मालेगांव ब्लास्ट मामला: सुप्रीम कोर्ट ने श्रीकांत पुरोहित की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट पुरोहित की ज़मानत याचिका खारिज कर चुका है. पुरोहित की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दावा किया है कि वो सेना की इंटेलिजेंस यूनिट के लिए काम कर रहे थे.
नई दिल्ली: 2008 मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी प्रसाद श्रीकांत पुरोहित की ज़मानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे पुरोहित की तरफ से कहा गया है कि उन्हें राजनीतिक कारणों से फंसाया गया.
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट पुरोहित की ज़मानत याचिका खारिज कर चुका है. पुरोहित की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दावा किया है कि वो सेना की इंटेलिजेंस यूनिट के लिए काम कर रहे थे. इसी मकसद से वो ब्लास्ट के आरोपी संगठन अभिनव भारत की बैठक में शामिल हुए थे, लेकिन बाद में राजनीतिक कारणों से उन्हें धमाके का आरोपी बना दिया गया.
NIA के पास नहीं है साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ सबूत
साल्वे ने कहा है कि सेना के कमीशन ऑफ़ इंक्वायरी की रिपोर्ट में उनके खिलाफ कुछ नहीं मिला. उनकी हर गतिविधि की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को थी. जब NIA कह रही है कि साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ उसके पास सबूत नहीं हैं. ऐसे में उन्हें मुकदमे में फंसाए रखना गलत है. पुरोहित 9 साल से जेल में बंद हैं. उन्हें इस आधार पर भी अंतरिम जमानत मिलनी चाहिए.
पुरोहित की दलील थी कि उन पर प्रज्ञा के कहने पर आरडीएक्स मुहैया कराने का आरोप है. प्रज्ञा के खिलाफ गवाही देने वाले अब अपना बयान बदल चुके हैं. NIA ने बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रज्ञा की ज़मानत पर सुनवाई के दौरान उनके खिलाफ सबूत न होने की बात मानी. ऐसे में केस में उनकी भूमिका भी साबित नहीं हो सकती. फिर भी उन्हें ज़मानत नहीं दी गई.
निचली अदालत में आरोप तय होना बाकी
इस अर्ज़ी का विरोध करते हुए NIA के वकील एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि अभी निचली अदालत में आरोप तय होना बाकी है. इस समय केस के तथ्यों पर बहस करना गलत है. एजेंसी के पास पुरोहित के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. इसी वजह से हाई कोर्ट ने उन्हें ज़मानत नहीं दी.
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी. शुरू में महाराष्ट्र एटीएस ने मामले की जांच की. एटीएस ने अभिनव भारत नाम के संगठन पर घटना का आरोप लगाया. साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित समेत कई लोगों को एटीएस ने आरोपी बनाया है. 2011 में NIA को जांच सौंप दी गई.
ज़मानत पर टलता रहा है फैसला
अप्रैल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रज्ञा और पुरोहित पर महाराष्ट्र संगठित अपराध निरोधक कानून (मकोका) के तहत आरोप नहीं बनते. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत से कहा कि वो मकोका के आरोपों को अलग रख दोनों की ज़मानत अर्ज़ी पर विचार करे. हालांकि, इसके बाद भी दोनों की ज़मानत पर फैसला टलता रहा. आखिरकार, प्रज्ञा को ज़मानत मिल गई. लेकिन पुरोहित को ज़मानत नहीं मिली.
आज साध्वी प्रज्ञा को मिली ज़मानत के खिलाफ निसार अहमद हाजी बिलाल नाम के शख्स पर भी सुनवाई होनी थी. हालांकि, कोर्ट ने इस सुनवाई को 10 अक्टूबर के लिए टाल दिया. कोर्ट ने प्रज्ञा और NIA से इस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है.