इतिहास में 13 जनवरी की तारीख का महात्मा गांधी से गहरा नाता, जब पूरे देश की नजर बापू पर थी
महात्मा गांधी के जीवन का आखिरी आमरण अनशन 13 जनवरी 1948 को सुबह 11:55 बजे कलकत्ता में शुरू हुआ था. गांधी जी चाहते थे कि शरणार्थी मुस्लिम घरों पर से अपना कब्जा छोड़ दें और शरणार्थी-कैंपों में लौट जाएं.
नई दिल्ली: महात्मा गांधी का नाम ना केवल भारतीय जनमानस में बल्कि पूरी दुनिया में स्थायी छाप की तरह मौजूद है. 13 जनवरी की तारीख का गांधीजी से गहरा नाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 13 जनवरी 1948 को हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने और साम्प्रदायिक उन्माद के खिलाफ कलकत्ता में आमरण अनशन शुरू किया था. ये उनके जीवन का आखिरी अनशन था.
तब पूरे देश की नजर महात्मा गांधी के अनशन पर थी. हजारों लोग अनशन में शामिल हुए थे, जिनमें हिंदू और सिख बड़ी तादाद में थे. पाकिस्तान से आए बहुत से शरणार्थी भी इसमें शामिल हुए थे. इसके बाद 18 जनवरी 1948 को सुबह 11.30 बजे विभिन्न संगठनों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधि गांधीजी से मिले और शांति के लिए गांधीजी की शर्तें स्वीकार कर ली. इसके बाद महात्मा गांधी उपवास तोड़ने के लिए राजी हुए थे.
अनशन खत्म करने के 11 दिन बाद गांधी जी की हत्या 18 जनवरी 1948 को अपना अनशन खत्म करने के ठीक 11 दिन बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई. अपनी हत्या से तीन दिन पहले दिल्ली में शांति लाने के उद्देश्य से महरौली स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी दरगाह गए थे. उस समय दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा में जल रही थी. दरगाह छोड़ने से पहले गांधीजी ने लोगों की एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव और एकता का संदेश दिया था.
गांधीजी की हत्या की खबर पूरे देश में आग की तरह फैली. उनकी हत्या की खबर सुन लोग सन्न रह गए. सबकी आंखें नम थी, देश में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया था. 'महात्मा गांधी पूर्णाहुति' में बापू के निजी सहायक प्यारे लाल नायर ने लिखा है, "दरगाह के कुछ हिस्से को क्षतिग्रस्त देख बापू पूरी तरह टूट गए थे. यहां पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों द्वारा हमला किया गया था. उन्हें सरकार द्वारा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी दरगाह के करीब बसाया गया था."
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