नई दिल्ली: 2019 के चुनाव के लिए 40 लोकसभा सीटों वाले राज्य बिहार में जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) का कहना है कि राज्य में पीएम नरेंद्र मोदी से बड़ा चेहरा नीतीश कुमार का होगा. नीतीश एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस) का हिस्सा है जिसके सबसे बड़े नेता मोदी हैं. ऐसे में सवाल ये है कि बिहार की जनता जब 2019 में आम चुनावों के लिए वोट देने जाएगी तब वो नीतीश को पीएम बनाने के लिए वोट देगी या नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए वोट देगी?
इसमें कोई दो मत नहीं है कि मोदी ही 2019 के लिए भी एनडीए के पीएम उम्मीदवार होंगे. ऐसे में नीतीश का चेहरा आगे करके बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ने की बात करना दबाव बनाने की राजनीति से ज्यादा और कुछ नहीं लगता. एबीपी न्यूज संवाददाता जैनेंद्र कुमार ने जब बीजेपी नेता और बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी से इस सवाल का जवाब पूछा तो उनका बयान समझाने वाला कम और उलझाने वाला ज्यादा था. उन्होंने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है, क्योंकि राज्य का सीएम ही वहां का सबसे बड़ा नेता होता है.
उन्होंने आगे कहा कि इसके पहले के तमाम विधानसभा चुनाव एनडीए ने नीतीश के नेतृत्व में लड़े हैं, वहीं केंद्र में गठबंधन का सबसे बड़ा चेहरा पीएम मोदी ही हैं. उनके इस बायन से साफ है कि 2019 में बिहार में एनडीए के नेता मोदी होंगे, क्योंकि 2019 में आम चुनाव होने वाले हैं. हां, उन्होंने ये ज़रूर जोड़ा की पहले यानी 2014 के आम चुनाव में नीतीश के अलग हो जाने की वजह से उनके पास मोदी के तौर पर सिर्फ एक चेहरा रह गया था. लेकिन 2019 के चुनाव में एनडीए के पास दोनों चेहरे होंगे. डिप्टी सीएम ने ये दावा भी किया कि अगले आम चुनाव में ये गठबंधन 40 की 40 लोकसभा सीटें जीतेगा.
सीटों के बंटवारे पर फंसेगा पेंच
अब सवाल ये है कि अगर बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश एनडीए का चेहरा होंगे और बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में होगी तो लोकसभा सीटों का बंटवारा कैसे होगा. सुशील मोदी के लिए भी सीटों के बंटवारे से जुड़ा सवाल गले से नहीं उतरने वाला साबित हुए. वो ये सवाल टाल गए और कहा कि समय आने पर सीटों का बंटवारा कैसे होगा ये तय किया जाएगा और किसी को कानों कान ख़बर नहीं होगी.
आपको बता दें कि ऐसी चर्चा है कि जेडीयू 2009 के फॉर्मूले के हिसाब से 40 में से 25 सीट चाहती है. ऐसे में बाकी बची 15 सीटों में से छह एलजेपी और तीन आरएलएसपी को मिलेंगी. यानी इस फॉर्मूले के तहत बीजेपी बिहार में 6 सीटों पर ही लड़ पाएगी. ये एक नामुमकिन स्थिति नज़र आती है. नीतीश की इस मांग से एनडीए के वोटरों में भ्रम का माहौल पनप सकता है और बीजेपी और जेडीयू दोनों को ही को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.
बीजेपी क्यों नहीं दे सकती 25 सीटें
- एनडीए में BJP, JDU, LJP और RLSP चार सहियोही दल हैं
- BJP 2014 में 30 सीटों पर लड़ी थी और 22 सीटों पर जीत हासिल की थी
- JDU को 25 सीट देने का मतलब है बाकी सहयोगियों को निराश करना
- एलजेपी के 6 सांसद हैं, आरएलएसपी के 3
- यानी 25+6+3 = 34 सीटें सहयोगियों के खाते में हैं
- नीतीश की बात मानने की स्थिति में बीजेपी को लड़ने के लिए सिर्फ 6 सीटें मिलेंगी
- बीजेपी के 16 सांसदों का टिकट कट जाएगा
- टिकट कटने की वजह से पार्टी में विद्रोह की स्थिति बन सकती है
- विद्रोह का फायदा विरोधियों को मिलेगा
ऊपर दिए गए सभी कारणों से साफ है कि बीजेपी किसी स्थिति में जेडीयू को 25 सीटें नहीं देने वाली. पार्टी दवाब की स्थिति में मौखिक तौर पर नीतीश को बड़ा भाई भले ही मान ले, लेकिन अगर जेडीएयू अपनी 25 सीटों की मांग पर अड़ी रही तो गठबंधन का भविष्य ख़तरे में पड़ सकता है.
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