2024 में होने वाले आम चुनाव से पहले जहां राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का मुद्दा एक बार फिर तेज हो गया है. वहीं दूसरी तरफ गठबंधन के लिए क्षेत्रीय दलों के बढ़ते दबाव के बीच कांग्रेस ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह विपक्षी नेतृत्व के लिए तैयार तो हैं, लेकिन उनकी पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन नहीं छोड़ेगी.
दरअसल कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बीते रविवार यानी 19 फरवरी को कहा कि कांग्रेस के बिना कोई भी गठबंधन विफल हो जाएगा. रमेश आगे कहते हैं कि हमें इस बात का प्रमाणपत्र देने की जरूरत नहीं है कि हमें विपक्ष का नेतृत्व करना है. कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी एकता असफल होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस विपक्ष को मिलाकर प्रधानमंत्री पद के लिए साझा उम्मीदवार से क्यों इनकार कर रही है?
भारत जोड़ो से कांग्रेस हुई मजबूत!
2024 के लिए कांग्रेस का रोडमैप 2004 की तरह है. जिसका मतलब है कि पार्टी को विपक्ष के केंद्र में खुद में लाना है. ऐसे में कांग्रेस साझा उम्मीदवारी की लिए तैयार होती है तो यह पार्टी को कमजोर कर सकता है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक रिपोर्ट में भारत जोड़ो यात्रा के नफा नुकसान के बारे में बात करते हुए पॉलिटिकल रिसर्चर असीम अली कहते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का सबसे बड़ा लक्ष्य यही था कि वह ग्रैंड ओल्ड पार्टी को 2024 के आम चुनाव में चुनौती देने वाली ताकत के रूप में पेश कर सके.
ऐसे में पांच महीने की इस यात्रा ने न सिर्फ कांग्रेस को मजबूती दी है बल्कि राहुल गांधी की छवि भी बेहतर होती दिखी है. राहुल की इस यात्रा ने जनता के बीच उनके 'चांदी के चम्मच' या 'नॉन सीरियस फैमिली लीडर' वाली इमेज को काफी हद तक बदला है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी को लेकर लोगों में एक लोकप्रिय अपील का एहसास हुआ है. लेकिन इससे यह कहना मुश्किल है कि इस लोकप्रियता को चुनावों में अतिरिक्त वोट मिल पाएंगे या नहीं.
पुरानी साख बचाने में जुटी कांग्रेस
आजादी के बाद सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. पिछल 7 सालों में पार्टी के हालत पर नजर डाले तो पाएंगे कि केंद्रीय सत्ता से बाहर ग्रैंड ओल्ड पार्टी अब सिर्फ छत्तीसगढ़, राजस्थान और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में ही सिमटकर रह गई है.
इस बीच 2024 में होने वाले आम चुनाव में साझा उम्मीदवारी से कांग्रेस को नुकसान पहुंच सकता है. अन्य पार्टियों के साथ लड़कर कांग्रेस मजबूत होने की जगह कमजोर हो सकती है. उन्हें सीटों पर समझौता भी करना पड़ सकता है.
साझा उम्मीदवार की कोई संभावना नहीं
पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वरुण सिंह ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि हाल ही में नीतीश कुमार ने एक सम्मेलन में कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद अब कांग्रेस को आगे आना चाहिए और विपक्षी एकजुटता में देरी नहीं करनी चाहिए.
कांग्रेस ने भी आधिकारिक रूप से नीतीश के बयानों पर सहमति जताई है. लेकिन साल 1977 में कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष ने जिस तरह संयुक्त उम्मीदवार मैदान में उतारा था, इस आम चुनाव में यानी 2024 में बीजेपी के खिलाफ उस तर्ज पर साझा उम्मीदवार की कोई संभावना नहीं है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में हर राज्यों में सियासी तस्वीर अलग-अलग है. इसलिए फिलहाल बीजेपी के खिलाफ साझा विपक्षी उम्मीदवार की पैरोकारी रोमांटिसिज्म से ज्यादा कुछ नहीं लग रही है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़ भी दें, तब भी तीन राज्यों के मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिनके भीतर पीएम पद का उम्मीदवार बनने की दावेदारी की हिलोरें अब भी मार रही हैं. उन तीनों ने ही राहुल की इस यात्रा को लेकर अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे लगे कि वो इसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं.
कांग्रेस से हटकर विपक्षी दलों की गोलबंदी
हाल ही में तेलंगाना सम्मम में चंद्रशेखर राव उर्फ केसीआर ने विशाल जनसभा आयोजित किया था. इसमें आप संयोजक अरविंद केजरीवाल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, केरल के सीएम पिनराई विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और लेफ्ट नेता शरीक हुए थे.
इस रैली को साल 2024 में होने वाले आम चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता के कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. नया मोर्चा बनाने की शंकाओं के बीच कांग्रेस ने कहा कि अगर कांग्रेस को अलग-थलग करके कोई नया मोर्चा बनाने की कोशिश होगी तो यह सीधे-सीधे बीजेपी की सहायता होगी.
इस रैली पर कांग्रेस महासचिव और केरल प्रभारी तारिक अनवर ने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी को अगर कोई राष्ट्रीय स्तर पर जवाब दे रहा है या कोई पीएम से सवाल पूछ रहा है तो वह कांग्रेस पार्टी ही है. अगर अन्य पार्टियां कांग्रेस को अलग-थलग करके अगर कोई मोर्चा बनाती है तो यह सीधे तौर पर बीजेपी की मदद होगी.
नीतीश कुमार को राहुल से दिक्कत नहीं
शनिवार यानी 18 फरवरी को पटना के सम्मेलन में बिहार के सीएम नीतीश कुमार से पत्रकारों ने पूछा कि क्या आप 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी की उम्मीदवारी को समर्थन देंगे? तो उन्होंने साफ कहा कि हमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन इसके साथ साथ नीतीश ने ये भी संदेश दे दिया कि "पहले एक साथ बैठकर बात तो करें. अलग-अलग नाम के बारे में अलग पूछिएगा तो कितना जवाब देंगे. हम दावेदार नहीं हैं, बस.
नीतीश कुमार आगे कहते हैं, "हम तो इतना ही चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पार्टी मिलकर सरकार बनाएं. सभी पार्टी मिलकर बैठेंगी तो सब चीजें तय होंगी. ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को मिलाने से एक संतुलित सरकार बनेगी. उसमें सब अच्छा होगा. उसमें राहुल गांधी हों या कोई भी बने, मुझे दिक्कत नहीं. मैं बस अपनी बात कह सकता हूं कि मैं दावेदार नहीं हूं."
पीएम उम्मीदवारी पर क्या है राहुल गांधी का रुख
रविवार को हरियाणा के समाना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के बारे में सवाल पूछा गया जिसे उन्होंने खारिज कर दिया. राहुल गांधी ने कहा कि यह सवाल सिर्फ ध्यान भटकाने के प्रयास हैं.
उन्होंने कहा कि नेशनल मीडिया भारत जोड़ो यात्रा को नहीं दिखाता है बस यह पूछकर ध्यान भटकाने की कोशिश की जाती है कि कांग्रेस का सीएम या पीएम कौन होगा. हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा था कि भारत जोड़ो यात्रा साल 2024 के आम चुनावों के लिए राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने का प्रयास नहीं है.
कौन हो सकता है विपक्ष का पीएम चेहरा
अभी देखें तो 3500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा करने वाले राहुल गांधी पीएम पद का चेहरा हो सकते हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं. इसके अलावा तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव हों या बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, इन्हें भी पीएम बनना है.
दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती का कद भी इनमें से किसी से कम नहीं है और ऐसे कम से कम दर्जन भर नामों में नीतीश कुमार का नाम भी शामिल है लेकिन नीतीश से जब भी पीएम बनने से जुड़ा सवाल पूछा जाता है तो वो इससे साफ इनकार कर देते हैं. मतलब एक तरफ इतने सारे पीएम पद उम्मीदवार होंगे और दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी का इकलौता चेहरा तो वोटर को कम से कम इस एक मामले में तो साफ सीधी क्लियरिटी होगी.
कांग्रेस का पिछले चुनावों में कैसा रहा हाल
सबसे पुरानी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस का पिछले दो आम चुनाव में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था. साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस को 543 में से मात्र 44 सीटें मिली थीं. 2019 में ये नंबर बढ़ा ज़रूर लेकिन कांग्रेस इस चुनाव में भी 52 सीटों पर सिमट गई.
पिछले दो आम चुनाव में ये हाल उस पार्टी का रहा है जो एक तरफ तो देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और दूसरी तरफ सबसे ज़्यादा समय तक देश की सरकार चलाई है.