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अयोध्या केस : मुस्लिम पक्ष ने ASI के रिपोर्ट को अविश्वसनीय कहा, SC ने पूछा- अब इस दलील को क्यों सुनें?

अयोध्या पर 31वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने ASI की रिपोर्ट को अविश्वसनीय कहा, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अब इस दलील को क्यों सुनें? आज की सुनवाई के दौरान विवादित मस्जिद में 160 साल पहले सिखों की तरफ से ध्वज फहराए जाने की दिलचस्प घटना पर भी चर्चा हुई.

नई दिल्ली: अयोध्या मामले की सुनवाई के 31वें दिन आज मुस्लिम पक्ष ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर सवाल उठाए. मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है. इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि अगर उन्हें रिपोर्ट पर आपत्ति थी तो रिपोर्ट बनाने वालों से हाई कोर्ट में पूछताछ क्यों नहीं की? आज की सुनवाई के दौरान विवादित मस्जिद में 160 साल पहले सिखों की तरफ से ध्वज फहराए जाने की दिलचस्प घटना पर भी चर्चा हुई.

‘1857 में हिंदू सिपाही भी करते थे पूजा’ कल की जगह को आगे बढ़ा रहे मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने दावा किया कि मस्जिद को जन्म स्थान नहीं माना जा सकता. इस पर हिंदुओं ने बाद में दावा शुरू किया. कोर्ट ने उनसे जानना चाहा कि हिंदुओं ने कब वहां पूजा का अधिकार मांगा. जिलानी का जवाब था, “हिंदुओं के मस्जिद में पूजा करने का कोई सबूत नहीं है. बाद में राजनीतिक कारणों से मस्जिद को वास्तविक जन्मस्थान कहा जाने लगा.“ इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “लेकिन कार्नेगी समेत कुछ इतिहासकारों ने दर्ज किया है कि 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान हिंदू और मुसलमान मस्जिद के भीतर प्रार्थना किया करते थे.“

इस पर जिलानी ने कहा 1865 के बाद से हिंदुओं ने बाहर के राम चबूतरे पर दावा करना शुरू किया था. वह लोग उसी को जन्मस्थान कहते थे. वहीं पर पूजा करते थे. बेंच के एक और सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, “ऐसा शायद इसलिए हो सकता है क्योंकि 1858 में इमारत और चबूतरा के बीच अंग्रेजों ने रेलिंग बना दी. ऐसे में हिंदू इमारत में नहीं जा सकते थे. लेकिन हम यह जानना चाहते हैं कि क्या उससे पहले हिंदू वहां जाते थे?“

जिलानी ने जवाब दिया, “हिंदुओं के वहां जाने का कोई सबूत नहीं है पहली बार 1858 में कुछ सिख मस्जिद में घुस गए थे. उन्होंने वहां ध्वज फहरा दिया था. लेकिन कोर्ट को ध्यान रखना चाहिए कि वह हिंदू नहीं थे, बल्कि सिख थे. इस पर कोर्ट ने कहा, “सिख भी भगवान राम के प्रति श्रद्धा रखते हैं. उनकी धार्मिक पुस्तकों में भगवान राम के बारे में जिक्र है.“

सिखों ने फहराया मस्ज़िद में झंडा सिखों के विवादित इमारत में दाखिल होने की घटना का जिक्र हिंदू पक्ष ने भी अपनी दलीलों के दौरान किया था. 28 नवंबर 1858 को फैज़ाबाद में दर्ज FIR के मुताबिक उस दिन 25 निहंग सिख मस्जिद में घुस गए थे. वहां दाखिल होने के बाद उन्होंने वहां से निकलने से मना कर दिया. इमारत पर जगह-जगह राम लिख दिया. वहां पर हिंदू ध्वज फहरा दिया. इमारत के अंदर हवन और पूजा करने लगे. कई हफ्तों के बाद फैजाबाद के थानेदार उन्हें वहां से निकाल पाने में सफल हो सके थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी अपनी सुनवाई के दौरान इस घटना को विवादित इमारत पर हिंदुओं के दावे का एक अहम सबूत माना था.

पुरातत्व रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल जफरयाब जिलानी की दलीलें पूरी होने के बाद मुस्लिम पक्ष के लिए वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने जिरह शुरू की. उन्होंने पुरातत्व सर्वे की तरफ से विवादित जगह की खुदाई के बाद हाई कोर्ट में दी गई रिपोर्ट पर सवाल उठाए. जिरह की शुरुआत में उन्होंने कहा कि जब खुदाई हुई तब तक मस्जिद का मलवा वहां से हटाया जा चुका था. पुरातत्व विभाग ने उसे नहीं देखा था.

इसके बाद उन्होंने पुरातत्व के आधार पर जुटाई गई रिपोर्ट को विश्वसनीय मानने से मना किया. उन्होंने कहा, “आर्कियोलॉजी; फिजिक्स या केमिस्ट्री की तरह का विज्ञान नहीं है. यह धारणाओं और मान्यताओं के आधार पर काम करता है. इसमें कार्बन डेटिंग जैसी कुछ तकनीक का सहारा ज़रूर लिया जाता है. लेकिन मकसद इतिहास को लेकर मौजूद धारणाओं की पुष्टि होता है. इसे विश्वसनीय नहीं माना जा सकता.“ इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस बोबड़े ने उन्हें टोकते हुए कहा, “अगर आप पुरातत्व के विज्ञान होने या ना होने पर बहस करना चाहती हैं तो यह अलग से सुनवाई का मुद्दा हो सकता है.

‘मंदिर तोड़े जाने के सबूत नहीं’ मीनाक्षी अरोड़ा ने अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा की पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई के दौरान पक्षकारों की तरफ से दर्ज कराई गई आपत्तियों को रिपोर्ट में जगह नहीं दी. उन्होंने खुदाई के बाद जो रिपोर्ट बनाई, उसे उनका विचार कहा जा सकता है, सबूत नहीं. कोर्ट ने उनसे सवाल किया, “विवादित इमारत के नीचे विशालकाय मंदिर की रचना मिली. क्या आप इसे सबूत नहीं मानती?” वरिष्ठ वकील का जवाब था, “आर्कियोलॉजिकल सर्वे यह साबित करने में नाकाम रहा कि वहां पर किसी मंदिर को गिराया गया था. हो सकता है कि पहले उस जगह पर कोई इमारत रही हो और वह खुद ध्वस्त हो गई हो. उसके बाद खाली जमीन पर किसी के मस्जिद बना लेने को गलत नहीं कहा जा सकता.“

खुदाई में मिले अवशेष को ईदगाह बताया इसके बाद मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, “हिंदू पक्ष ने पुरातत्व विभाग की टीम को कोर्ट में गवाही के लिए नहीं बुलाया. इस बात को लेकर जानकारी नहीं है कि रिपोर्ट बनाने के दौरान पुरातत्व टीम ने किन-किन बातों पर चर्चा की और किस तरह से निष्कर्ष निकाला. यहां तक कि रिपोर्ट पर टीम के सदस्यों के दस्तखत भी नहीं थे.“ इसके बाद मुस्लिम पक्ष की वकील ने एक नई थ्योरी पेश करते हुए कहा, “जो ढांचा इमारत के नीचे मिला, वह ज़रूरी नहीं कि मंदिर ही हो. उसके पश्चिम में विशाल दीवार है. हो सकता है कि वह ईदगाह रही हो.“ कोर्ट ने कहा, “अगर आपको ऐसा लगता है तो यह बात भी हाई कोर्ट में कहनी चाहिए थी. आपने ऐसा नहीं किया.“

कोर्ट का अहम सवाल कोर्ट ने कहा, “पुरातत्व टीम ने अपना काम कोर्ट के आदेश पर किया था. उन्हें एक तरह से इस काम के लिए कमिश्नर नियुक्त किया गया था. अगर आपको पुरातत्व टीम की रिपोर्ट पर एतराज था तो आपने हाई कोर्ट में उन्हें गवाही के लिए बुलाए जाने की मांग क्यों नहीं की? आपको पूरा अधिकार था कि उनसे कोर्ट में बुलाकर पूछताछ करते लेकिन आपने ऐसा नहीं किया.“ कोर्ट का सवाल था कि जब मुस्लिम पक्ष ने हाई कोर्ट में चल रहे मुकदमे के दौरान एविडेंस एक्ट के तहत रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिए जाने पर आपत्ति दर्ज नहीं करवाई, तो अब अपील के दौरान उसकी बातों को क्यों सुना जाए? मीनाक्षी अरोड़ा ने कोर्ट से इस पर जवाब देने के लिए कल तक समय मांगा है.

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