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Dastan-E-Azadi: अंग्रेज जा रहे थे और दिल्ली में 10 लाख लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा

15 August Independence day: दास्तान-ए-आजादी की शुरुआत वैसे तो पहली दफा 1857 के गदर के साथ शुरू हुई थी मगर इसकी चिंगारी उस वक्त आग नहीं बन सकी.

Independence Day:  भारत को आजादी ऐसे ही नहीं मिली. देश के न जाने कितने वीर सपूतों ने इसमें अपनी जान की आहुति दी. एक ओर जहां अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का सहारा लिया. वहीं दूसरी ओर आजादी के दीवानों भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और सुखदेव ने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने में अपना जीवन कुर्बान कर दिया. दास्तान-ए-आजादी की शुरुआत वैसे तो पहली दफा 1857 के गदर के साथ शुरू हुई मगर इसकी चिंगारी आग नहीं बन सकी.

भारत छोड़ो आंदोलनः दूसरी बार मुखर होकर आजादी की लड़ाई की शुरुआत 1942 में हुई. इस बार इसे 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के नारे से जोड़ा गया. यह नारा और इसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने मुंबई में कांग्रेस अधिवेशन के साथ शुरू की थी. यह 8 अगस्त 1942 को समूचे भारत में एक साथ शुरू हुआ था.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भेजा आजादी का पैगामः नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को 1943 में संदेश भेजा था कि अब हम आजाद भारत में रहना चाहते हैं, इसलिए अंग्रेज हुकूमत देश छोड़कर वापस इंग्लैंड चली जाए. उन्होंने इसके लिए आजाद हिंद फौज का गठन भी किया. हालांकि वो अंग्रेजों के खिलाफ जंग छोड़ते उससे पहले ही ब्रिटिश सरकार के खुद के फैसले ने अपने शासन के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी. इसमें रायल इंडियन नेवी के तीन अफसरों को मौत की सजा सुनाई गई. इसके बाद दिल्ली से मुंबई तक रायल इंडियन नेवी के जवानों ने बगावत कर दी. उनके साथ लाखों की जनता सड़क पर उतर आई. अंततः अंग्रेज हुकूमत को उन्हें छोड़ना पड़ा.

अधिकांश समय कोलकाता रही राजधानीः अंग्रेंजों ने अपनी हूकूमत के दौरान अधिकांश समय अपनी राजधानी कोलकाता को ही रखा था. 1911 में पहली बार उन्होंने दिल्ली को राजधानी के रूप में स्थापित किया. यहां पर किंग जार्ज की ताजपोशी की गई. इसके बाद उन्होंने लालकिले की प्राचीर से जनता का अभिवादन करके यह दिखाने की कोशिश की कि अब वही भारत के बादशाह हैं.

अंग्रेजों के दिल में बैठ गया थाः राजधानी बनने के पहले 1857, 1903 और 1911 में अंग्रेजों ने यहां तीन अपनी बड़ी सभाएं आयोजित की थीं. बाकी समय उन्होंने लाल किले के दीवाने खास को अपनी मौज-मस्ती और नाच गाने के लिए ही इस्तेमाल किया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर जैसे आजादी के दीवानों के कारण अंग्रेजों के भीतर खौफ पैदा होने लगा था. उन्होंने अंदर ही अंदर भारत छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी. इसके बाद जब वह राजधानी दिल्ली छोड़कर जा रहे थे तो पूरे देश में लाखों लोग सड़कों पर उतरकर खुशियां मना रहे थे.     

पहली बार 16 अगस्त को फहराया था तिरंगाः भारत को आजादी वैसे तो 15 अगस्त 1947 को मिली थी. बावजूद इसके पहली बार देश में तिरंगा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 16 अगस्त को इंडिया गेट के पास पार्क में फहराया था. पंडित नेहरू ने आजादी के बाद पहली बार दिए गए भाषण में नेता जी सुभाष चंद्र बोस का नाम भी लिया. उन्होंने कहा था कि नेता जी ने पहली बार आजाद भारत का सपना देखा था. इसलिए उनका नाम लेना जरूरी है. इस दौरान दिल्ली सहित पूरे देश में लाखों लोग सड़कों पर आजादी का जश्न मनाने में झूमते गाते रहे. इसके बाद हर बार लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के तिरंगा झंडा फहराने के साथ भाषण देने परंपरा शुरु हुई.

पुरानी विरासत मिलने का प्रतीक है लालकिलाः लाल किले पर 15 अगस्त को तिंरगा फहराने का खास महत्व है. लाल किला भारतीय विरासत और सम्मान का प्रतीक है. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने कई बार इस पर अपनी हूकूमत चलाई, लेकिन अंत में भारत उसे हासिल करने में सफल रहा है. इसी कारण वहां से देश के प्रधानमंत्री ध्वाजारोहण करके परंपरा को आगे बढ़ाते हैं.    

ये भी पढ़ेंः माउंटबेटन की सीक्रेट डायरी ने खोले हिंदुस्तान की आजादी से जुड़े कई रहस्य । AZADI KA AMRIT MAHOTSAV

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