नई दिल्ली: आपने श्रवण कुमार की वो कहानी ज़रूर सुनी होगी जिसमें वो अपने माता-पिता का भार कंधे पर उठाकर चार धाम की यात्रा कराने निकल पड़े थे. इस दौर में जब कलयुगी संतानों को उनकी तमाम बुराईयों के लिए जाना जाता है तब हरियाणा के पलवल के चार भाईयों ने श्रवण कुमार की कहानी को फिर से जीवंत कर दिया है. इन्होंने अपने माता-पिता को ठीक उसी तर्ज पर कंधे पर यात्रा करवाई जैसे श्रवण ने शांतुन और ज्ञानवंति को करवाई थी.
बेटों ने कराया नीलकंठ से मानसा देवी का सफर
हरियाणा के इन चार भाईयों ने अपने कांवड़ के सहारे अपने माता-पिता को हरिद्वार के नीलकंठ से पंचकुला के मानसा देवी तक का सफर तय करवाया. इसके बाद ये सब लोग अपने घर वापसी के सफर पर हैं.
आज के दौर के बच्चों के लिए संदेश
इस बारे में जब इन चारों के माता-पिता से बात की गई तब उन्होंने कहा कि उन्हें श्रवण कुमार के माता-पिता की तरह कोई दिक्कत तो नहीं है. लेकिन वो उन बच्चों को संदेश देना चाहते थे जो अपन मां-बाप का आदर नहीं करते हैं.
आज भी दी जाती है श्रवण कुमार की मिसाल
आपको बता दें कि हिंदू पौराणिक कथाओं में श्रवण कुमार के माता-पिता देखने में अक्षम थे और उस दौर में एक-जगह से दूसरी जगह जाने का खर्च भी बहुत ज़्यादा था. ऐसे में श्रवण ने अपने मां-बाप को बहंगी में बिठाकर चार धाम की यात्रा कराने का फैसला लिया. उनके इस फैसले की इस दौर में भी मिसाल दी जाती है.
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