किसान आंदोलन के 6 महीने: 26 मई के देशव्यापी प्रदर्शन को विपक्षी दलों का समर्थन
सरकार और किसान नेताओं के बीच 22 जनवरी को आखिरी बैठक हुई थी. इसके बाद 26 जनवरी को किसानों के प्रदर्शन के नाम पर काफी बवाल हुआ. लालकिला पर हिंसा तक हुई थी जिसकी जांच दिल्ली पुलिस कर रही है.
नई दिल्लीः नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों के धरने के छह महीने पूरे होने से ठीक पहले गतिविधियां तेज हो गई हैं. कांग्रेस समेत 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है. साथ ही केंद्र सरकार को किसानों से वार्ता करने की मांग की है.
किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने छह महीने पूरा 26 मई को काले झंडे फहरा कर और पुतले जला कर विरोध प्रदर्शन करने का एलान किया है. 26 मई को जहां किसान आंदोलन को छह महीने पूरे हो रहे हैं वहीं मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो साल भी पूरे हो रहे हैं.
कुछ दिनों पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने की मांग की थी. किसान संगठनों ने आंदोलन तेज करने की चेतावनी भी दी है. इसके जवाब में कृषि मंत्री ने कहा कि किसान संगठन अपने प्रस्ताव के साथ सरकार के पास आएं क्योंकि सरकार का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया था.
विपक्षी नेताओं ने बयान जारी कर मोदी सरकार को किसानों से बात करने की सलाह दी है. बयान में कहा गया है "केंद्र सरकार को अपनी जिद छोड़ कर तुंरत संयुक्त किसान मोर्चा के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए". विपक्ष ने सरकार से तत्काल तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिए जाने की मांग दुहराई है.
सोनिया गांधी, एचडी देवगौड़ा, शरद पवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, हेमंत सोरेन, फारुख अब्दुल्ला, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, डी राजा, सीताराम येचुरी ने साझा बयान जारी कर किसान मोर्चा के विरोध प्रदर्शन को समर्थन दिया है.
इससे पहले 12 मई को प्रधानमंत्री को लिखी चिठ्ठी में इन विपक्षी नेताओं ने आग्रह किया था कि महामारी की भेंट चढ़ रहे लाखों अन्नदाताओं की रक्षा के लिए सरकार कृषि कानूनों को निरस्त करे.
आपको बता दें कि 26 नवम्बर से दिल्ली की तीन सीमाओं पर आंदोलन कर रहे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के साथ केंद्र सरकार ने 11 दौर की बातचीत में कानूनों को स्थगित कर आगे की चर्चा के लिए कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन कानून रद्द करने की मांग कर रहे किसान नेताओं ने सरकार का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
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