साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के एनडीए गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों ने 352 सीटों में से 14 प्रतिशत यानी कुल 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अब अगले साल यानी 2024 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव होने वाले है.
इस बार NDA का सीधा मुकाबला INDIA से होने वाला है. यही कारण है कि सियासी गलियारों में अभी से ही मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही है.
चर्चा तो ये भी है कि लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान की वजह से पीएम मोदी के मंत्रिमंडल का विस्तार टल सकता है.
दरअसल चिराग पासवान ने मंत्रीमंडल के विस्तार से पहले भारतीय जनता पार्टी के सामने लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 6 सीटें और एक राज्यसभा की सीट मिलने की मांग रख दी है. इन 6 सीटों में हाजीपुर की सीटें भी शामिल है.
चिराग पासवान ने हाल ही में एक बड़ा बयान भी दिया है. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि उनकी मां रीना पासवान हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ें जहां से उनके दिवंगत पिता रामविलास पासवान कई दशकों तक सांसद रहे.
इससे कुछ घंटे पहले चिराग पासवान ने संकेत दिया था कि वह जमुई से फिर से चुनाव लड़ेंगे. वह मौजूदा लोकसभा में लगातार दूसरी बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
चिराग का हाजीपुर से सांसद और उनक चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ टकराव है. उन्होंने हाजीपुर सीट पर बात करते हुए कहा कि उनके पिता रामविलास पासवान ने एक लंबा समय हाजीपुर की सेवा में बिताया है और हाजीपुर को अपनी मां के समान माना है.
ऐसे में एक पुत्र होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है कि उनकी गैरमौजूदगी में मैं वैसे ही हाजीपुर और हाजीपुर के लोगों का ध्यान रखूं जैसा मेरे पिता अपने रहते हुए रखा करते थे. मैं चाहता हूं मेरी मां वहां से चुनाव लड़ें क्योंकि मेरे पिता के बाद अगर किसी का सबसे पहला अधिकार बनता है तो वह मेरी मां का बनता है.".
पिछले चुनाव में भी लोजपा को मिली थी 6 सीटें
बता दें कि साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी लोजपा को 6 सीटें ही मिली थी. उस वक्त पार्टी का नेतृत्व चिराग के पिता दिवंगत रमविलास पासवान कर रहे थे और उनकी पार्टी ने सभी 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
कहां फंस रहा पेंच?
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. यहां से ज्यादा सीटें सिर्फ यूपी (80), महाराष्ट्र (48) और पश्चिम बंगाल (42) में है. इन तीनों ही राज्यों से बिहार की सीमाएं लगती है, इनमें यूपी, झारखंड और बंगाल का नाम शामिल हैं.
इन तीनों राज्यों के 10 सीटें ऐसी हैं जहां बिहारी वोटर्स जीत-हार तय करते हैं. यानी कुल 50 सीतें ऐसी हैं जिसपर बिहारी वोटरों का दबदबा है. गठबंधन पॉलिटिक्स के दौर में बीजेपी के लिए ये सीटें काफी अहम है.
2019 में एनडीए को बिहार में लोकसभा की 39 सीटों पर जीत मिली थी.
इस बार भी बीजेपी मोदी मंत्रिमंडल में अंतिम विस्तार के जरिए बिहार का सियासी संतुलन साधना चाहती है. बीजेपी चाहती है कि इस बार दलित वोटर्स उनके पाले में आ जाए.
यही वजह है कि पार्टी ने जीतने राम मांझी और चिराग से हाथ मिलाया है. अब चिराग पासवान चाहते हैं कि बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही उनकी पार्टी को मूल लोजपा मानते हुए 6 सीटों पर मौदान में उतरने दें.
साल 2021 में हुई थी लोजपा में फूट
साल 2021 में लोजपा में फूट हुई थी. जिसके बाद लोजपा दो टुकड़ों में बंट गया था. एक तरफ चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बनी जो एनडीए में शामिल हो गई थी. जिसके बाद पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बने. तो वही दूसरी तरफ चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) बनी.
हालांकि उस वक्त चिराग के चाचा का खेमा ज्यादा मजबूत बन गया था. चिराग पासवान को छोड़कर लोजपा के सभी सांसद राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए थे.
अब पार्टी में टूट के बाद भी चिराग पासवान 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की दावेदारी सभी 6 लोकसभा सीटों पर कर रहे हैं और साथ ही एक राज्यसभा की सीट की मांग भी कर रहे हैं.
चाचा-भतीजे को एकजुट करने की कोशिश
हालांकि बीजेपी चाहती है कि लोकसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस की पार्टी एकजुट हो जाए. दोनों को मिलाने के लिए बीजेपी के तरफ से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय लगातार कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है.
कुछ दिनों पहले ही नित्यानंद राय ने चिराग पासवान से पटना में और फिर पशुपति पारस से दिल्ली में मुलाकात की थी मगर इसके बावजूद भी चाचा भतीजे में जंग बरकरार है.
बिहार में लोजपा कितना ताकतवर
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान फिलहाल में बिहार के जमुई सीट से सांसद हैं. साल 2021 तक वह संयुक्त लोजपा के अध्यक्ष थे, लेकिन इसी साल उनके चाचा पशुपति पारस ने पार्टी तोड़ दी.
वर्तमान में पशुपति मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं. लोजपा की स्थिति की बात करें तो बिहार में दलित सीटों पर इस पार्टी का मजबूत जनाधार है.
साल 2014 और 2019 के चुनाव में लोजपा ने बिहार की 6 सीटों पर जीत दर्ज की. साथ ही 6-7 सीटों पर बीजेपी की मदद भी की. लोजपा का खगड़िया, मधेपुरा, वैशाली, मधुबनी, बेगूसराय, जमुई, समस्तीपुर और बेतिया में मजबूत जानाधार है.
वहीं क्षेत्रीय नेताओं के सहारे लोजपा ने जहानाबाद, बक्सर और सीवान में भी अपनी पैठ बनाई है. पार्टी टूटने के बाद से ही चिराग पासवान लोगों के बीच है. लोजपा का कोर वोटर पासवान है, जिसकी आबादी 4-5 प्रतिशत के आसपास है.