34 साल बाद सिख दंगे के 2 आरोपियों को मिली फांसी और उम्रकैद की सजा
पीड़ितों के भाई संतोख सिंह की शिकायत पर पुलिस ने एक मामला दर्ज किया था. लेकिन 1994 में पुलिस ने सबूतों के अभाव में मामला बंद करना चाहा था. लेकिन विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मामले की जांच फिर से शुरू की.
नई दिल्ली: 1984 के सिख विरोधी दंगों के 34 साल बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दिल्ली के महिपालपुर में दो सिखों की हत्या के दो आरोपियों को सुनाई उम्रकैद और फांसी की सजा. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर इलाके में रहने वाले हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या के मामले में नरेश सहरावत को उम्रकैद और यशपाल सिंह को फांसी की सजा सुनाई है.
दिल्ली पुलिस ने 1994 में ही बंद कर दिया था मामला मृतक हरदेव सिंह के भाई संतोष सिंह की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने घटना कुछ वक्त बाद मामला तो जरूर दर्ज किया गया था लेकिन सबूतों के अभाव में इस मामले को 1994 में बंद कर दिया.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद गठित एसआईटी का पहला बड़ा फैसला 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने 2015 में सिख दंगों की जांच के लिए एसआईटी बनाने का ऐलान किया. इसके बाद एसआईटी ने दिल्ली और एनसीआर में सिख दंगों के दौरान हुई अलग-अलग करीब 650 घटनाओं के बारे में जानकारी जुटाई. इन करीब 650 मामलों से करीब 60 मामले सामने आए जिनमें एसआईटी को लगा की जांच शुरू की जा सकती है. लेकिन जब केस के तथ्य खंगाले गए तो 52 मामले ऐसे रहे जहां पर एसआईटी के सामने सबूत गवाह या तथ्य नहीं आए.
जिसके बाद एसआईटी ने 52 मामलों में अदालत में जानकारी दे दी कि कोई सबूत, गवाया और तथ्य नहीं होने की वजह से इस मामले की जांच आगे नहीं बढ़ाई जा सकती. लेकिन 8 मामलों में एसआईटी ने जांच की, जिसमें पांच मामलों में अदालत में चार्जशीट दायर की जबकि 3 मामलों में जांच जारी है. मंगलवार को आया फैसला उन पांच मामलों में से एक मामले में आया है और यह इस एसआईटी के गठन के बाद पहला ऐसा फैसला है जिसमें आरोपियों को दोषी करार कर सजा सुनाई गई है.
इंदिरा की हत्या के बाद हुए थे सिख विरोधी दंगे गौरतलब है कि 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख बॉडीगार्ड्स द्वारा हत्या कर दी गई थी और इसके अगले दिन से ही दिल्ली और देश के अलग अलग हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक इन दंगों में करीब 3000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 2000 से ज्यादा लोग दिल्ली में मारे गए थे. वहीं पीड़ित परिवारों का कहना है कि उस दौरान 8000 से ज्यादा सिखों का कत्लेआम हुआ था.