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30 September: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया बाबरी पर फैसला, राम मंदिर का रास्ता किया था साफ

First Historic Decision On Ram Temple: 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था.

30 September 2010 Historic Decision On Ayodhya : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण अंतिम चरण में है. 2024 की 26 जनवरी से पहले इस मंदिर के कपाट आम लोगों के लिए खोल दिए जाएंगे जहां रामलला के दर्शन का सैकड़ो सालों का सपना साकार होगा. लेकिन त्रेता युग की माता शबरी की तपस्या की तरह भगवान राम के इस भव्य मंदिर निर्माण के लिए राम भक्तों ने भी कम तपस्या नहीं की. मंदिर निर्माण के लिए कई पीढ़ियों की कोशिशों को पहली सफलता 30 सितंबर 2010 को मिली थी.

यही तारीख रामनगरी के इतिहास में नई सुबह लेकर आई थी, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. कोर्ट ने रामलाल, निर्मोही अखाड़े और वफ्फ बोर्ड को एक-एक हिस्सा देने का फैसला सुनाया था.

इसके बाद राम भक्तों को इस बात की उम्मीद हो चली थी कि न्यायिक प्रक्रिया से अयोध्या में उसी जगह पर भव्य राम मंदिर बनाने का पीढ़ियों का सपना साकार हो सकता है. चलिए आज हम आपको सिलसिलेवार इस मुकदमे से जुड़ी जानकारी देते हैं.

80 के दशक में शुरू हुआ जन आंदोलन

आजादी के बाद राम मंदिर आंदोलन को सबसे अधिक धार खासकर 80 के दशक में मिली. मंदिर निर्माण के लिए 21 जुलाई 1984 को महंत अवेद्यनाथ ने श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की स्थापना की. 7 अक्तूबर 1984 को मंदिर में लगे ताले को खोलने की मांग करते हुए सरयू नदी के किनारे विशाल जनसभा हुई.

इसके बाद दूसरी जनसभा 31 अक्तूबर 1985 को उडुपी में हुई. यहां ताला खोलने के लिए अंतिम तिथि 8 मार्च 1986 महाशिवरात्रि के दिन तय की गई. इसी दौरान मंडल-कमंडल का शोर भी शुरू हुआ. कानूनी रास्ता अख्तियार करते हुए उसके पहले ही 31 जनवरी 1986 को जिला न्यायालय में ताला खोलने की मांग की गई थी.

एक फरवरी 1986 को न्यायमूर्ति कृष्णमोहन पांडेय ने श्रीराम जन्ममंदिर में लगा ताला खोलने का आदेश दिया. इसके बाद सरकार ने ताला खुलवाया. तीन फरवरी को मो. हाशिम कुरैशी व जफरयाब जिलानी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की जो निरस्त हो गई.

फिर 12 मई 1986 को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका दायर की. श्रीरामजन्मभूमि न्यास भी विश्व हिंदू परिषद की छत्रछाया में बनाया गया. केंद्र में बीजेपी की सरकार आने पर 67.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया. इसके बाद उत्तर प्रदेश में सियासी रुख बदला और कल्याण सिंह की सरकार आ गई. तब न्यास को 40 एकड़ भूमि लीज पर दे दी गई. 

पूरे देश से उठी मंदिर बनाने की गूंज

1992 का वह ऐतिहासिक साल भी आया जब "राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे" की गूंज पूरे भारत से उठी. देश भर से मंदिर निर्माण के लिए ईंटें लेकर राम भक्तों की टोली अयोध्या के लिए कूच कर गई. 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाया गया. सर्वोच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर 1992 को दर्शन-पूजन का 1950 का न्यायालीय आदेश स्थिर रखते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी करके संपूर्ण मंदिर परिसर को अधिगृहीत कर लिया. मामले में 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया. एक हिस्सा विराजमान रामलला पक्ष को, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट से हुआ अंतिम फ़ैसला

बाद में सभी पक्षों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. हिंदू पक्ष पूरी जमीन पर दावा ठोक रहा था जबकि सुन्नी वफ्फ बोर्ड भी वहां मस्जिद की भूमि बताते हुए उस पर अपना दावा नहीं छोड़ रहा था. आखिरकार अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुना दिया है और भव्य मंदिर निर्माण अपने अंतिम चरण में है.

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