आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और लगभग सभी सरकार-निजी संस्थानों में महिला शक्ति को सलाम करते हुए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दिन नारी शक्ति के सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं हालांकि जब हम करीब से देखते हैं तो देश की महिलाओं की ऐसी स्थिति सामने आती है जो हमें शर्मसार कर सकती है. चाहे महिला घर पर हो या कार्यस्थल पर, पब्लिक प्लेस में हो या संस्थानों में-उन्हें छेड़छाड़, भद्दे कमेंट्स और गैरजरूरी थपथपाहट, मौखिक गालियां, जबरदस्ती की पकड़ और शारीरिक शोषण को से लेकर रेप तक की घटनाओं को झेलना पड़ता है.
2018 में भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक देश घोषित किया गया था
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने साल 2018 में भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश घोषित किया था. यहां तक कि एनसीआरबी ने 2019 में कहा था कि महिलाओं के खिलाफ दर्ज 4 लाख मामलों में से 32,033 मामले रेप से संबंधित थे. अब भी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है और अधिकतर महिलाएं अपने खिलाफ हुई ज्यादती के मामलों को रिपोर्ट नहीं करती हैं क्योंकि उन्हें धमकियां मिलती हैं और प्रताड़ित किया जाता है.
लोकल सर्किल्स ने किया बड़ा सर्वे
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर लोकल सर्किल्स ने नागरिकों से उनकी राय जानने की कोशिश की जिससे महिलाओं के लिए बेहतर भारत बनाने की दिशा में ठोस काम हो सके. इस सर्वेक्षण के जरिए लोकल सर्किल्स ने ये जानने की कोशिश की- कौनसे स्थान महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित हैं और नारियों के लिए शिकायत दर्ज कराना कितना आसान है या पुलिस का सामना करना कैसा अनुभव होता है. इस सर्वे के लिए भारत के 319 जिलों में 14,000 यूनीक नागरिकों से 24,000 से ज्यादा रिस्पॉन्स हासिल किए गए और उनके आधार पर ये नतीजा दिया गया.
महिलाओं के खिलाफ पब्लिक प्लेस पर यौन हिंसा आपराधिक कृत्य है
महिलाओं के खिलाफ पब्लिक प्लेस पर यौन हिंसा सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के तहत आईपीसी की धारा में आपराधिक कृत्य में शामिल है. इसमें महिलाओं की इच्छा के खिलाफ पोर्नोग्राफी दिखाना, महिला की इच्छा के खिलाफ फिजिकल कॉन्टेक्ट करना, यौन भावभंगिमाएं, सेक्शुअल फेवर मांगना, सेक्शुअल कमेंट करना आदि काम शामिल हैं और ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. हालांकि सरकारी और प्राधिकरणों के कम प्रयासों के चलते पब्लिक प्लेस पर महिलाओं को अपराधों के प्रति कमजोर देखा जा रहा है. इसी से जुड़े सर्वे के सवाल हैं जो आपको देश में महिलाओं की स्थिति को साफ तौर पर दर्शा पाएंगे.
सर्वे में पूछा गया- भारत में पब्लिक प्लेस ( ट्रेन, बसें, स्टेशनों, भीड़भाड़ वाली जगहों वगेरह) पर छेड़छाड़ और यौन शोषण कितना आम या सामान्य है?
इसके जवाब में 54 फीसदी लोगों ने कहा कि ना तो उन्होंने ना उनके किसी परिवार के सदस्य ने ऐसा एक्सपीरीएंस किया है. 9 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने खुद या उनके किसी परिवार के सदस्य ने ऐसा कई बार अनुभव किया है. 20 फीसदी ने कहा कि उन्होंने खुद या उनके किसी परिवार की सदस्य ने ऐसा एक या दो बार अनुभव किया है. इस तरह सर्वे से ये साफ हुआ है कि 29 फीसदी महिलाओं ने पब्लिस प्लेस पर छेड़छाड़ या यौन शोषण को झेला है और 9 फीसदी तो ऐसी हैं जिनके साथ ऐसा कई बार हुआ है. इस सवाल के जवाब में 8347 रेस्पॉन्स मिले और वहीं दूसरी तरफ 17 फीसदी लोगों ने कहा कि वो श्योर नहीं हैं या कह नहीं सकते कि उनके परिवार में छेड़छाड़ या यौन शोषण की घटना हुई है. इससे संकेत मिलता है कि इस तरह की घटना से गुजरने वाली महिलाओं की संख्या 40 फीसदी से भी ज्यादा हो सकती है. समाज के तौर तरीकों को देखते हुए ये कह सकते हैं कि कई महिलाओं ने ऐसा झेला है पर अपने परिवार को इसके बारे में नहीं बताया है.
सर्वे का अगला सवालः पब्लिक प्लेस में कहां सबसे ज्यादा छेड़छाड़ या यौन शोषण का सामना किया?
इस सवाल के जवाब में 23 फीसदी ने कहा कि ट्रेन और रेलवे स्टेशनों पर ऐसा हुआ. 17 फीसदी ने कहा कि लोकल ट्रेनों, मेट्रो या इसके स्टेशनों पर ऐसा हुआ. 20 फीसदी ने कहा कि भीड़भाड़ वाले समारोहों में ऐसा हुआ. 7 फीसदी ने कहा कि धार्मिक स्थानों पर ऐसा हुआ और 10 फीसदी ने बाजार को ऐसी घटना वाली जगह बताया. 17 फीसदी ने कहा कि सड़कों पर ऐसा हुआ और 6 फीसदी ने ऐसा अनुभव अन्य जगहों पर किया. इस पोल में 7966 रेस्पॉन्स में संकेत मिला कि ट्रेन, स्टेशंस, पब्लिक गैदरिंग, सड़कें ही ही वो जगहें हैं जहां सबसे ज्यादा छेड़छाड़ का सामना महिलाओं को करना पड़ा.
सर्वे का फाइनल सवाल था कि जब आपने या आपकी पब्लिक प्लेस पर छेड़छाड़ या यौन शोषण को झेला तो उन्होंने इसके खिलाफ क्या एक्शन लिया?
इस सवाल के जवाब में 23 फीसदी ने कहा कि उन्होंने पुलिस में शिकायत की या एफआईआर फाइल की. 15 फीसदी ने कहा कि उनकी भरपूर कोशिशों के बाद भी पुलिस ने उनकी शिकायत रजिस्टर नहीं की और कोई एक्शन नहीं लिया. वहीं 3 फीसदी ने कहा कि पुलिस ने एफआईआर रजिस्टर नहीं की पर आरोपियों को पीटा. 3 फीसदी ने कहा कि जनता उनके साथ गई पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की. 18 फीसदी ने कहा कि उन्हें मौके पर ही पीटा गया लेकिन एफआईआर या शिकायत फाइल नहीं की गई. 15 फीसदी ने कहा कि उन्होंने पुलिस में शिकायत या एफआईआर ना कराने का फैसला लिया. वहीं 23 फीसदी ने कोई एक्शन नहीं लिया. इस सवाल के जवाब में 7697 लोगों ने रेस्पॉन्स दिया और इससे साफ हुआ कि सिर्फ 23 फीसदी ने ही पुलिस में शिकायत या एफआईआर दर्ज कराई.
कैसे हुआ सर्वे
इस सर्वे के लिए देश के 319 जिलों में से 24,000 रेस्पॉन्स हासिल किए गए और 65 फीसदी पुरुष थे और 35 फीसदी जवाबकर्ता महिलाएं थीं. 50 फीसदी जवाब देने वाले टियर 1 शहरों से, 29 फीसदी टियर 2 शहरों से और 21 फीसदी लोग टियर 3, 4 और ग्रामीण जिलों से थे. इस सर्वे को लोकलसर्किल्स के प्लेटफॉर्म्स पर कराया गया था और सभी भाग लेने वाले वैलिड नागरिक हैं जिन्हें इस सर्वे में भाग लेने के लिए लोकल सर्किल्स के साथ रजिस्टर्ड होना जरूरी था.
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