NGO का दावा- भोपाल में कोरोना वायरस से मरने वालो में से 75 फीसदी गैस पीड़ित
भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसने वाली जहरीली गैस ‘मिक’ की चपेट में आने से हजारों लोग पिछले करीब साढ़े तीन दशक से तमाम स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर में कोरोना वायरस से मरने वालों में 75 फीसदी लोग भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित हैं. ये दावा साल 1984 में भोपाल में हुई दुनिया की सबसे भयंकर औद्योगिक गैस त्रासदी के पीड़ितों के हितों के लिए काम कर रहे चार गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने किया है.
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने 'भाषा' को बताया, 'गैस पीड़ितों के बीच काम कर रहे चार संगठनों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर यह बताया है कि भोपाल शहर में कोरोना से मरने वालो में से 75 फीसदी गैस पीड़ित हैं और इस बीमारी का कहर गैस पीड़ितों पर सबसे ज्यादा बरपा है.' उन्होंने कहा कि कोविड-19 की वजह से हुई बहुसंख्यक गैस पीड़ितों की मौतों से यह साबित होता है कि 35 साल बाद गैस पीड़ितों का स्वास्थ्य इसलिए नाजुक है, क्योंकि उनके स्वास्थ्य को यूनियन कार्बाइड की जहरीली गैस की वजह से स्थाई क्षति पहुंची है.
गैस पीड़ितों पर विशेष ध्यान जरूरी वहीं, गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी ने बताया, 'इसलिए हम मुख्यमंत्री से यह अपील करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित सुधार याचिका में गैस कांड की वजह से सभी 5,21,322 गैस पीड़ितों के स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त होने के सही आंकड़े रखे ताकि यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल से सभी के लिए उचित मुआवजा लिया जा सके.' उन्होंने कहा कि गैस पीड़ित संगठन 21 मार्च और 23 अप्रैल को केंद्र व राज्य सरकार को पत्र देकर बता चुके हैं कि इस संक्रमण के चलते अगर गैस पीड़ितों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो कइयों की जान जा सकती है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खां ने बताया, 'शहर में हुई 60 मौतों पर आधारित यह विस्तृत रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि सिर्फ 60 साल से ऊपर के गैस पीड़ित ही इसकी चपेट में नहीं आए हैं. 38-59 साल की उम्र में मरने वालों में 85 प्रतिशत भोपाल के यूनियन कार्बाइड गैस कांड के पीड़ित हैं.'
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