नई दिल्ली: अयोध्या पर सुनवाई के 30वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, “रामायण या रामचरितमानस में जन्मभूमि का जिक्र न होने से हिंदू आस्था प्रभावित नहीं होती. हिंदुओं को यह मानने से नहीं रोका जा सकता कि जन्मस्थान कहां पर है. वह किसी विशेष जगह पर आस्था रख सकते हैं.“


कोर्ट ने यह टिप्पणी मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी की दलील पर की. जिलानी ने कहा था कि रामायण और रामचरित मानस में राम के जन्मस्थान को लेकर कुछ नहीं कहा गया है. बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “किसी जगह का जिक्र किसी ग्रंथ में न होने का अर्थ यह नहीं है कि उस जगह का अस्तित्व ही नहीं.“


‘चबूतरा था जन्मस्थान’
बेंच के सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने जिलानी से पूछा कि क्या वह इस बात पर बहस करना चाहते हैं कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म नहीं हुआ. जिलानी ने कहा, “इस बात पर तो बहस हो ही नहीं सकती. हम यह कह रहे हैं कि जिस जगह पर मस्जिद थी, वह जगह जन्मस्थान नहीं है.“ इसके बाद कोर्ट ने पूछा कि क्या वह यह मानते हैं कि जहां पर राम चबूतरा था वही जन्मस्थान है. जिलानी का जवाब था, “हां, हम यह मानते हैं, क्योंकि पहले भी तीन बार अलग-अलग कोर्ट यह कह चुकी है.“


हालांकि कोर्ट ने जिलानी के इस बयान पर तुरंत सवाल उठाया. कोर्ट ने कहा कि किसी कोर्ट ने चबूतरा को जन्मस्थान घोषित नहीं किया है. जिलानी अपनी दलीलों से मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन की कल की बात को आगे बढ़ाते नजर आए. कल धवन ने यह कहा था कि वह यह मान लेते हैं कि उस जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था. लेकिन मुस्लिम पक्ष को वहां से पूरी तरह से बाहर नहीं किया जाना चाहिए.


सीता कुंड से दूरी का सवाल
कोर्ट ने जन्मस्थान को लेकर उपलब्ध तथ्यों पर भी सवाल किए. कोर्ट ने पूछा, “यह माना जाता है कि सीता कुंड से पश्चिम में 200 फीट की दूरी पर जन्म स्थान है. क्या आप हमें बता सकते हैं कि वह जगह मस्जिद है या राम चबूतरा?” जिलानी का जवाब था, “यह बता पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि दोनों एक दूसरे के अगल-बगल हैं.“


कोर्ट ने बाबर के पोते अकबर के दौर में लिखी गई किताब आईने अकबरी में मस्जिद का विवरण न होने पर भी जवाब मांगा. कोर्ट ने पूछा, “आईने अकबरी में उस दौर के भारत की हर छोटी छोटी बात का विवरण है. अयोध्या में मस्जिद का जिक्र उस किताब में क्यों नहीं है?” जिलानी ने कहा, “उसमें बड़ी-बड़ी बातों का जिक्र है. फैज़ाबाद की मस्जिद का उल्लेख शायद इसी वजह से नहीं था.“ कोर्ट ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा, “शहंशाह के आदेश पर बनवाई गई मस्ज़िद इतनी छोटी चीज़ कैसे हो गई कि उसका किताब में ज़िक्र ही न हो?”


‘खाली जमीन पर बनी थी मस्ज़िद’
जिलानी से कोर्ट ने पूछा कि मस्जिद पुराने मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, उसके अवशेष पर बनाई गई थी या खाली जमीन पर? जिलानी का जवाब था, “मस्जिद खाली जमीन पर बनाई गई थी. अगर बाबर के आदेश पर अयोध्या में मंदिर को तोड़ा गया होता तो उसके बारे में इतिहास में लिखा गया होता. बाबर से सैकड़ों साल पहले महमूद गजनवी ने कई मंदिर तोड़े थे. उनका विवरण इतिहास की किताबों में दर्ज है.“


‘मस्ज़िद में पढ़ी जाती थी नमाज’
आज सुनवाई की शुरुआत में मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कल की अपनी दलीलों को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा, “हम यह स्वीकार करते हैं कि भारत पर धर्म को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. जहां पर देवी सती के अंग गिरे, कामाख्या समेत ऐसी हर जगह पर मंदिर बने हैं.“ बेंच के सदस्य जस्टिस बोबडे ने धवन को टोकते हुए कहा,” ऐसा एक मंदिर पाकिस्तान में भी है.“ धवन ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “लेकिन अयोध्या में इमारत के पास लगी रेलिंग पर लोगों की पूजा से यह साबित नहीं होता कि वहां पर मंदिर था.“


धवन ने यह भी कहा कि विवादित इमारत मस्जिद थी और वहां नमाज पढ़ी जाती थी. बाद में दबाव के चलते मुसलमानों ने वहां जाना तो छोड़ दिया लेकिन उनका मालिकाना हक बना हुआ था. कोर्ट को मामले का निपटारा करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए.


धवन ने मंदिर तोड़ कर बनी इमारत के शरीयत के हिसाब से मस्ज़िद न होने के दावे पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा, “गनी नाम के मुस्लिम गवाह ने इमारत हिंदुओं को सौंप देने की बात कही थी. लेकिन उससे सवाल-जवाब नहीं हो सके थे. हाई कोर्ट के 3 जजों में से 2 ने इस आधार पर उसकी गवाही को नहीं माना था.“


इस हफ्ते पूरी होगी मुस्लिम पक्ष की जिरह
आज भी कोर्ट ने कार्रवाई खत्म होने के नियमित समय से 1 घंटा ज्यादा, शाम 5:00 बजे तक सुनवाई की. सुनवाई पूरी करने के लिए तय टाइम लाइन के हिसाब से इस हफ्ते मुस्लिम पक्ष की जिरह खत्म हो जाएगी. इसके बाद हिंदू पक्ष जवाब देगा.