77 साल का बुज़ुर्ग नहीं निकला रेप पीड़िता के बच्चे का पिता, DNA टेस्ट के बाद SC ने दी ज़मानत
सुप्रीम कोर्ट ने लड़की के बच्चे और बुजुर्ग का डीएनए मिलान कराने का आदेश दिया था. इससे साबित हुआ कि बुजुर्ग पीड़िता के बच्चे का पिता नहीं है. इसके बाद शीर्ष अदालत ने जमानत दी.
नई दिल्ली: 77 साल के एक बुजुर्ग को रेप के मामले में जमानत तब मिली जब यह साबित हुआ कि वह पीड़िता के बच्चे का वह पिता नहीं है. अजीबोगरीब से लगने वाले इस मामले में 14 साल की एक लड़की के परिवार ने बुजुर्ग पर बलात्कार का आरोप लगाया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लड़की के बच्चे और बुजुर्ग का डीएनए मिलान किया गया.
मामला पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी का है. 77 साल के बुजुर्ग पर उसी के मकान में किराए पर रहने वाले एक परिवार ने अपनी नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगाया. जब यह आरोप लगाया गया तब लड़की लगभग 8 महीने की गर्भवती थी. 11 मई को एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस ने बुजुर्ग को गिरफ्तार कर लिया. तब से वह जेल में थे. निचली अदालत के बाद कोलकाता हाई कोर्ट ने भी उन्हें जमानत देने से मना कर दिया था.
इस बीच 2 जुलाई को लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया. कोलकाता हाई कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद रेप के आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. यहां उसके वकीलों ने यह दलील दी की वह उम्र से जुड़ी कई बीमारियों से ग्रस्त है. शारीरिक संबंध बनाने के योग्य नहीं है.
याचिकाकर्ता की तरफ से यह दलील भी दी गई कि असल में मामला मकान मालिक-किराएदार विवाद का है. यह संभव नहीं है कि 8 महीने की गर्भवती लड़की के गर्भ का परिवार को पता ही न हो. उन्होंने लड़की की स्थिति का फायदा बुजुर्ग को फसाने के लिए किया. सुनवाई के दौरान वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से रहम की गुहार करते हुए यह भी कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में एक बुजुर्ग व्यक्ति को बेवजह जेल में बंद कर दिया गया है. इसलिए, कोर्ट उन्हें जमानत पर रिहा करे.
18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग के स्वास्थ्य जांच के साथ ही नवजात बच्चे के साथ उनके डीएनए के मिलान का भी आदेश दिया. पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से अब कोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट से यह पता चला कि वह उस बच्चे का पिता नहीं है. इसे आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
याचिकाकर्ता के वकीलों ने कोर्ट से इस मामले में बुजुर्ग को उचित मुआवजा दिलाने की भी दरख्वास्त की. लेकिन कोर्ट ने इसका आदेश देने से मना करते हुए कहा कि यह मांग याचिकाकर्ता निचली अदालत अदालत से कर सकता है.
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