नई दिल्ली: सिख विरोधी दंगों के 34 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अदालत ने कहा कि इसका षड्यंत्र उन लोगों ने रचा जिन्हें ‘‘राजनीतिक संरक्षण’’ प्राप्त था. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मुजफ्फरनगर, कंधमाल और गुजरात दंगों का भी जिक्र किया और इसके खिलाफ कानून बनाए जाने की जरूरतों पर जोर दिया.


अदालत ने कानूनी व्यवस्था को मजबूत करने की अपील की ताकि जनरसंहार की साजिश रचने वालों को जवाबदेह बनाया जा सके. अदालत ने कहा कि ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ और ‘नरसंहार’ को घरेलू कानून का हिस्सा नहीं बनाया गया है और इसका तुरंत समाधान करने की जरूरत है. इसने 2002 के गोधरा बाद गुजरात दंगों और 2013 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों का भी जिक्र किया जो 1947 के बाद हुए बड़े नरसंहारों में शामिल हैं जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया.


अदालत ने कहा, ‘‘देश के विभाजन के समय पंजाब, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या उसी तरह दुखदायी याद है जैसा कि नवम्बर 1984 में निर्दोष सिखों की हत्या हुई. इसी तरह से 1993 में मुंबई में बड़े पैमाने पर हत्या, 2002 में गुजरात में, 2008 में कंधमाल ओडिशा में और 2013 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में नरसंहार हुए.’’


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इसने कहा कि इन बड़े अपराधों में साझा बात यह रही कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया और हमले प्रभावशाली राजनीतिक ताकतों के संरक्षण में हुए जिसमें कानून लागू करने वाली एजेंसियों की मिलीभगत रही.


सज्जन कुमार को जिस मामले में दोषी ठहराया गया है वह दक्षिण पश्चिम दिल्ली के पालम कॉलोनी में राजनगर पार्ट-एक इलाके में पांच सिखों की एक-दो नवम्बर 1984 को हुई हत्या से जुड़ा हुआ है. इस दौरान राष्ट्रीय राजधानी और देश के अन्य हिस्सों में दंगे फैले हुए थे.


तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा 31 अक्टूबर को हत्या किए जाने के बाद एक नवम्बर और चार नवम्बर 1984 के बीच भड़के सिख विरोधी दंगों में 2733 सिख मारे गए थे. अदालत ने कुमार और पांच अन्य दोषियों को 31 दिसम्बर 2018 तक आत्मसमर्पण करने और दिल्ली से बाहर नहीं जाने के निर्देश दिए.


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