गुवाहाटी: 15 सरकारी दस्तावेज के बावजूद असम में एक मुस्लिम महिला अपनी नागरिकता की जंग हार गई है. ट्रिब्यूनल ने पहले ही उसे विदेशी घोषित कर दिया था. ऐसे में हाईकोर्ट से मिली नाकामी ने उसके सामने जिंदगी की सारी उम्मीद खत्म कर दी. बक्सा निवासी 50 वर्षीय जुबेदा बेगम को 2018 में ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था. हालांकि अपनी नागरिकता साबित करने के लिए उसने 15 सरकारी दस्तावेज दिखाए. मगर जमीन के कागजात, बैंक दस्तावेज, पैन कार्ड भी उसे भारतीय साबित नहीं कर सके.


15 दस्तावेज भी नहीं साबित कर सके नागरिकता


जुबेदा कहती है, "मैंने 1966, 1970 और 1971 का अपने पिता जावेद अली का वोटर लिस्ट ट्रिब्यूनल में पेश किया. मगर ट्रिब्यूनल को उनके पिता के साथ उसके लिंक का कोई सबूत नहीं मिला. नागरिकता साबित करने की जंग में मैंने सब कुछ दांव पर लगा दिया. मगर अब हाईकोर्ट से मिली नाकामी के बाद मेरे पास कानूनी लड़ाई के लिए कुछ भी नहीं बचा है."


महिला के पति का कहना है कि पहले ही उन्होंने कानूनी फीस अदा करने के लिए अपनी तीन बिगहा जमीन बेच दी है. अब 150 रुपये प्रतिदिन पर उनकी पत्नी को दूसरे के यहां काम कर परिवार का खर्च चलाना पड़ रहा. नागरिकता साबित करने की लड़ाई ने उनके लिए तो जैसे रही सही उम्मीद भी खत्म कर दिया है. अब सिर्फ मौत ही नजदीक दिखाई दे रही है.


गांव के प्रधान की भी काम नहीं आई गवाही


ट्रिब्यूनल से नागरिकता का दावा खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अपील की गई. हाईकोर्ट ने भी अपने पूर्व के आदेश का हवाला देते हुए उनके जमा किये दस्तावेज को नागरिकता का पर्याप्त आधार नहीं माना. जब उनसे जन्म प्रमाण पत्र मांगा गया तो उन्होंने गांव के प्रधान से एक प्रमाण पत्र बनवाकर पेश कर दिया. गवाही के लिए बुलाये गये प्रधान ने महिला को जानने और उसके रिहाइश की गवाही दी. मगर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ. पिछले साल नागरिकता पंजीकरण में महिला के परिवार का नाम नहीं आया था. पति और पत्नी दोनों को संदिग्ध वोटर घोषित कर दिया गया है.


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