नई दिल्लीः केरल में कोझीकोड हवाई अड्डे 7 अगस्त को हुई विमान दुर्घटना में दोनों पायलटों सहित अठारह लोगों की मौत हो गई. एयर इंडिया के इस विमान में 190 लोग सवार थे. इसके साथ ही भारत के स्वतंत्र होने के बाद कमर्शियल एयरलाइन दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 2,173 हो गई. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार पायलट एक्शन या डिसिजन की गलती से हुई दुर्घटनाओं के 80 प्रतिशत मौत हुई हैं.


रिपोर्ट में विश्लेषण एविएशन सफ्टी नेटवर्क के डेटा के आधार पर किया गया है. इसमे पैसेंजर फ्लाइट्स और उन दुर्घटनाओं को शामिल किया गया है जिनमें कम से कम किसी एक पैसेंजर या क्रू मेंमर की मौत हुई है.


कोझिकोड दुर्घटना स्वतंत्र भारत की 52 वीं कमर्शियल एयरलाइन दुर्घटना थी, जिसमें लोगों की मौत हुई थी. वैसे 100 से अधिक दुर्घटनाएं हुई हैं, लेकिन ये ज्यादा जानलेवा नहीं थी. 52 जानलेवा दुर्घटनाओं में से 40 में भारतीय विमान और 12 विदेशी विमान थे.


2011-2020 सबसे सुरक्षित दशक


स्वतंत्र भारत में हवाई दुर्घटनाओं के मामले में यह दशक (2011-2020) अब तक की सबसे सुरक्षित अवधि रहा है. कोझिकोड में इस महीने की हवाई दुर्घटना एकमात्र यात्री विमान दुर्घटना थी, जिसने इस दशक में ज्यादा संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.


पिछले दशक (2001-2010) में भी केवल एक जानलेवा दुर्घटना हुई थी जब मई 2010 में एक एयर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान मंगलोर में उतरने के बाद क्रैश हो गई थी. इसमें विमान में सवार 166 लोगों में से 158 की मौत हो गई थी. इससे पहले 1991-2000 के दशक में सात जानलेवा दुर्घटना हुई जिनमें 552 लोग मारे गए. इनमें हरियाणा के ऊपर आसमान में हुई दो विमानों की टक्कर में 349 लोगों की जान चली गई.


टेक्नोलॉजी के साथ बदली दुर्घटनाओं की वजह


विमान टेक्नोलॉजी समय के साथ बदल गई है, इसलिए हवाई दुर्घटनाओं के कारण में भी बदलाव आया है. 1951 और 1980 के बीच 30 वर्षों में 34 जानलेवा हवाई दुर्घटनाएं हुई. इनमें पायलट की गलती के 20 या लगभग 59 प्रतिशत दुर्घटनाओं में एक कारण या कॉन्ट्रीब्यूटिंग फैक्टर था. 1981 और 2010 के बीच अगले 30 वर्षों में 13 जानलेवा हवाई दुर्घटनाएं हुईं और उनमें से 12 या 92 प्रतिशत पायलट गलती से जुड़ी थीं.


जानलेवा दुर्घटनाओं में पायलट की गलती के कारण बढ़ने का कारण इसलिए भी है क्योंकि छोटी दुर्घटनाएं अब टेक्निकल या स्ट्रक्चरल फेल्योर के कारण होती हैं.


वैश्विक ट्रेंड भी यही है. 2007 में दुनिया के प्रमुख विमान निर्माताओं में से एक बोइंग की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 1990 के दशक की शुरुआत में दुनिया भर में मानवीय गलती से केवल 20 प्रतिशत दुर्घटनाएं हो रहीं थी जबकि वर्तमान में दुनिया भर में 80 प्रतिशत हवाई दुर्घटनाएं मानवीय कारणों से हुईं.


1951 और 1980 के बीच भारत में मरने वाले 1,057 लोगों में से 68 प्रतिशत लोग पायलट गलती के कारण दुर्घटना में मारे गए, जबकि 1981 और 2010 के बीच 997 लोगों की मृत्यु हुई, जो पायलट की गलती के कारण दुर्घटनाओं में मारे गए. ऐसे में भारत में 2,173 लोगों में से 80 प्रतिशत या 1,740 लोग उन दुर्घटनाओं में मारे गए हैं जिनमें पायलट गलती या तो कारण थी या कॉन्ट्रीब्यूटिंग फैक्टर.


कोझिकोड में पिछले सप्ताह दुर्घटना का कारण अभी पता नहीं चल पाया है लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने इसके लिए प्रतिकूल मौसम स्थितियों में उतरने के पायलट के निर्णय को दोषी ठहराया है.


भारत के 10 सबसे घातक हवाई दुर्घटनाओं में 8 में पायलट गलती का कारण पाया गया. इन 10 दुर्घटनाओं में 1,352 लोगों गई. इंजन फेल्योर और खराब मौसम के कारण हुई दो दुर्घटनाओं में 128 लोगों की जान गई.


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