झारखंड में धान बिक्री का पैसा नहीं मिलने से कर्जदार बन रहे हैं किसान, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
झारखंड में इस बार सरकार का धान खरीद का लक्ष्य 30 लाख क्विंटल था लेकिन 15 मई तक खरीद उससे ज्यादा करीब 37 लाख 97 हजार क्विंटल की हुई है. बावजूद सरकार ने 25 हजार से ज्यादा किसानों को महीनों बीतने के बाद भी भुगतान नहीं किया.
रांची: झारखंड, वो राज्य जहां जल, जंगल और जमीन की बात होती है. जहां के लिए आदिवासी और किसान पहली प्राथमिकता में आते हैं. लेकिन इस राज्य में धान के 25 हजार से ज्यादा किसानों को अपनी बेची हुई फसल का ही पैसा नहीं मिल पा रहा है. आखिर क्यों हम ये कह रहे हैं कि सरकार की नीतियों या कमियों की वजह से किसान कर्जदार बन रहे हैं?
झारखंड में धान और सब्जी की खेती सबसे अधिक होती है, पूरे राज्य में अगर धान के किसानों की बात करें तो संख्या लाखों में है, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने चुनाव से पहले धान के समर्थन मूल्य 18.85 + 1.15 बोनस = 20 रुपये को बढ़ाकर 25 रुपये प्रति किलो करेंगे. लेकिन धान का समर्थन मूल्य बढाना तो दूर किसानों को 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भी जो पैसा मिलना चाहिए उसका भुगतान भी अभी तक नहीं किया है.
किसान ऐसे बन रहे कर्जदार नित्यानंद और धनंजय नाम के दोनों ही किसान सोनाहातू में रहते हैं. नित्यानंद ने 25 क्विंटल तो धनंजय ने 13 क्विंटल धान बेचा था. मोबाइल में मैसेज भी आया है कि 7 दिनों में ही पैसे का भुगतान हो जाएगा लेकिन हुआ नहीं. एबीपी न्यूज से कहा हमने तो मई महीने में ही बेचा है, लेकिन जिन्होंने फरवरी में बेचा उनका नहीं आया तो हमने उम्मीद ही छोड़ दी है.
दानादिह में रहने वाले हकीम ने 16 क्विंटल धान की फसल मार्च में बेची थी, फसल का पैसा तो नहीं मिला लेकिन बेचने का प्रमाण रसीद जरूर कल मिली है. यानी 2 महीने बाद रसीद मिली है तो पैसे कब मिलेंगे आप समझ सकते हैं. कहते हैं कि खेती करते हैं और ट्रैक्टर चलाते हैं, धान की पिछली फसल का पैसा नहीं मिला है और फिर से धान रोपाई का समय आ गया है ऐसे में कर्ज लेने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.
इसी तरह सदानन्द महतो ने भी 48 क्विंटल धान मार्च में बेचा लेकिन पैसा अभी तक नहीं आया है, अगली फसल लगाने के लिए KCC से लोन लेंगे. विशेश्वर महतो ने भी 87 क्विंटल 800 ग्राम धान 21 मार्च को बेचा था. उम्मीद थी समय से पैसा मिल जाएगा तो अगली फसल भी लगाएंगे और अपने लिए भी कुछ करेंगे लेकिन मिला कुछ नहीं. अभी तक इंतजार कर रहे हैं.
बिदेशी पातर वो व्यक्ति है जो स्थानीय स्तर पर धान की खरीद करते हैं, इनके यहां कुल 352 किसानों ने धान बेचा था जिसमें से 30 प्रतिशत लोगों को ही पैसा मिल पाया है बाकियों को नहीं, पूछने पर बताया कि शायद जल्दी मिल जाए.
सरकार ने लक्ष्य से ज्यादा खरीदा धान झारखंड में इस बार सरकार का धान खरीद का लक्ष्य 30 लाख क्विंटल था लेकिन 15 मई तक खरीद उससे ज्यादा करीब 37 लाख 97 हजार क्विंटल की हुई है. उम्मीद से ज्यादा खरीद होने के बावजूद सरकार ने 25 हजार से ज्यादा किसानों को महीनों बीतने के बाद भी भुगतान नहीं किया. ऐसे में किसानों के सामने धान की अगली फसल की रोपाई करने के लिए कर्ज लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है.
झारखंड में धान की फसल की खरीद कराने का काम सहकारिता मंत्रालय का है जबकि किसानों को पैसा देने का काम वित्त विभाग का है, इसलिए एबीपी न्यूज़ ने झारखंड सरकार के वित्त मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव से जब किसानों से जुड़े इस मुद्दे पर सवाल किया तो उन्होंने भुगतान न हो पाने का एक अजीबो गरीब कारण बताया.
उन्होंने कहा कि हमें धान के किसानों की समस्या पता है. ये भी जानते हैं कि उनको पैसा नहीं मिल पाया है. इसको लेकर हमने पत्र लिखा है जल्दी ही पैसा मिल जाएगा. लेकिन उनको भी लाकडाउन में धैर्य रखना चाहिए और समझना चाहिए कि यहां कितनी दिक्कत है कोरोना से, हमारे पास कमी पैसों की नहीं बल्कि कमी कर्मचारियों की है. यहां से पैसा भेजते हैं लेकिन जिले के स्तर पर पैसा अटका रहता है. पैसा कम नहीं है कर्मचारी कम हैं.
25 हजार किसानों को अभी तक भुगतान नहीं झारखंड में अगर धान के किसानों की बात करें तो कुल 1 लाख 38 हजार किसान धान की खेती करते हैं. लेकिन इसमें से 25 हजार किसानों को अभी तक भुगतान नहीं किया गया है. हैरानी की बात ये है कि सरकार इन किसानों को पैसे न दे पाने के पीछे का कारण पैसों की कमी नहीं बल्कि स्टाफ की कमी होना बता रही है.
किसानों की मुफलिसी का चक्का और कर्ज का जाल कैसे बुना जाता है इसे अगर समझना हो तो ये सबसे बेहतर उदाहरण है. फसल का दाम किसानों को समय पर नहीं मिलेगा तो किसान मजबूरी में अगली फसल के लिए लोन लेगा और फिर उसको भरने में पसीने निकल जाएंगे. फिर 5 साल बाद चुनाव में सरकार इसी कर्ज को माफ करने के मुद्दे से चुनाव लड़ेगी और इन्ही किसानों का वोट लेकर सत्ता में आएगी. ये सिलसिला चलता चला आ रहा है.
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