Corona : कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से देश में अफरातफरी का माहौल तो याद होगा. इसके पीछे ऐसे महाठग हैं, जिन्होंने लालच में इंसानियत शर्मसार कर दिया. दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के साइबर सेल ने ऐसे ही गैंग का पर्दाफाश किया है. जालसाजों के इस गैंग ने ऑक्सीजन सिलिंडर दिलाने के नाम पर देशभर के हजारों लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी की. पुलिस ने दो महिलाओं समेत कुल 9 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनके पास से 9 मोबाइल, एक लैपटॉप, 11 सिमकार्ड और 7 एटीएम कार्ड बरामद हुए हैं. गैंग का एक सदस्य अभी भी फरार है, जिसे कोर्ट ने भगोड़ा घोषित किया हुआ है.
पीएचडी और एमसीए डिग्रीधारी हैं गैंग के सदस्य
गैंग को चलाने वाले दो मुख्य ठगों में से एक पीएचडी कर रहा है तो दूसरे ने एमसीए किया हुआ है. साइबर सेल पुलिस पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ कर मामले की छानबीन कर रही है.
क्या है मामला
साइबर सेल के डीसीपी केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि कोरोना की सेकंड वेव के दौरान ऑक्सीजन सिलिंडर के नाम पर हुई ठगी में विनोद कुमार नामक शख्स भी शिकार हुए थे. इनकी पत्नी कोविड पॉजिटिव थीं. उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था. विनोद ने सोशल मीडिया के जरिये एक मोबाइल नंबर पर संपर्क किया. विनोद कुमार से खाते में 25 हजार रुपये जमा कराने के लिए कहा गया, उन्होंने पैसे खाते में डाल दिए. विनोद के घर पर जल्द ही ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचाने की बात कही गयी, लेकिन सिलिंडर नहीं पहुंचा और विनोद कुमार की पत्नी की मौत हो गई. विनोद ने मामले की शिकायत पुलिस से की.
पुलिस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू की. पुलिस ने तीन आरोपियों को बिहार के अलग-अलग जिलों से गिरफ्तार कर पूछताछ की. आरोपियों ने खुलासा किया कि उनका गैंग अलग-अलग मॉड्यूल में काम करता है. इसके बाद पश्चिम बंगाल और बिहार में अलग-अलग छापेमारी कर कुल 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
ये हैं आरोपी
आरोपियों की पहचान सरिता देवी (36), पिंकी देवी (37), अमित रोशन (27), नितिश कुमार उर्फ सोनू राम (25), सोनू नंदी (24), सोमेन मंडल (35), उत्पल घोसाल (35), पवन उर्फ प्रवीन कुमार (26) और कमलकांत सिन्हा (31) के रूप में हुई है. इसमें से पवन पीएचडी कर रहा है जबकि कमलकांत एमसीए कर चुका है. मामले में सचिन कुमार अभी फरार है. पवन और कमलकांत गैंग सरगना हैं.
ऐसे करते थे काम
- पहले मॉड्यूल में गैंग लीडर शामिल रहते थे. ये लोग एक दूसरे से बेहतर तालमेल बनाकर सोशल मीडिया पर अलग अलग मोबाइल नंबर फैलाते थे. दावा करते थे कि ऑक्सीजन सिलिंडर दिलवा देंगे.
- दूसरा मॉड्यूल टेलीकॉलर्स का होता था. ये लोग फोन करने वालों का भरोसा जीतते थे. उनसे रकम बैंक खातों में डलवाते थे, इसके बाद उन नंबरों को बंद कर दिया जाता था.
- तीसरे मॉड्यूल में फर्जी पतों के आधार पर बैंक खाते खुलवाने वाले और खातों से पैसे निकालने वाले लोग होते थे. रुपये खातों में आते ही उसे निकालकर गैंग सरगनाओं तक पहुंचाते थे. इसके बदले इनको कमिशन मिलता था.
- चौथे मॉड्यूल में बैंक खातों का इंतजाम करवाते थे. इसके बदले में इन लोगों को ठगी की रकम का दस फीसदी हिस्सा मिलता था.
- पांचवे मॉड्यूल में वे गरीब लोग थे, जिनके खाते तो असली थे, लेकिन वे उसके संचालन की जिम्मेदारी आरोपियों को दे देते थे. यानि उनके खातों में ठगी की रकम जमा कराई जाती और निकलवाई जाती थी. इसके बदले उनको कमिशन मिलता था।
- छठे और आखिरी मॉड्यूल का काम फर्जी पतों पर सिमकार्ड उपलब्ध करवाने का था. ये मोटी रकम लेकर सिमकार्ड उपलब्ध करवाते थे.
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