नई दिल्ली: करीब 300 साल तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी का दिन देखना नसीब तो हुआ, लेकिन अपना एक हिस्सा गंवाने की शर्त पर. भारत को दो भागों में बांटने वाली योजना का नाम था- माउंटबेटन योजना, जिसे तीन जून 1947 को भारत के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने पेश किया था. भारत के बंटवारे की इस घटना को ‘तीन जून योजना’ या ‘माउंटबेटन योजना’ के तौर पर जाना जाता है.


देश में दंगे हो रहे थे और केंद्र में कांग्रेस की अंतरिम सरकार हालात को काबू में नहीं कर पा रही थी, क्योंकि कानून-व्यवस्था का मामला प्रांतों के पास था. लिहाजा, राजनीतिक और सांप्रदायिक गतिरोध को खत्म करने के लिए ‘तीन जून योजना’ आई, जिसमें भारत के बंटवारे और भारत-पाकिस्तान को सत्ता के हस्तांतरण का विवरण था.


'माउंटबेटन योजना' क्या थी


ब्रिटिश सरकार ने फरवरी 1947 को भारत को आजाद कर देने का ऐलान किया था. भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटेन को भारत की आजादी का खाका तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. माउंटबेटेन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ लंबे विचार विमर्श के बाद 3 जून 1947 को भारत को दो देशों में विभाजित करने की योजना का खाका पेश किया गया. इसी योजना के आधार पर भारत को अंग्रेजों से मुक्ति मिली लेकिन पाकिस्तान के रुप में भारत का एक बड़ा हिस्सा भी अलग हो गया.


माउंटबेटन योजना के खास प्वाइंट




  • भारत को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटकर दो देश बनाए जाएंगे. एक भारत और दूसरा पाकिस्तान

  • दोनों देशों का अलग संविधान होगा और अलल संविधान सभा का गठन किया जाएगा

  • भारत की 500 से ज्यादा रियासतों को छूट दी गई कि वो अपनी मर्जी से चाहें पाकिस्तान में मिल जाएं या भारत में ही रहें. अगर चाहें तो रियासतें स्वतंत्र रूप से भी रह सकती थी

  • पंजाब और बंगाल में हिंदू व मुसलमान बहुसंख्यक जिलों को अलग प्रांत बनाने का विकल्प दिया गया

  • उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत और असम के सिलहट जिले के लोगों की इच्छा जानने के लिए जनमत संग्रह कराने का प्रावधान भी किया गया


माउंटबेटन योजना को भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के रुप में ब्रिटिश सरकार ने मान्यता दी. भारत की आजादी के लिए भारतीय नेताओं ने माउंटबेटन योजना के आगे घुटने टेक दिए.


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