झारखंड: सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन करने वाले राज्य के 7 जिलों में 18 घंटों की बिजली कटौती
संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि केंद्र सरकार गैर भाजपा शाषित राज्यों को परेशान कर रही है. राज्य सरकार इसको लेकर चिंतित है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सरकार को और कंपनी को मिलकर जल्द से जल्द इसका समाधान निकालना चाहिए.
रांची: झारखंड वो राज्य है जहां देशभर में सबसे ज्यादा कोयले का उत्पादन होता है और कोयले से ही बड़े स्तर पर बिजली का उत्पादन होता है. लेकिन ये झारखंड राज्य के लोगों पर विडंबना ही है कि इतना सब होने के बावजूद झारखंड के 7 जिलों में 18 घंटों की बिजली कटौती की शुरुआत हो गई है.
झारखंड में सबसे ज्यादा बिजली सप्लाई डीवीसी यानी कि दामोदर वैली कॉरपोरेशन की तरफ से की जाती है. डीवीसी के मुताबिक राज्य सरकार पर अभी तक कुल 4955 करोड़ रुपये बकाया है, जिसको लेकर 10 फरवरी को ही नोटिस जारी कर बता दिया गया था कि अगर समय पर पैसों का भुगतान नहीं होता है तो 7 जिलों की बिजली सप्लाई में भारी कटौती की जाएगी. ये जिले हैं- चतरा, रामगढ़, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा और हजारीबाग.
वहीं संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि केंद्र सरकार गैर भाजपा शाषित राज्यों को परेशान कर रही है. राज्य सरकार इसको लेकर चिंतित है. जल्द ही इसका समाधान निकाला जाएगा.
हालांकि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सरकार को और कंपनी को मिलकर जल्द से जल्द इसका समाधान निकालना चाहिए, जिससे आम जनता को दिक्कत न हो. राज्य सरकार को बैठकर हल निकलना चाहिए.
जानकारी के मुताबिक डीवीसी ने सोमवार की दोपहर से ही बिजली कटौती की शुरुआत कर दी थी, जिसकी वजह से होली का त्योहार भी काफी हद तक फीका पड़ गया था.
डीवीसी ने पहले ही यानी 10 फरवरी को ही अल्टीमेटम दिया था कि अगर समय पर भुगतान नहीं हुआ तो कटौती की जाएगी और हुआ भी वही. यहां तक कि राज्य सरकार ने भी जब श्वेत पत्र जारी किया था, तो उसमें 4500 करोड़ बकाया होने की बात को स्वीकार किया था.
इन सबके बीच में मामला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास पहुंच गया है और मुख्यमंत्री ने कहा कि जल्द ही इसका समाधान निकाला जाएगा. जेबीवीएनएल (JBVNL) यानी झारखंड विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को सरकार की तरफ से करीब 400 करोड़ रुपये भुगतान करने के लिए देने की भी बात चल रही है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर कब तक केंद्र और राज्यों के आपसी विवाद का मोहरा जनता बनती रहेगी?
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