भारत के आजाद होने के बाद से हर साल हमारे देश में गणतंत्र दिवस के मौके पर 21 तोपों की सलामी होती रही है. लेकिन इस साल 26 जनवरी के मौके पर इस परंपरा में बदलाव लाया जाएगा. अब तक इस मौके पर 21 तोपों की सलामी के लिए ब्रिटिश जमाने की 25 पाउंडर गन का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन अब इसकी जगह भारत में बनी 105 एमएम की इंडियन फील्ड गन का इस्तेमाल किया जाएगा. 


इस सलामी की आवाज राष्ट्रगान की पूरी 52-सेकंड के समय को कवर करने के लिए हर 2.25 सेकंड पर तीन राउंड में सात तोपें दागी जाती हैं और इसे 21 तोपों की सलामी कहा जाता है. 


सलामी के दौरान अब तक जिस तोप का इस्तेमाल किया जाता रहा है. किसी जमाने में इस पर सबकी निगाहें टिकी होती थीं. इसके आवाज को सुनने के लिए लोग इतना उत्साहित रहते थे कि भारतीय महाराजाओं ने इसे ध्यान से सुनने के लिए और उनके बैरल से चलाई गई गोलियों की सटीक संख्या गिनने के लिए लोगों को नियुक्त किया था. 


आइये जानते हैं कि 21 तोपों की सलामी की परंपरा के पीछे आखिर क्या कहानी है? इसे इतना सम्मानजनक क्यों माना जाता हैं? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम यहां जानने की कोशिश करेंगे. 


क्या है 21 तोपों के सलामी की कहानी 


भारत में 26 जनवरी, 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया. इसके बाद वह राष्ट्रपति भवन से इरविन एम्फीथिएटर जो अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम के नाम से जाना जाता है, वहां से एक सोने की परत चढ़ा घोड़े की गाड़ी में सवार होकर तब देश के राष्ट्रपति को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी लेने के लिए आए थे. 


इसके बाद ही आखिरकार 21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया. साल 1971 के बाद, 21 तोपों की सलामी हमारे राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान बन गया. अब जब भी कोई नया राष्ट्रपति शपथ लेते है तो उनके सम्मान में 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इसके अलावा यह गणतंत्र दिवस जैसे चुनिंदा मौकों पर भी दी जाती है. 


21 गोलों की सलामी में महज आठ तोपें होती है


अब जो सलामी दी जाती है उसमें 21 गोले तो होतें हैं, लेकिन तोप सिर्फ 8 होते हैं. इसमें से 7 तोपों का इस्तेमाल सलामी के लिए होता है, जिससे हर तोप 3 गोले फायर करते है. इस सलामी को देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान माना जाता है. सलामी देने वाले लगभग 122 जवानों के दस्ते का हेडक्वार्टर मेरठ में है. गौरतलब है कि ये सेना की स्थायी रेजीमेंट नहीं होती है. 


छोड़े जाने वाले गोले की खासियत


सलामी के लिए दागे जाने वाले गोले भी कोई आम नहीं होते, बल्कि खास सेरेमोनियल कारतूस होता है. यह एक खाली कारतूस होता है जिसे दागने से केवल धुआं और आवाज निकलती है, कोई हानि नहीं होती.


25-पाउंडर आर्टिलरी गन की खासियत


21 तोपों की सलामी में इस्तेमाल किए जाने वाला तोप  '25-पाउंडर आर्टिलरी' अंग्रेजों का फील्ड गन और होवित्जर रहा है. इसका इस्तेमाल वह 1940 में करते थे. इस तोप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त किया गया था.


इसके बाद से इसे इराकी सिविल वार इस्तेमाल किया गया. 25-पाउंडर आर्टिलरी गन का वजन 1633 किलोग्राम होता है और यह 15.1 फीट का होता है. इनकी नली (जहां से गोले छोड़े जाते हैं) की लंबाई 8.1 फीट होती है. ऊंचाई 3.10 फीट और चौड़ाई 7 फीट होती है. 


इसका इस्तेमाल भारत ने भी साल 1947 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान किया था. इसके बाद साल 1965 और 1971 में भी भारत-पाक युद्ध में दुश्मन के खिलाफ इस गन का इस्तेमाल किया गया था. यहां तक कि चीन के साथ 1962 में हुए युद्ध के समय भी भारत ने इस ब्रिटिश तोप से गोले दागे थे. 


105 मिमी इंडियन फील्ड गन 


पाउंडर गन की इस जगह इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर 105 मिमी इंडियन फील्ड गन से 21 तोपों की सलामी दी जाएगी. इस तोप को आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट ने साल 1972 में बनाया था. इंडियन फील्ड गन का उत्पादन साल 1984 से जबलपुर की गन कैरिज फैक्ट्री में शुरू हुआ. 


इंडियन फील्ड गन हल्की तोप है, इसलिए इसे कहीं भी ले जा सकते हैं. खासतौर से पहाड़ों पर. वहीं इसके बहुत सारे फीचर ब्रिटिश L118 Light Gun से मिलते हैं. 


डेयरडेविल्स मोटरसाइकिल टीम का हिस्सा होंगी महिलाएं


पहली बार महिलाएं सीमा सुरक्षा बल के ऊंट दल का हिस्सा बनेंगी. परेड में तीन महिला अधिकारी भी सेना की टुकड़ी का हिस्सा बनेंगी. सिग्नल कोर की लेफ्टिनेंट डिंपल भाटी भारतीय सेना की डेयरडेविल्स मोटरसाइकिल टीम का हिस्सा होंगी. महिला अधिकारी पिछले एक साल से दल के साथ ट्रेनिंग ले रही हैं. 


इसके अलावा हमारा देश इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर स्वदेशी मिसाइल शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए पूरी तरह तैयार है. वहीं कर्तव्यपथ पर अग्निवीर की सैन्य टुकड़ी की भी झलक देखने को मिलेगी. इस बार गणतंत्र दिवस के समारोह के मुख्य अतिथि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह एल-सीसी होंगे. वहीं कर्तव्य पथ पर परेड में मिस्र की सैन्य टुकड़ी भी शामिल होगी.