गई. कोयली देवी की कमाई हफ्ते में 80 रूपए की है जो वो दातून बेच कर कमाती हैं.


कोयली देवी बताती हैं, "मैं जब वहां चावल लेने गई तो मुझे बताया गया कि राशन नहीं दिया जाएगा." वो आगे कहती है, ''मेरी बेटी 'भात-भात' कहते कहते मर गई."


कोयली देवी ने एक एक्टिविस्ट को बताया कि बीती 28 सितंबर को उनकी बेटी की मौत हो गई. मरने से पहले संतोषी 4 दिनों से भूखी थी. आधार कार्ड से राशन कार्ड लिंक न होने के कारण पिछले फरवरी से ही कोयली देवी के परिवार को सरकारी राशन नहीं मिल रहा था.


हर रोज संतोषी अपने स्कूल के मिड-डे मील में खाना खाती थी. दुर्गा पूजा के कारण स्कूल में छुट्टी थी और संतोषी खाना नहीं खा सकी. अपनी मौत से 24 घंटे पहले तक संतोषी ने पेट में भयकंर दर्द की शिकायत की थी.


जल्डेगा ब्लॉक के बीडीओ ने हिंदुस्तान टाइम्स से इस बात की पुष्टि की है कि परिवार को आधार कार्ड न बना होने के कारण सरकारी सहायता नहीं मिल रही थी. हालांकि, उन्होंने इस बात को मानने से इंकार किया कि संतोषी की मौत भूख से हुई है. उनके अनुसार संतोषी की मौत मलेरिया से हुई है. संतोषी के पिता मानसिक रूप से बीमार हैं और वो कोई काम नहीं करते हैं. गांव के लोग उनके परिवार को मवेशी चराने के बदले में चावल जरूर देते हैं जो मां की कमाई के अतिरिक्त परिवार के भऱण पोषण का जरिया है.