शास्त्री जी को तौलने के लिए आया था पांच लाख का सोना, अब कीमत हो गई 27 करोड़, विवाद के चलते बना सरकारी तिजोरी का मेहमान
56 साल पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तौलने के लिए इकट्ठा किया गया तकरीबन 56 किलो सोना अब सरकार को सौंपा जाएगा. जिस वक्त इस सोने को इकट्ठा किया गया था उस वक्त इसकी कीमत तकरीबन 4.76 लाख रुपए थी, वहीं अब यह सोना 27.29 करोड़ का हो गया है.
नई दिल्लीः राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के जिला एवं सेशन कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए तकरीबन 56 किलो सोने को केंद्र सरकार को सौंपने की बात कही है. दरअसल 1965 में तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तौलने के लिए तकरीबन 56.86 किलोग्राम वजन के सोने को इकट्ठा किया गया था. जिसे भारत-पाकिस्तान युद्ध के मद्देनजर जिला कलेक्टर को सौंप दिया गया था.
सरकार को मिलेगा 27.29 करोड़ को सोना
वहीं इसी बीच तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मौत हो जाने के कारण ऐसा नहीं हो सका. जिस वक्त इस सोने को इकट्ठा किया गया, उस वक्त इसकी कीमत 4.76 लाख रुपये थी. फिलहाल अब इसकी कीमत 27.29 करोड़ रुपये हो गई है. चित्तौड़गढ़ में जिला और सत्र न्यायालय ने बुधवार को सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स के असिस्टेंट कमिश्नर को सोना सौंपने का निर्देश दिया है.
दरअसल 1965 के अंत में सोने के स्वामित्व पर विवाद तब बढ़ा जब चित्तौड़गढ़ के जिला कलेक्टर को वजन करने के लिए दिया गया था. तब से लेकर अब तक अलग-अलग अदालतों में इस मामले की पांच बार सुनवाई हो चुकी है और हर बार फैसला सरकार के पक्ष में गया है. वर्तमान में, यह सोना उदयपुर जिला कलेक्टर कार्यालय में एक अलमारी में पड़ा हुआ है.
1965 में जमा हुआ था 56.86 किलो सोना
बता दें कि सबसे पहले 9 दिसंबर, 1965 को गुनवंत नाम के व्यक्ति ने गणपत और दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था. जिसमें उसने आरोप लगाया गया कि आरोपी ने उसे 56.86 किलो सोना वापस नहीं किया. जिसे तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तोलने के लिए इकट्ठा किया गया था.
हालांकि गणपत ने इस सोने को लाल बहादुर शास्त्री को तोलने के लिए इकट्ठा किया था, लेकिन ताशकंद में उनकी मौत हो जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया और 11 जनवरी 1975 में इस मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने गणपत को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा दी थी, और सोने को गोल्ड कंट्रोलर को सौंप दिया था.
सेशन कोर्ट ने सुनाया फैसला
इन सबके बाद साल 2007 में गणपत और हीरालाल ने सत्र अदालत में फैसले को चुनौती दी, जिसमें सुनवाई करते हुए उन्हें मामले से बरी कर दिया गया लेकिन सोने पर कब्जा करने का अधिकार वापस नहीं दिया गया.
इसके बाद साल 2012 में गणपत के वारिस गोवर्धन ने अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया था कि सोना उसके पिता का था और पुलिस ने उसे उससे बरामद किया था. इस मामले में सुनवाई करते हुए सेशन कोर्ट ने गोवर्धन की याचिका को खारिज कर दिया है और सोने को सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स के असिस्टेंट कमिश्नर को सोना सौंपने का निर्देश दिया है.
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