26/11 आतंकी हमला: मुंबई 26/11 आतंकी हमले की आज दसवीं बरसी है. हमले में जिंदा पकड़े गए एकमात्र आतंकी अजमल कसाब ने साजिश से जुड़ी जो भी जानकारी दी थी वो तो चार्जशीट में दर्ज है लेकिन अपनी फांसी से पहले भी उसने कुछ बातें बताई थी जो कि अबतक चंद पुलिस और जेल अधिकारियों की यादों में ही कैद है. कसाब की फांसी के 6 साल बाद मुम्बई हमले के मुख्य जांच अधिकारी रमेश महाले और आर्थर रोड जेल की तत्कालीन जेलर स्वाति साठे ने पहली बार ABP News के कैमरे पर वे बातें बतायीं जो अबतक सामने नहीं आयी थीं और जिनसे कसाब की उस मानसिकता का पता चलता है जिससे वो बेगुनाहों की जान लेने के लिए पाकिस्तान से मुंबई आया था.


मुंबई आतंकी हमले के गुनहगार अजमल आमिर कसाब को 21 सितंबर 2012 की सुबह पुणे की यरवदा जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. कसाब की मौत से पहले भारतीय जांच एजेंसियां पाकिस्तान में रची गयी मुंबई हमले की साजिश से जुड़ी एक-एक जानकारी उससे निचोड़ ली थी. सीनियर इंस्पेक्टर रमेश महाले मुंबई आतंकी हमले के मुख्य जांच अधिकारी थे. कसाब पकड़े जाने के बाद करीब 80 दिनों तक महाले की हिरासत में रहा. महाले ने अपने 98 अधिकारियों की टीम के साथ मिलकर कसाब के खिलाफ साढ़े 11 हज़ार पन्नो की चार्जशीट अदालत में दायर की थी. महाले के मुताबिक कस्टडी में वे कसाब से सख्ती से नहीं पेश आते थे.


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महाले के अपने प्रति नरम बर्ताव को देखकर कसाब उनसे खुल गया था. वो इनसे गपशप भी करता और कई बार बहस भी. एक ऐसी ही बहस के दौरान भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रति उसके नज़रिये का पता चला. कसाब को यकीन था कि उसे कभी फांसी नहीं होगी. उसने महाले को अफजल गुरु की मिसाल देते हुए कहा जब 8 साल से तुम लोग उसे फांसी नहीं दे सके तो मुझे क्या दोगे? कसाब को फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए महाले ही उसे आर्थर रोड जेल से पुणे ले गए थे. महाले से आखिरी बातचीत में कसाब ने माना कि उसे फांसी को लेकर गलतफहमी थी. उसने महाले से कहा मैं हार गया.


पुलिस कस्टडी में कसाब को एक तरह से इंस्पेक्टर महाले से लगाव से हो गया था. खासकर महाले ने ईद के मौके पर जब उसे 2 जोड़ी कपड़े गिफ्ट किये तो वो काफी खुश हो गया और उसने मुकदमा चलाने वाले जज एमएल तहलानी को भी ये बात बताई. 26 नवंबर 2008 की रात जब कसाब एक एनकाउंटर नें पकड़ा गया था तब उसने जो टी शर्ट और कार्गो पैंट पहन रखी थी वही वो पुलिस कस्टडी में भी कई दिनों तक पहन रहा था. कसाब ने मुम्बई हमलों के दौरान कई पुलिसकर्मियों की भी हत्या की थी जिनमे एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, एडिशनल कमिश्नर अशोक काम्टे और इंस्पेक्टर विजय सालस्कर भी शामिल थे.


इन हत्याओं की वजह से मुम्बई पुलिस में कसाब के प्रति जबरदस्त गुस्सा था, चूंकि कसाब महाले की कस्टडी में ही था इसलिये उन्हें चिंता थी कि गुस्से में आकर कहीं कोई पुलिसकर्मी कसाब का गला न घोंट दे. कसाब को 2012 में फांसी होने से 2 दिनों पहले तक मुंबई के आर्थर रोड जेल में रखा गया था. कसाब को अति सुरक्षित अंडा सेल में रखा गया था. वो किसी दूसरे कैदी से बात नहीं कर सकता था. अगर कोई उससे बात करता था तो वे थे जेल के अधिकारी, गार्ड और डॉक्टर.


महाराष्ट्र जेल विभाग की डीआईजी स्वाति साठे साल 2008 में मुंबई की आर्थर रोड जेल में सुपरिटेंडेंट थीं. कसाब को फांसी दी जानेवाली टीम में भी साठे शामिल थीं. जेल में कसाब अक्सर साठे से बात करता था. साठे के मुताबिक कसाब ने एक बार बताया था कि पाकिस्तान में जहां से वो आया है वहां आतंकी हमले में शहीद होनेवालों को सिर आंखों पर बिठाया जाता है. शहर के गणमान्य लोग एक जलसे का आयोजन करते हैं और शहीद के मां बाप के पैरों के पास बैठते हैं.


स्वाति साठे के मुताबिक फांसी से पहले कसाब की हालत काफी खराब हो गयी थी. वो अपने होशोहवास खो बैठा था. फांसी के तख्ते पर ले जाते वक्त तक वो भावनाशून्य हो चुका था और उसे अंदाजा नहीं था कि कुछ पलों बाद वो अपनी जिंदगी से महरूम होनेवाला है.


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