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बाघों की संख्या 3 हजार पार, प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर पीएम ने जारी किए आंकड़े, जानें कैसे होती है गिनती
Project Tiger: देश में बाघों की गिनती का काम पूरा हो चुका है. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके आंकड़े जारी किए. आइए जानते हैं कि बाघों की गिनती कैसे होती है.
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Counting Of Tiger: आज 9 अप्रैल को देश में बाघों की संख्या के नए आंकड़े मिल गए हैं. प्रोजेक्ट टाइगर शुरू होने के 50 साल पूरे होने पर मैसुरु में मेगा इवेंट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाघों के नवीनतम आंकड़े जारी किए. नए आंकड़ों के मुताबिक देश में बाघों की आबादी 3000 के पार हो चुकी हैं. पीएम मोदी ने बताया कि भारत में बाघों की संख्या 3167 है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाघों की गिनती कैसे की जाती हैं.
भारत ने 5 दशक पहले 1 अप्रैल, 1973 को बाघों की बचाने की सबसे बड़ी मुहिम शुरू की थी. नाम रखा गया था- प्रोजेक्ट टाइगर. तब से देश में बाघों की आबादी लगातार बढ़ रही हैं और आज पूरी दुनिया में बाघों की संख्या का 70 फीसदी भारत में निवास कर रही है. हर साल यह आबादी 6 फीसदी की दर से बढ़ रही है.
कैसे होती है गिनती?
प्रोजेक्ट की शुरुआत में इसमें 9 टाइगर रिजर्व को शामिल किया गया था. आज 50 सालों के बाद यह 53 टाइगर रिजर्व में फैला हुआ है, जो 75,000 वर्ग किमी का क्षेत्र कवर करता है. इतने बड़े क्षेत्रफल में बाघों की गिनती करना आसान काम नहीं है.
1973 में जब प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो वन विभाग के कर्मचारी बाघों के पदचिह्नों के निशान के लिए ग्लास और बटर पेपर का इस्तेमाल किया करते थे. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इंसान की तरह ही हर बाघ का अपना यूनीक फुटप्रिंट होता है. बाघों को ट्रैक करने में यह बहुत मददगार होता है.
रेंजर्स बाघ के पैर के जोड़े के निशान ढूंढते हैं और भविष्य में उस बाघ को ट्रैक करने के लिए बटर पेपर पर इसका रिकॉर्ड रखते हैं. हालांकि यह इतना आसान नहीं है. बाघ के खड़े होने, आराम करने और दौड़ने के समय उसके पदचिह्नों में अंतर आ जाता है.
समय के साथ बदला गिनती का तरीका
सालों की प्रैक्टिस के बाद बाघों की गिनती के तरीके में विकास हुआ और वन विभाग के कर्मचारी कैप्चर-मार्क-एंड-रीकैप्चर मेथड का इस्तेमाल करने लगे. इसमें बड़े पैमाने पर सैंपल इकठ्ठा किए जाते हैं, जिसके आधार पर बाघों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है.
नॉर्थ एरिजोना यूनिवर्सिटी के मुताबिक, इसके तहत बाघों की एक छोटी संख्या को पकड़ा जाता है. उन पर बिना नुकसान वाले निशान लगाकर वापस आबादी में छोड़ दिया जाता है. बाद में एक और छोटे समूह को पकड़ते हैं और निशानों को रिकॉर्ड करते हैं.
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