SC On Demonetisation: भारत सरकार के तरफ से 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की गई थी. नोटबंदी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने विस्तृत सुनवाई शुरू कर दी है. पहले दिन वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम कहा, "500 और 1000 के नोटों को वापस लेने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया था. सरकार ने इसके परिणाम नहीं सोचे. इसके चलते करोड़ों लोगों को तकलीफ उठानी पड़ी. नोटबंदी करते समय कानूनी प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया."


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता में मामले को सुन रही 5 जजों की बेंच ने यह साफ किया कि वह इस मामले के कानूनी पहलुओं पर सुनवाई कर रही है. जिन लोगों को व्यक्तिगत नुकसान हुआ था, उन्हें राहत देने पर विचार नहीं किया जा रहा है. जब एक याचिकाकर्ता को हुए 30 हजार रुपए के नुकसान की बात कई बार कही गई, तब जस्टिस नज़ीर ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा, "यह बात इतनी बार कही गई है कि हम 5-5 हजार का योगदान देकर इसकी भरपाई करने की सोच रहे हैं."


6 साल से लंबित है मामला
जस्टिस नजीर के अलावा संविधान पीठ के अन्य 4 सदस्य हैं- जस्टिस बी आर. गवई, ए. एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी. वी नागरत्ना. 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट वापस लिए थे. इसके खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हुई थीं. 16 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था, लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी पर रोक लगाने समेत मामले में कोई भी अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया था.


इन सवालों पर होना है विचार


मामले को संविधान पीठ को सौंपते हुए 3 जजों की बेंच ने 9 सवाल तय किए थे. इनमें से कुछ सवाल हैं :-


* क्या 8 नवंबर की अधिसूचना कानूनन सही थी.


* अधिसूचना जारी होने के बाद नोट निकालने और बदलने पर हुई रोक-टोक क्या लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन थी.


* क्या मौद्रिक नीति (fiscal policy) से जुड़े मामलों पर कोर्ट में सुनवाई हो सकती है


'सोच-समझ कर लिया फैसला'
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले का पुरजोर बचाव किया है. कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने बताया, "यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची-समझी योजना थी. नकली नोटों की समस्या से निपटना और आतंकवादियों की फंडिंग को रोकना भी इसका मकसद था. इसकी सिफारिश रिजर्व बैंक ने की थी. इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था."


सरकार ने नहीं दी पूरी जानकारी
आज 24 (नवंबर) को बहस की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने सरकार के दावे को गलत बताया. उन्होंने कहा, "सरकार ने इस फैसले से पहले की प्रक्रिया को ठीक से जानकारी नहीं दी है. न तो 7 नवंबर, 2016 को सरकार की तरफ से रिजर्व बैंक को भेजी चिठ्ठी रिकॉर्ड पर रखी गई है, न यह बताया गया है कि रिजर्व बैंक की सेंट्रल बोर्ड की बैठक में क्या चर्चा हुई. 8 नवंबर को लिया गया कैबिनेट का फैसला भी कोर्ट में नहीं रखा गया है." चिदंबरम ने यह दलील भी दी, "यह फैसला RBI एक्ट, 1934 के प्रावधानों के मुताबिक नहीं था. इस एक्ट की धारा 26 (2) कहती है कि नोट वापस लेने से पहले लोगों को पहले सूचना दी जानी चाहिए, लेकिन यहां एलान के तुरंत बाद देश की 86% मुद्रा अमान्य करार दी गई. इससे लोगों को व्यापार और रोजगार का भारी संकट उठाना पड़ा. उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ."


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