नई दिल्ली: दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. उत्तर प्रदेश की हवा तय कर देती है कि देश में किसको राज मिलेगा और किसका वनवास होगा. साल 2014 में 80 सीटों वाली यूपी में एनडीए ने 73 सीटें जीतकर दिल्ली में अपनी मजबूत दावेदारी तय कर दी थी. लेकिन 2019 का चुनावी शंखनाद होने से पहले ही एनडीए के सहयोगियों ने आंख दिखाना शुरु कर दिया है.


अपना दल का हाल


बीजेपी के लिए अब तक गुडबुक में रहे अपना दल ने भी मुट्ठी तान दी है. पार्टी के नेता गठबंधन धर्म की मर्यादा बता रहे हैं. तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार जाने पर सबक़ सीखने की सलाह देते हैं. यही नहीं अपना दल के अध्यक्ष आशीष पटेल तो मायावती का गुणगान करने लगे हैं.


यूपी में अपना दल के दो सांसद हैं. पार्टी अध्यक्ष आशीष पटेल खुद एमएलसी हैं और सांसद अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं. बता दें कि पूर्वाचल में अपना दल का खासा प्रभाव है. अपना दल ऐसे वक्त में बीजेपी से बगावत की बात कर रहा है. जब एनडीए के घटक दलों को साथ रखने की चुनौती है.


सुहेलदेव समाज पार्टी का हाल


यूपी में दूसरी सहयोगी सुहेलदेव समाज पार्टी तो काफी पहले से ही बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. भारतीय सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा है कि इनके नेताओं को बयान देने का वक्त तो है लेकिन गरीब पिछड़ों की बात करने का वक्त नहीं है. जिस तरह से एनडीए के अपने आंखे तरेर रहे हैं. उससे एक बात तो साफ है कि 2019 की डगर बीजेपी के लिए आसान नहीं रहने वाली.


यूपी में राजभर जाति की आबादी करीब 2.4 फीसदी के करीब है. यूपी की 42 विधानसभा सीटों पर इस जाति के 8 फीसदी वोट हैं. अभी लोकसभा में राजभर की पार्टी का एक भी सांसद नहीं है, लेकिन यूपी विधानसभा में इस पार्टी के 4 विधायक हैं.


अमित शाह ने यूपी में दिया मिशन 74 का नारा


अमित शाह ने यूपी में मिशन 74 का नारा दिया है. यानी पिछले चुनाव से एक सीट ज्यादा जीतने का नारा.  लेकिन इस तरह से साथी साथ छोड़ने की बात कहेंगे तो ये मिशन मुश्किल हो सकता है. हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ये कोशिश है कि छोटे से छोटे दलों को भी अपने साथ जोड़ कर रखा जाए, उनकी नाराजगी दूर की जाए. यही वजह है कि पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को मना लिया गया है. बिहार में तो बीजेपी में ऑल इज वेल कर लिया है लेकिन अन्य राज्यों में कड़ी चुनौती है.


लगातार मोदी सरकार पर हमले बोल रही है शिवसेना


यूपी, बिहार के बाद तीसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र में सहयोगी शिवसेना लगातार विरोधियों की तरह मोदी सरकार पर हमले बोल रही है. सामना के लेख में लिखा है, ‘’साल 2014 में हिंदुत्ववादी शिवसेना से युति तोड़ने का संपूर्ण प्रयोग सत्ता के लिए ही था. उसके लिए युति के हिंदुत्व की ऑक्सीजन का सिलेंडर लूटा गया. जबकि अब इसी ऑक्सीजन के सिलेंडर की पाइप जनता द्वारा खींच लिए जाने के कारण शिवसेना के साथ ‘युति’ होगी ही, ऐसी स्वंयभू घोषणा की जा रही है.’’


असल में शिवसेना की नाराजगी के बीच पिछले दिनों अमित शाह ने कहा था कि वो चाहते हैं कि महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ चुनाव लड़ें. जबकि उद्धव की पार्टी अकेले लड़ने की बात कह चुकी है. बड़ी बात ये है कि गठबंधन की गांठ को बांधकर रखना बीजेपी के लिए जरूरी है. अगर ऐसा नहीं होता तो फिर मिशन 2019 में मोदी के लिए कांटे की कांटे हैं.


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