सोमवार यानी 1 मई को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई अगस्त तक के लिए टाल दी गई है. केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124ए की समीक्षा पर अंतिम चरण की चर्चा जारी है. सुनवाई इसलिए टाली गई ताकि अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी का पक्ष भी जाना जा सके.
दरअसल, पिछले पांच सालों में यानी साल 2015 से 2020 के बीच देश में राजद्रोह की धाराओं के 356 मामले दर्ज किए गए थे. 548 लोगों को गिरफ्तारी भी हुई थी जबकि सिर्फ 12 लोग ऐसे थे जिन्हें दोषी साबित किया जा सका. सुप्रीम कोर्ट ने इसी के खिलाफ सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया था.
इस कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबटकेरे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और PUCL ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. दायर याचिका में कहा गया कि असहमति की आवाज को रोकने या दबाने के लिए केंद्र सरकार राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है और उसे अपना हथियार बनाते हुए लोगों को जेल में डाल रही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2022 के 11 मई को राजद्रोह कानून पर रोक लगाई गई थी, जिसे 31 अक्टूबर 2022 को बढ़ा दिया गया था. उस वक्त के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि राजद्रोह कानून (Sediton Law) के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया जाए और पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून यानी 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के गलत इस्तेमाल पर जताई थी चिंता
तत्कालीन सीजेआई रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि इस धारा की कठोरता वर्तमान के समाज के लिए सही नहीं है. जब तक धारा 12A के प्रावधानों की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती, तब तक इस कानून के प्रावधानों का उपयोग करना ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करें.
भारत में राजद्रोह या देशद्रोह कानून क्या है?
भारत में भी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124-ए राजद्रोह या देशद्रोह से संबंधित है. इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो बोलकर, लिखकर, इशारों या चिन्हों के जरिये या किसी और माध्यम से नफरत फैलाता है, अवमानना करता है, लोगों को उत्तेजित करता है या असंतोष भड़काने की कोशिश करता है. वह व्यक्ति राजद्रोह का दोषी माना जाएगा.
ज्यादातर लोगों को लगता है कि राजद्रोह और देशद्रोह एक ही है. लेकिन दोनों में अंतर है. आसान भाषा में समझे तो राजद्रोह का केस सरकार की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है और देशद्रोह का केस देश की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है. हालांकि, भारत में राजद्रोह या देशद्रोह दोनों ही मामलों में केस आईपीसी की धारा 124-ए के तहत ही दर्ज किया जाता है.
राजद्रोह कानून को 1870 में लागू किया गया था उस वक्त देश में अंग्रेजों का शासनकाल था और ब्रिटिश सरकार इस कानून का उपयोग उनका विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था. मैकाले ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था.
ब्रिटिश शासन काल में सरकार के विद्रोही स्वरूप अपनाने वालों के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत ही मुकदमा चलाया जाता था. सबसे पहले 1897 में बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इसे इस्तेमाल किया गया था.
नहीं कर सकते सरकारी नौकरी के लिए आवेदन
बता दें कि अगर किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मामला एक बार दर्ज हो गया तो वह सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है. आईपीसी की धारा 124-ए एक गैर जमानती अपराध है. इस कानून के तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है.
देश में 2014 से 2019 के बीच राजद्रोह के मामले
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार भारत में साल 2014 से 2019 के बीच कुल 559 मामले में राजद्रोह के तहत गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन दोषी केवल 10 मामले में पाए गए.
साल 2014: एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में राजद्रोह मामले में 58 लोगों की गिरफ्तारी की गई. 16 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई और सिर्फ 1 दोषी साबित हुए
साल 2015: राजद्रोह मामले में साल 2015 में 73 लोगों की गिरफ्तारी की गई. 13 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई और इस साल एक भी दोषी साबित नहीं हुए.
साल 2016: आईपीसी की धारा 124-ए के तहत 48 गिरफ्तारियां हुई. 26 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और 1 दोषी साबित हुए.
साल 2017: राजद्रोह मामले में साल 2017 में 228 लोगों की गिरफ्तारी की गई. 160 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और 4 लोग दोषी साबित हुए.
साल 2018: राजद्रोह मामले में साल 2018 में 56 लोगों की गिरफ्तारी की गई. 46 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और 2 लोग दोषी साबित हुए.
साल 2019: आईपीसी की धारा 124-ए के तहत 96 गिरफ्तारियां हुई. 76 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और 2 दोषी साबित हुए.
क्या राजद्रोह को खत्म कर देगी सरकार
इस कानून को लगभग 150 साल पहले यानी 1870 में अस्तित्व में लाया गया था. राजद्रोह कानून के तहत क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि, डॉ. कफील खान से लेकर शफूरा जरगर जैसे कई लोगों की गिरफ्तार की जा चुकी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये राजद्रोह कानून देश में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रहा है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुलाई 2021 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने अपनी एक टिप्पणी में कहा था कि आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है? उन्होंने कहा था कि अंग्रेज इस कानून को लाए थे, जिसे स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए लाया गया था. उस समय अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने राजद्रोह कानून को खत्म करने के बजाय इसके लिए दिशा-निर्देश बनाने पर जोर दिया था.
वहीं साल 2022 में जब एक बार फिर राजद्रोह कानून का मुद्दा गरमाया था तब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि सरकार मौजूदा समय की प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए इस कानून को संशोधित करेगी.
उन्होंने देश की संप्रभुता और अखंडता को सबसे ऊपर बताते हुए कहा था कि सभी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए राजद्रोह के कानून पर पुनर्विचार किया जाएगा. कानून मंत्री की बात से इस कानून को लेकर सरकार के रुख का अंदाजा लगता है. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि भारत में फिलहाल यह कानून पूरी तरह खत्म नहीं होगा.
शुरू से ही विवादों में रहा है राजद्रोह का मामला
राजद्रोह का मामला आज से नहीं बल्कि दशकों से विवादों में आता रहा है. 7 साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को लेकर एक अर्जी दाखिल की गई थी और इसपर सवाल उठाया गया था.
साल 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था महत्वपूर्ण फैसला
साल 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी. कोर्ट ने कहा था कि देश में सरकार की आलोचना करना या फिर प्रशासन पर कमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. राजद्रोह का मामला तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा को उकसाने वाले तत्व मौजूद हों.
फारुख अब्दुल्ला मामला
साल 2021 में 3 मार्च को एससी में जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला का मामला आया था. उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार से अलग मत रखना राजद्रोह नहीं ह. कोर्ट ने यह टिप्पणी अनुच्छेद-370 पर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के बयान के मामले में उनके खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते की थी.
याचिका में फारुख अब्दुल्ला ने 370 को बहाल करने का के बयान को राजद्रोह बताया गया था और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. इस मामले की सुनवाई 3 मार्च को हुई और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार के मत से अलग मत रखना और व्यक्त करना राजद्रोह नहीं बनता है. यहां तक की कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी को खारिज करते हुए उन पर 50 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया.
पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर भी जता चुके हैं जताई
14 सितंबर 2020 को फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड ज्यूडिशरी विषय पर आयोजित कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने राजद्रोह कानून को लेकर कहा था कि इस कानून का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के लिए किया जा रहा है जो कि गहन चिंता का विषय है.
इन देशों में भी ये कानून लागू
बता दें कि भारत अकेला ऐसा देश नहीं जहां राजद्रोह कानून लागू हैं. भारत के अलावा ईरान, अमेरिका, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया जैसे कई देशों में इस कानून का प्रचलन है.