जैन मुनियों और जैन साध्वियों का जीवन कैसा होता है? कभी देखा है आपने? ये लोग केवल उबला पानी पीते हैं, नंगे पैर रहते हैं, लाइट, पंखा, एसी और मोबाइल आदि का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यही नहीं इन्हें हर छह महीने में सिर के बाल हटाने होते हैं और सफेद पोशाक पहननी होती है. ये लोग खुद खाना नहीं पकाते, बल्कि घरों में जाकर मांगते हैं और वही ग्रहण करते हैं.


अब सोचिए कि क्या कोई अपने आलीशान जीवन को छोड़ कर जैन साधु-साध्वी बनना चाहेगा? जवाब है हां. कुछ लोग अपनी लाखों करोड़ों की संपत्ति छोड़ देते हैं, हर ऐशो आराम छोड़ देते हैं और जैन मुनियों के बताए रास्ते पर चल देते हैं.


एक फरवरी 2020 को भी ऐसा ही होगा जब 65 लोग गुजरात के सूरत में दीक्षा लेंगे और हर आराम को छोड़ देंगे. इनमें से आठ लोग अहमदाबाद के रहने वाले हैं. 2014 में 44 लोगों ने एक साथ दीक्षा ली थी. खास बात ये है कि दीक्षा लेने वाले 65 लोगों में से 17 की उम्र 20 साल से भी कम है.


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इस कार्यक्रम का नाम रत्नात्रेय समर्पणोत्सव है. इन 65 लोगों में अधिकतर इंजीनियर, सीए, आर्किटेक्ट और काफी अमीर परिवारों के लोग हैं. 84 साल की महिला कांताबेन भी दीक्षा लेंगी और 11 साल की जिनन्या भी सब कुछ छोड़ देंगी.


40 साल की वैशाली अपने पति योगेश और 17 साल की बेटी के साथ दीक्षा लेंगी. उन्होंने कहा कि साल 2015 में उन्होंने मार्दव गुणा श्रीजी महाराज साहेब को सुना था तब असली खुशी के बारे में पता चला.


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उन्होंने अपनी बेटी को 13 साल की उम्र में गुरुजी के यहां रहने के लिए भेजा था. बेटी को यहां अच्छा लगा और फिर परिवार के लोगों ने दीक्षा लेने का फैसला किया. इन लोगों के अलावा रूपा शाह अपने 12 साल के बेटे और 11 साल की बेटी के साथ दीक्षा लेंगी.


आपको बता दें कि जो युवा दीक्षा लेने की इच्छा जताते हैं तो उन्हें गुरूजी से इजाजत लेनी होती है और उनके साथ कुछ वक्त गुजारना होता है. गुरू इसके बाद ये तय करते हैं कि उन्हें दीक्षा दी जानी चाहिए ये नहीं.