मुंबई: '' मैं 4 बार मुख्यमंत्री रह चुका हूं. अब मुख्यमंत्री बनने की कोई हसरत नहीं.'' जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद सियासी ड्रामा अपने चरम पर था तब शरद पवार ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ये बात कही. सच है कि जब महाराष्ट्र में उनकी पार्टी को साथ लेकर सरकार बनी तो शरद पवार उसका हिस्सा नहीं थे लेकिन सियासी गलियारों में बीते 6 महीने के कार्यकाल को देखते हुए ये राय बनी है कि राज्य की सरकार शरद पवार ही चला रहे हैं.
सरकार के कामकाज पर बारीकी से नजर रखते हैं शरद पवार
सत्ता का रिमोट कंट्रोल उसी प्रकार पवार के हाथ में है जिस तरह से 1995 में दिवंगत शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के हाथ में हुआ करता था. उस वक्त सीएम तो मनोहर जोशी थे लेकिन चलती ठाकरे की थी. शरद पवार के ट्विटर हैंडल पर गौर करें तो पाएंगे कि वे राज्य की हलचल और सरकार के कामकाज पर बारीकी से नजर रखते हैं. उनके ज्यादातर ट्वीट सुझावात्मक होते हैं लेकिन अनेक ट्वीट का सुर निर्देश या आदेश की तरह भी होता है. पवार महाराष्ट्र की महाविकास गठबंधन सरकार के जनक तो हैं हीं लेकिन इसके साथ साथ सरकार की नीतियों और फैसलों पर उनका प्रभाव साफ झलकता है.
चूंकि महाविकास गठबंधन की सरकार विपरीत विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से बनी है इसलिये आशंका जताई जाती है कि ये सरकार ज्यादा दिनों तक चलेगी नहीं. बीते 6 महीनों में कई ऐसे मामले सामने आये जहां गठबंधन की तीनों पार्टियों के बीच तनाव पैदा हो गया जैसे- राहुल गांधी की ओर से वीर सावरकर पर दिया गया विवादित बयान, नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर शिव सेना का रवैया और भीमा-कोरेगांव दंगों की जांच एनआईए को दिया जाना.
एनसीपी पर पवार का नियंत्रण है
हालांकि इससे पहले कि ये मामले तूल पकड़े उनपर पानी डाल दिया गया. हर बार शरद पवार की मध्यस्थ्ता से बात बिगड़ने से बच जाती. ठाकरे सरकार के एक मंत्री से जब पूछा गया कि ये सरकार कब तक चलेगी तो उन्होंने कहा लांग लिव शरद पवार. उनका अभिप्राय ये था कि जब तक सरकार पर और एनसीपी पर पवार का नियंत्रण है तब तक सरकार को कोई खतरा नहीं है.
महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद सबसे ज्यादा फायदे में शरद पवार रहे. तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद उनकी पार्टी की आज सरकार है. दरअसल नतीजे आने से पहले ही वे शिवसेना और बीजेपी के बीच चल रही कटुता पर बारीक नजर रखे हुए थे. नतीजे आने पर उन्होंने इस बात का फायदा उठा लिया. उन्होंने सीएम पद तो शिवसेना को दे दिया लेकिन साथ ही अपनी पार्टी के लिये भी ऑक्सीजन हासिल कर लिया जो कि दिग्गज नेताओं के विरोधी पार्टियों में चले जाने से अंतिम सांसें गिनने लगी थी.
फिलहाल की स्थिति में ये कहने के लिये ऐसा कुछ नहीं है कि सत्ताधारी तीनों पार्टियों के बीच कटुता है लेकिन ये माना जा रहा है कि शरद पवार ने एक विकल्प अपने पास जरूर रखा है. अगर कोई पार्टी सरकार से अपना समर्थन खींच लेती है. पवार की ये पूर्व तैयारी इस बात के अवलोकन में स्पष्ट होती है कि उनके निर्देशन में चल रही ठाकरे सरकार ने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे कि बीजेपी खफा हो जाये.
कुछ कांग्रेस शासित राज्यों ने जिस तरह नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करने का फैसला किया है वैसा कोई प्रस्ताव महाराष्ट्र विधानसभा में नहीं लाया गया. शिवसेना, जिसने कि इस कानून के बिल पर वोटिंग को लेकर लोकसभा में अलग और राज्यसभा में अलग रूख अपनाया आखिरकार इस कानून के समर्थन में बोलने लगी. अपनी पार्टी के मुखपत्र सामना को दिये एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कानून का समर्थन किया.
इसी तरह से जब भीमा-कोरेगांव दंगों की जांच एनआई को सौंपी गई तो कैमरे पर सत्ताधारी पक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया. ये कहा गया कि इस फैसले के खिलाफ कानूनी राय ली जायेगी लेकिन हकीकत में एक दिन पुणे पुलिस ने बिना किसी हलचल के अपनी एनओसी एनआईए कोर्ट को दे दी और मामले के कागजात एनआईए के सुपुर्द कर दिये गये.
जनता के सामने इस बात को लेकर शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के प्रति नाराजगी जरूर जाहिर की लेकिन ये बात सियासी हलको में सभी जानते हैं कि ठाकरे इतना बड़ा फैसला पवार की मंजूरी के बिना नहीं ले सकते. इसके बाद ये मुद्दा वहीं खत्म हो गया. एक और सवाल जो शरद पवार से पूछा गया कि क्या सरकार सीबीआई के विशेष जज बी.एच.लोया की मौत की जांच करवायेगी तो उसपर शरद पवार ये कहते थे कि अगर मामले में कुछ है तो जांच करना मुनासिब है नहीं तो किसी के खिलाफ निराधार आरोप लगाना ठीक नहीं. इसके बाद राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख जो कि एनसीपी से हैं ने कहा कि उनके पास कोई ऐसे सबूत नहीं आये हैं जिनके आधार पर जांच के आदेश दिये जायें.
राजनीतिक पत्रकार और `कसिन्स ठाकरे’ नाम की किताब के लेखक धवल कुलकर्णी के मुताबिक बीजेपी की ओर कोई अपने रास्ते बंद नहीं करना चाहता. कुलकर्णी का मानना था कि ये बस कुछ वक्त की बात है जब ठाकरे को प्रशासनिक अनुभव आ जायेगा और वे अपने आप को पुख्ता तौर पर पेश करेंगे. ठाकरे और पवार दोनों को ही पिछलग्गू रहना पसंद नहीं. इनके बीच में कल को अगर कोई बात बिगड़ती है तो दोनों ही अपने विकल्प खुले रखना चाहते हैं.
शरद पवार के पास बीजेपी के साथ जाने का विकल्प पहले से ही था. एबीपी न्यूज से बातचीत में पवार इस बात की तस्दीक पहले ही कर चुके हैं कि जब महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा चल रहा था उस वक्त पीएम मोदी ने उनके सामने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा था. 2014 में भी पवार ने फडणवीस सरकार का समर्थन उस वक्त किया था जब बीजेपी और शिव सेना ने अलग अलग चुनाव लड़ा था. बीजेपी तब सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन उसके पास बहुमत का आंकड़ा यानी 145 सीटें नहीं थीं. ऐसे में पवार की मदद से फडणवीस ने विश्वास मत हासिल कर लिया. मौजूदा हालात में अगर बात बिगड़ी है तो बीजेपी-एनसीपी की सरकार आसानी से बन सकती है (बीजेपी 105 + एनसीपी 54 =159).
दूसरी ओर शिव सेना भी बीजेपी पर निशाना साधने से बच रही है. बीते 6 महीने से उद्धव ठाकरे ने मोदी-शाह के खिलाफ कोई गंभीर बयान नहीं दिया है. शिव सेना के निशाने पर सिर्फ देवेंद्र फडणवीस हैं. शिव सेना खेमें में फुसफुसाहट है कि अगर कोई गड़बड़ी होती है तो फडणवीस को दरकिनार करके बीजेपी से बात की जा सकती है. तीन दशक पुराने पार्टनरों के साथ आने के लिये अब भी जमीन बची हुई है.
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