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24 घंटों में हिमस्खलन-बर्फीले तूफान में चार जवानों की मौत, मास्टरस्ट्रोक में जानें कुदरत से लड़ने के लिए जवानों को कितनी मिलती हैं सुविधाएं

जम्मू-कश्मीर में पिछले दो हफ्तों से बर्फबारी हो रही है. पहाड़ों पर कई फीट तक बर्फ जम गई है और यही जवानों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है.

जम्मू-कश्मीरः जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से लगी सीमा देश के वीर जवानों के लिए फिर से घातक साबित हुई है. लेकिन इस बार मौत का कारण पाकिस्तान की गोलीबारी नहीं बल्कि कुदरत है. खूबसूरत सी दिखने वाली बर्फ ने कल भारतीय सेना के चार जवानों की जान ले ली, बर्फ के नीचे कल देश के वीर जवानों की आवाज दफ्न हो गई.

कुपवाड़ा और बांदीपुरा में कल दो एवलांच आए घाटी के कुपवाड़ा और बांदीपुरा में कल दो एवलांच आए और इस कुदरती आपदा में 4 जवान शहीद हो गए. पहला एवलांच मंगलवार दोपहर को कुपवाड़ा के तंगधार में आया. इस एवलांच की चपेट में सेना की चौकी आ गई. इस हिमस्खलन में चार जवान फंस गए जिसमें एक को बचा लिया गया लेकिन हवलदार राजेंद्र सिंह, सिपाही अमित और सिपाही कमल कुमार की जान चली गई.

एलओसी पर एक और हिमस्खलन की बुरी खबर जवान तीन साथियों की शहादत के गम से जवान अभी उभरे भी नहीं थे कि एलओसी पर एक और हिमस्खलन की बुरी खबर आई. दूसरा हिमस्खलन बांदीपुरा जिले में गुरेज सेक्टर में हुआ. हादसे के वक्त सेना के जवान इलाके में पेट्रोलिंग कर रहे थे. हिमस्खलन में दो जवान फंसे थे, जिसमें एक बच गया लेकिन नायक अखिल एसएस को बचाया नहीं जा सका. आज बांदीपोरा में भारतीय सेना ने पूरे सम्मान के साथ नायक अखिल एसएस को अंतिम विदाई दी.

24 घंटों में हिमस्खलन-बर्फीले तूफान में चार जवानों की मौत, मास्टरस्ट्रोक में जानें कुदरत से लड़ने के लिए जवानों को कितनी मिलती हैं सुविधाएं

सियाचिन जैसे इलाकों में तैनाती के लिए जवानों की होती है भारी तैयारी एवलांच जब आता है तो अपने साथ भारी तबाही लाता है. जम्मू-कश्मीर में पिछले दो हफ्तों से बर्फबारी हो रही है. पहाड़ों पर कई फीट तक बर्फ जम गई है और यही जवानों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. बर्फीले इलाकों में ड्यूटी करने या फिर फॉरवर्ड इलाकों में पेट्रोलिंग पर भेजने से पहले हर जवान को कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. सियाचिन जैसे इलाकों में तैनाती के वक्त एक जवान कपड़ों को मिलाकर 55 तरीके के उपकरणों से लैस होता है. बर्फ से बचने के लिए हर जवान के पास दो किट होती है. करीब 12 देशों से 20 प्रकार के खास उपकरण सेना आयात करती है.

लेकिन उपकरणों से लैस होने के बाद भी कुदरत बनाम फर्ज की इस लड़ाई में अक्सर जवानों को अपनी आहुति देनी पड़ती है और ऐसा ही कुछ सियाचिन में भी होता है. समुद्र से तकरीबन 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद ये दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है. सर्दियों में यहां तापमान माइनस 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. यहां जवान दुश्मन की गोली से नहीं बल्कि कुदरत की वजह से अपनी जान गंवाता है.

10 सालों में सियाचिन में 167 जवानों की मौत 2009 से 2019 के बीच सियाचिन में 167 जवानों की मौत हुई है. मतलब सियाचिन में हर साल लगभग 17 जवानों की मौत हो जाती है. सभी मौत की वजह बर्फबारी, हिमस्खलन या मौसम से जुड़ी बीमारियां हैं. दो साल पहले तक जवानों को इतने हाई रिस्क वाले इलाकों में काम करने के लिए बेहद ही कम भत्ता मिलता था लेकिन 2017 में इसमें बदलाव किया गया.

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सियाचिन में तैनात सिपाहियों/अधिकारियों का बढ़ा भत्ता पहले सियाचिन में तैनात जवान को 14 हजार रुपये भत्ता मिलता था और अब 30 हजार रुपये भत्ते के तौर पर दिए जाते हैं. सियाचिन में तैनात अधिकारियों को हर महीने 21 हजार रुपये भत्ता मिलता था और अब अधिकारियों को 42 हजार 500 रुपये मिलते हैं. पहले रैंक के हिसाब से ऊंचे इलाकों में सेवा देने वाले जवानों को 810 से 16 हजार 800 रुपये दिए जाते थे. अब ये भत्ता बढ़ाकर 2700 से 25 हजार रुपये महीना कर दिया गया है.

हालांकि सबसे बड़ा सच ये है कि वतन की रखवाली में तैनात किसी भी जवान की जान की कीमत की तुलना पैसों से नहीं की जा सकती. मौत की वजह कुदरत हो या दुश्मन, वतन के हर सिपाही का बलिदान सर्वोच्च है और हमेशा रहेगा.

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