A 97 Year Approached Delhi HC: बुजुर्गों को आर्थिक सुरक्षा, मेडिकल और दूसरी सुविधाएं देने के लिए सीनियर सिटीजन एक्ट (Senior Citizens Act 2007) 2007 में अधिसूचित और 2008 में लागू किया गया था. लेकिन इस एक्ट लागू होने से पहले जिन बुजुर्गों ने अपनी संपत्ति (Property) कानूनी तौर पर अपने बच्चों या किसी के नाम कर दी है वो इस कानून का फायदा नहीं ले पा रहे हैं. ऐसा ही एक मामला दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में आया है. एक 97 साल के बुजुर्ग ने बुजुर्गों की देखभाल के लिए बने कानून के कुछ प्रावधानों को अदालत (Court) में चुनौती दी है.


बुजुर्ग ने क्यों दायर की याचिका


बुजुर्ग का कहना है कि उनके संपत्ति के हस्तांतरण के बाद केंद्र सरकार ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) में अधिसूचित किया और यह सितंबर 2008 में लागू हुआ. याचिका में कहा गया है कि यदि अधिनियम को थोड़ा पहले अधिसूचित और लागू किया जाता तो वह भी इस अधिनियम के तहत आ जाते. बुजुर्ग ने ने दावा किया कि उसके बेटों ने उसकी देखभाल नहीं की और न ही उसका भरण-पोषण किया और इसके बजाय वे किराए पर संपत्ति देकर और हर महीने मोटी कमाई कर धोखाधड़ी से लिए इस उपहार का आनंद ले रहे हैं.


हक को लेकर कोर्ट पहुंचे बुजुर्ग


97 साल के बुजुर्ग दिल्ली हाईकोर्ट के दरवाजे पर अपने हक मांगने को लेकर पहुंचे हैं. बुजुर्गों की देखभाल के लिए बने कानून के कुछ प्रावधानों को इस बुजुर्ग शख्स की तरफ से चुनौती दी गई है. ये प्रावधान बुजुर्गों की देखभाल न किए जाने की स्थिति में उन्हें उनके बच्चों को हस्तांतरित संपत्ति को शून्य या अवैध घोषित करने का लाभ देता है. बुजुर्ग ने अपनी याचिका में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 (Maintenance And Welfare Of Parents And Senior Citizens Act 2007) के प्रावधानों को चुनौती दी है. बुजुर्ग की तरफ से अधिवक्ता सुदर्शन रंजन और मुकेश कुमार ने याचिका (Petition) दायर की है. इसमें अधिनियम की धारा 23 को चुनौती दी है, जो कुछ परिस्थितियों में संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित है. इस बुजुर्ग ने अपनी बुनियादी जरूरतों और देखभाल की शर्त पर अपनी संपत्ति का हस्तांतरण किया था. बुजुर्ग ने साल 2007 में कानून के अधिसूचित होने से पहले ही अपनी संपत्ति हस्तांतरित कर दी थी. इस वजह से उन्हें कानून का लाभ नहीं मिल पाया है.


क्यों हैं बुजुर्ग परेशान


बुजुर्ग याचिकाकर्ता का कहना है कि सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत एक बुजुर्ग होने के नाते उचित देखभाल न होने की स्थिति में उनको कानूनी हक मिला है कि वह इस संपत्ति हस्तांतरण (Transferred) को अवैध ठहरा सकें. उनका कहना है कि उन्हें भी यह हक मिलना चाहिए भले ही उन्होंने कानून लागू होने से पहले अपनी संपत्ति का हस्तांतरण अपने बेटों को कर दिया हो. इसी को लेकर बुजुर्ग ने हाईकोर्ट में याचिका डाली है. बुजुर्ग की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उनके दो बेटों ने मई 2007 में उनकी संपत्ति के कुछ भाग को धोखाधड़ी से उनसे साइन करवा अपने नाम करवा लिया था. और अब इस संपत्ति से आने वाला किराया भी बेटों ने छीन लिया है. अब उनके बेटे उनकी देखभाल नहीं कर रहे हैं. वह इस संपत्ति से आने वाले किराए का इस्तेमाल भी खुद कर रहे हैं. उन्होंने अपील की है कानून के तहत देखभाल न होने की स्थिति में संपत्ति को शून्य घोषित करने का हक उनके मामले में भी लागू होता तो उन्हें इसका फायदा मिलता.


कैसे कारगर है सीनियर सिटीजन एक्ट


आमतौर देखा गया है कि बुजुर्ग अपनी संपत्ति अपने बच्चों के नाम करते हैं. इसके पीछे यही मकसद होता है कि बुढ़ापे में उनके बच्चे उनकी देखभाल करेंगे,उनकी जरूरी सुविधाएं और चीजें उपलब्ध करवाएंगे. समाज में कई बार ऐसा होते नहीं देखा गया है. ये सब ध्यान में रखते हुए सीनियर सिटीजन एक्ट बनाया गया है. इस तरह ये एक्ट बुजुर्गों को उनका हक दिलाने की पैरवी करता है. उन्हें उनका हक दिलाता है. इसके तहत बुजुर्गों की सही देखभाल न होने की स्थिति में संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी या दबाव के तहत मानकर इसे अवैध करार दिया जा सकता है. 60 साल से ऊपर के सभी लोग इस कानून के तहत आते हैं. इस बुजुर्ग की याचिका को लेकर मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) सतीश चन्द्र शर्मा (Satish Chandra Sharma) और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद (Justice Subramonium Prasad) की बैंच ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार ( Central Government) से जवाब मांगा है. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है.


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