Gauhati HC On Fake Encounter: गुवाहाटी हाई कोर्ट ने गुरुवार (9 मार्च ) को एक बड़ा फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय ने 29 साल पहले असम के तिनसुकिया जिले में सेना के एक अभियान में मारे गए पांच युवकों के परिवारों को मुआवजा देने का फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि मृतकों के परिजनों को 20-20 लाख रुपये दिए जाएं. 


न्यायमूर्ति अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और रॉबिन फुकन की बेंच ने कहा, "न्याय के हित में हम सेना के अधिकारियों के माध्यम से भारत संघ को पांच मृतकों के परिवार के सदस्यों को पर्याप्त मुआवजे का भुगतान करने का आदेश देते हैं." कोर्ट ने दो महीने के भीतर मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया है. इतना ही नहीं मुआवजा परिवार में किसे मिले, इसके लिए कोर्ट ने तिनसुकिया जिला न्यायाधीश को मृतक के परिवार के सदस्यों को नोटिस जारी करने के लिए कहा. 


'सैन्य अभियान में हुई थी 5 की मौत'


साथ ही यह पता लगाने को कहा कि उनमें से कौन मुआवजा राशि प्राप्त करने का सबसे अधिक हकदार होगा. पीठ ने कहा, "न्यायिक जांच के आदेश की निरर्थकता के संबंध में विवाद पर विचार करते हुए, हमारा विचार है कि एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश की बजाय कि क्या मौत कानून द्वारा स्वीकार्य तरीके से हुई या अलग तरीके से, हम इस स्थिति को स्वीकार करते हैं कि पांच लोगों की मौत एक सैन्य अभियान में हुई थी."


कोर्ट में दायर की गई थीं 2 याचिकाएं


कोर्ट ने यह आदेश फरवरी 1994 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के तत्कालीन उपाध्यक्ष जगदीश भुइयां और मृतकों में से एक के बड़े भाई दीपक दत्ता की ओर से दायर दो याचिकाओं पर दिया. प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) की ओर से एक चाय बागान प्रबंधक की हत्या के बाद फरवरी 1994 में तिनसुकिया जिले के डूमडूमा सर्कल से सेना ने नौ लोगों को उठाया था, जिनमें से पांच युवक ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ के सदस्य थे. यह मामला इन्हीं पांच युवकों की मौत से संबंधित है. 


जानिए क्या है पूरा मामला?


उल्फा की ओर से एक चाय बागान प्रबंधक की हत्या की जांच के सिलसिले में सेना ने 17 और 19 फरवरी 1994 के बीच नौ युवकों को हिरासत में लिया था. 1 मार्च को तिनसुकिया अदालत में 9 में से 4 लोगों को पेश किया गया था. बाकी के 5 (प्रबीन सोनोवाल, अखिल सोनोवाल, देबजीत बिस्वास, प्रदीप दत्ता और भूपेन मोरन) कथित रूप से सेना के एक ऑपरेशन में मारे गए थे. उनके शव पुलिस को सौंप दिए गए थे. 


फैसले पर क्या बोले याचिकाकर्ता?


कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जगदीश भुइयां ने कहा, "इससे पता चलता है कि भले ही न्याय में देरी हुई हो, लेकिन उसे नकारा नहीं गया." हालांकि उन्होंने आरोपियों को कोई सजा नहीं सुनाने पर आश्चर्य जताया. उन्होंने कहा, "हमें आश्चर्य है कि एक कोर्ट मार्शल की कार्यवाही में सेना के जवानों को उचित प्रक्रिया के बाद दोषी पाया गया, उन्हें बाद में कैसे दोषी नहीं ठहराया गया."


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