मिलिए, हिमाचल के नए वामपंथी विधायक से, जिन्होंने मजूदरों के हक में पिता के खिलाफ छेड़ा था आंदोलन
राकेश सिंघा जिस सीट ठियोग से जीते हैं वो सीट कांग्रेस की गढ़ रही है. यहां कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स चुनाव जीतती रही हैं.
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शिमला: 24 साल बाद हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में इस बार वामपंथी दल सीपीआई(एम) ने भी खाता खोला है. शिमला ज़िले की ठियोग सीट से राकेश सिंघा ने जीत दर्ज की है. कॉमरेड सिंघा के नाम से इलाके में मशहूर राकेश सिंघा की छवि सीपीआई के कद्दावर और आंदोलनकारी नेता की रही है. इससे पहले साल 1993 में सिंघा शिमला से विधायक बने थे.
अपने क्षेत्र में सिंघा जीत का धन्यवाद देने पंहुचे हैं और हुंकार भर रहे हैं वो विधानसभा में जनता से जुड़े मुद्दे मज़बूती से उठाएंगे. आम तौर पर विधायक को सुनने के बाद जनता निकल जाती है लेकिन भाषण खत्म होने के बाद इलाके लोग अपनी फरियाद लेकर सिंघा के पास पहुच रहे हैं. राकेश सिंघा जिस सीट ठियोग से जीते हैं वो सीट कांग्रेस की गढ़ रही है. यहां कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स चुनाव जीतती रही हैं. इस सीट पर कब्जा करने में सीपीआई(एम) के नेता राकेश सिंघा चुनाव जीतने में कामयाब रहे. राकेश ने बीजेपी के राकेश वर्मा को लगभग 2000 वोटों से हराया. कांग्रेस के दीपक राठौड़ यहां तीसरे नम्बर पर रहे. पूरे हिमाचल में वामपंथी दलों ने 14 प्रत्यशी मैदान में उतारे थे लेकिन जीत इसी सीट पर मिली. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में राकेश सिंघा ने कहा कि वो सड़कों पर जनता के मुद्दे उठाते रहे है अब विधानसभा में जनता से जनसुविधाओं से जुड़े मुद्दे उठाते रहेंगे. राकेश सिंघा से जब पूछा कि वो अकेले कितनी आवाज़ उठाएंगे इसके जवाब में सिंघा कहते हैं शेर जंगल मे अकेला ही काफी होता है.
आइए एक नज़र राकेश सिंघा के सियासी सफर और उनके आंदोलनो पर डालते हैं. राकेश सिंघा के बारे में मशहूर है कि उन्होंने गरीब मज़दूरों के लिए पहले आंदोलन की शुरुआत अपने घर से ही की. 80 के दशक में सेब के बागानों में खेती करने वाले मज़दूरों का वेतन बढ़ाने के लिए सिंघा ने अपने पिता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, जिसे मानने के लिए उनके पिता मजबूर हुए. इससे पहले साल 1979 में राकेश हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे. उन दिनों में छात्रों और टीचिंग स्टाफ के अधिकारों के लिए सिंघा ने 45 दिन तक आंदोलन चलाया. साल 1993 में सिंघा शिमला से पहली बार विधायक चुने गए थे. तब उन्होंने महज़ 158 वोटों से चुनाव जीता था. 2012 में भी सिंघा ठियोग से ही चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था और तीसरे नम्बर पर रहे थे. चुनाव बेशक हारे लेकिन जनता के लिए मुद्दे उठाते रहे शायद यही वजह है जनता ने इस बार उन्हें इसका इनाम भी दिया. खेतिहर मजदूरों और किसानों के समर्थन मूल्य से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए मशहूर सिंघा के जीतने से क्षेत्र की जनता उम्मीद कर रही है ना सिर्फ ठियोग बल्कि पूरे हिमाचल के शोषित तबकों की आवाज़ विधानसभा में उठेगी. सिंघा के जीतने की खुशी में हिमाचल के पारंपरिक नृत्य लोग कर रहे हैं.
वामपंथी दल जिस तरह देशभर में राजनीतिक हाशिये पर चल रहे हैं ऐसे में सिंघा की जीत उनके लिए कुछ सुकून भरी है.
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