नई दिल्ली: जब नोटबंदी और जीएसटी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना हो रही है तभी उनके कालाधन विरोधी मुहिम पर बड़ा खुलासा हुआ है. दरअसल 13 बैंकों ने सरकार को 13 हजार से ज्यादा बैंक अकाउंट की डिटेल दी है. इससे खुलासा हुआ है कि 5800 कंपनियों ने नोटबंदी के दिनों में साढ़े चार हजार करोड़ कालेधन को सफेद किया. जिन कंपनियों को पकड़ा गया है वो उन 2 लाख कंपनियों में हैं जिनका रजिस्ट्रेशन सरकार रद्द कर चुकी है.


काले धन वालों को पकड़ना और गड़े हुए काले धन को बाहर निकालना नोटबंदी का सबसे बड़ा मकसद था. नोटबंदी में वापस आए नोटों की गिनती के बाद जब खुलासा हुआ कि 99 फीसदी पुराने नोट वापस आ गए हैं तब सरकार आलोचनाओं से घिर गई. अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर जो लोग आज पीएम मोदी पर उंगली उठा रहे हैं उन्होंने नोटबंदी के फैसले को भी गलत ठहराया.


नोटबंदी के दौरान ये भी सुनने को मिल रहा था कि फर्जी कंपनियों के लिए काले धन को सफेद किया जा रहा है. दो लाख नौ हजार कंपनियों के बैंक अकाउंट में संदिग्ध लेनदेन पाए गए थे. इसके बाद ऐसे खातों पर रोक लगा दी गई थी. इसके बाद सरकार ने बैंकों से अकाउंट्स की डिटेल मांगी थी. अब 13 बैंकों ने 13 हजार 140 अकाउंट बैंक अकाउंट्स डिटेल की पहली किस्त सरकार को सौंपी है.


नोटबंदी के बाद जिन 2 लाख फर्जी कंपनियों के रजिस्ट्रेशन रद्द हुए थे उन्हीं में से 5800 कंपनियों के बैंक अकाउंट की डिटेल बाहर निकली है. 5800 कंपनियों ने कुल 13 हजार 140 अकाउंट खुलवा रखे थे. 5800 कंपनियों में नोटबंदी वाले दिन यानी 8 नवंबर 2016 को सिर्फ 22 करोड़ रुपये जमा थे. जबकि नोटबंदी के बाद कंपनियों के खाते में 4 हजार 573 करोड़ रुपये जमा हो गए और फिर 4 हजार 552 करोड़ निकाल भी लिए.


429 ऐसे बैंक खातों का खुलासा हुआ जिनमें नोटबंदी से पहले पचास पैसे का भी बैंक बैलेंस नहीं था लेकिन नोटबंदी के बाद ग्यारह करोड़ रुपये जमा हो गए. फिर 42 हजार रुपये छोड़कर बाकी पैसे निकाल भी लिए. फर्जी कंपनियों के जरिए काले धन का ऐसा काला खेल चालू था कि करोड़ों के लेनदेन की भनक रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज तक को नहीं हुई.


कालेधन को सफेद करने की ऐसी साजिश रची गई कि एक-एक कंपनी ने 100-100 अकाउंट खुलवा लिए. सरकार ने नाम तो नहीं बताया है लेकिन एक ऐसी कंपनी की पहचान हुई है जिसने 2 हजार 134 बैंक अकाउंट खुलवा रखे थे. ऐसी भी कंपनियों का पता चला है जिसके पास 300 या 900 बैंक अकाउंट थे. अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतनी मात्रा में किसी भी कंपनी को बैंक अकाउंट खोलने की जरूरत क्यों पड़ी.