चंडीगढ़: फिल्म 'पैडमेन' को देखकर जालंधर की जानवी और उनकी दोस्त ने सैनेट्री पैड को मार्केट से खरीदकर गरीब महिलाओं और किशोरियों के बीच बांटने के बारे में सोचा. सबसे पहले ये आइडिया जानवी सिंह को आया जिसमें उनकी मदद सगे भाई और दोस्त ने की. इसके बाद ये लड़कियां पैडगर्ल के नाम से जानी जाने लगीं. महिलाओं के लिए इस कल्याणकारी काम को करने के चलते एबीपी न्यूज़ ने उनसे बात की जिसमें उन्होंने अपने प्रोजेक्ट और इसके पीछे की कहानी के बारे में बताया.
आपको ये आइडिया कैसे आया?
इसपर जानवी ने जवाब देते हुए कहा, 'यह करने का आइडिया तब आया जब 'पैडमैन' फिल्म में हमने देखा कि मुरुगनाथन को उनकी पत्नी उन्हें घर से बाहर निकाल देती हैं. इसके बाद भी वो पीछे नहीं हटते और सैंपल के तौर पर अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को ट्राई करने के लिए कहते हैं लेकिन कई औरतें उन्हें ऐसा करने से मना कर देती और अपने दरवाज़े बंद कर देती. इन सबके बावजूद वो बिना शर्माए अपना काम करते थे. उन्होंने बेहद कोशिश की जिसका उन्हें रिस्पॉन्स नहीं मिला था फिर भी वो अपने मकसद को लेकर डटे रहे. फिल्म में इसी कहानी को देख हमने भी फैसला लिया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए.
इस आइडिया में आपको माता-पिता का कैसे सपोर्ट मिला?
पैडगर्ल ने बताया कि पहले हम गरीब लोगों को सैनेट्री पैड खरीद के देते थे. फिर हमें कॉस्टिंग महंगी पड़ रही थी और सभी को बांटना भी था. इसलिए हमारे पैरेंट्स ने कहा कि क्यों न हम खुद ही बनाएं. जिसके लिए उन्होंने घरेलू गाइनोकॉलोजिस्ट डॉक्टर रितू नंदा के पास जाने को कहा. इसके बाद डॉक्टर ने हमें सब कुछ सिखाया और बताया. हालांकि इस काम में माता-पिता के बिना वो कुछ नहीं कर सकती थीं.
जानवी ने आगे बताया कि हमनें अपनी पॉकेट मनी खर्च कर इसे शुरु किया था. इस पॉकेट मनी को पैड खरीदने से लेकर गरीबों में कैसे बांटना है. ये सबकुछ पैरेंट्स ने हमें बताया. उन्हीं की सलाह थी कि हम स्लम इलाकों में पहुंचे और पैड बांटे. उन्होंने बताया था कि माता-पिता ने ये भी कहा था कि सारी औरतें शुरु-शुरु में मना करेंगी. लेकिन फिर भी रुकना नहीं और अपना काम करते जाना.
जानवी के साथ पांच लोगों के ग्रुप में कौन-कौन था?
इसकी शुरुआत तब हुई जब जानवी के दोस्त और उनके भाई एक साथ उनके घर पर ही फिल्म देख रहे थे. फिल्म के बीच जानवी ने अपने दोस्तों से कहा कि इन जैसे और गरीब लोगों के लिए हमें कुछ करना चाहिए. जिसके बाद सबने हामी भरते हुए कहा कि उन लोगों को खरीदकर पैड देना चाहिए. उसके बाद हमनें अपने-अपने पैरेंट्स से बात की. जब पैरेंट्स ने अनुमति दे दी तो हम पांच लोगों ने ये काम शुरू किया. इस ग्रुप में उनके साथ उनकी खास दोस्त लवाण्या जैन और उनका भाई त्रिनभ, जानवी के सगे भाई सुमेर सिंह और रणबीर सिंह ने जुड़कर यह सब कुछ किया.
भारतीय संस्कृति में महिलाओं को आप कहां देखती हैं?
जानवी ने इसके जवाब में कहा कि पहले और अभी भी पीरीयड्स के बारे में बात करना एक टैबू की तरह ही है. कई लोग अभी भी इस बारे में बोलना नहीं चाहते हैं क्योंकि उनको लगता है कि यह सिर्फ महिलाआों के लिए होता है. हमें भी बोलना नहीं चाहिए और अगर आपके पीरियड्स आए हुए हो तो आपको यहां-वहां नहीं जाना चाहिए. हालांकि अब पहले से बहुत बदलाव हुआ है. इस बात को हमने देखा है. जब हम पहली बार पैड बांटने गए और अब बांटने जाते हैं तो उन लोगों के बीच काफी बदलाव देखने को मिला रहा है जिससे हमें बहुत खुशी मिलती है. कोई अगर इस ओर देखे तो काफी बदलाव हो सकता है.
स्लम इलाकों के लोगों को कौन-कौन सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
जिस स्लम इलाके हम पहुंचे थे वहां सिर्फ चार ही लोग पैड का इस्तेमाल करते थे, जो कंपनी के थे. इससे उनको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. जिसके चलते हमने उनको पैड बनाना सिखाया और डिस्ट्रीब्यूट भी किया. इसके बाद उनकी जो खुशी होती थी ना इसे देखकर तो हमारा दिन बन जाता था.
आपको आइडिया को सोचने और करने में कितनी मुश्किल आई?
उन्होंने कहा, जब पहली बार गए थे तो काफी मुश्किल आई थी. जैसे ही हम उनको बांटने गए तो वहां खड़ी सारी महिलाएं हमें देखकर घर के अंदर चली गईं. सबने अपने मुंह ढक लिए. जिसके बाद हमने उनको बुलाया और समझाया कि आप कपड़ों का इस्तेमाल करते हो तो आपको बहुत परेशानी होती है. यह बात सुनकर वहां खड़ी एक लड़की ने स्वीकार किया कि आप सही कह रही हो. यह सुनकर सब एकजुट हो गए और पैड मांगने लगे. पैड पाने के बाद एक लड़की ने कहा कि हमें बहुत दिक्कत होती है. इसके बाद एक महिला ने भी हमें बताया था कि जो कपड़ें का पैड इस्तेमाल करती हैं उससे उनके खारिश और एलर्जी हो जाती है. अब जब वो लोग ये पैड इस्तेमाल करती हैं तो उनको जलन तक नहीं होती है. हमने उनको फिर बताया कि ये कॉटन है अगर हम इसे इस्तेमाल में ले आते है तो ये ज्यादा अच्छा रहेगा.
इस बीच जब खुद पैडमेन फेम अक्षय कुमार को इस बात का पता चला तो उन्होंने ट्विटर के जरिए अपनी खुशी इज़हार की. इस पोस्ट के कैप्शन में उन्होंने लिखा, "जब लोग मुझसे पूछेंगे कि आप 'पैडमेन', 'टॉयलेट' जैसी फिल्में क्यों बनाते हो. तब मैं आसानी से बता पाउंगा कि सिनेमा की ताकत क्या है. साथ ही वे लिखते हैं कि मैं इन बच्चियों को ये काम करते देख बहुत खुश हूं."
क्या और कोई पैडमैन या पैडगर्ल बन सकता है?
जानवी ने बताया कि सभी ऐसा कर सकते हैं. एक बार सोच लिया कि मदद करनी है तो वो सभी अच्छे से कर सकते हैं. उनसे काफी सारे लोग खुद-ब-खुद जुड़ जाएंगे.
मोदी सरकार ने सैनेट्री पैड पर जीएसटी हटा दी है तो आप इसे कैसे देखती हैं?
पहले तो सैनेट्री पैड पर जीएसटी टैक्स लगता था तो ये लोगों के लिए महंगा था लेकिन अब इसे टैक्स फ्री कर दिया है. इससे अब लोग पैड आसानी से खरीद सकते हैं और सरकार की ओर से उठया गया ये सराहनीय कदम है.
उन्होंने आगे बताया कि जब हम स्लम एरिया में जाते थे तो उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वो लोग यह खरीद सकें. हमनें उनसे पूछा था कि अगर उनको पैड खरीदना हो तो उन्हें एक पैड कितने में पड़ता है. जिसके जवाब में उन लोगों ने बताया था कि उन्हें एक पैड 25 रूपये का पड़ता है और एक पैकेट में 5 पैड मिलते हैं.
आप ने स्लम एरिया छोड़ और कहीं ये क्यों नहीं किया है?
जानवी ने बिना देरी के बताया कि अभी मैंने इसकी शुरुआत अपने स्कूल में भी कर दी है. स्कूल की प्रिंसिपल ने उन्हें बहुत प्रोत्साहन दिया और स्कूल के एसयूपीडब्लू प्रोजेक्ट में भी शामिल होने का निमंत्रण दिया जिससे जानवी ने स्वाकीर कर लिया. इस प्रोजेक्ट से वो दोस्तों को भी ये काम सिखाती हैं. कुछ दोस्त तो अपने प्रदेश में ऐसा काम कर रहे हैं. उनकी एक दोस्त ने कहा कि मुझे भी सिखाओ. उनकी यह दोस्त अरुणाचल प्रदेश से आती हैं. वो ये काम सीखकर अपने राज्य के लोगों की मदद करना चाहती हैं.
हाल ही में 72वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जानवी को उनके अभियान 'स्टॉप द सपॉट्स' के लिए पंजाब सरकार की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट दिया गया है. जानवी अपनी स्कूलिंग के चलते नहीं जा पाई तो उनका यह सर्टिफिकेट लेने उनके सगे ब्रदर्स पहुंचे.
केरल में आई बाढ़ को देखते हुए भेजे 2000 पेैड्स
केरल में आई भीषण बाढ़ को देखते हुए जानवी और उनकी टीम ने लगभग 2000 पैड्स बनाएं और इन्हें सीधे वहां की गरीब महिलाओं और बच्चियों के लिए भेज दिए हैं.
यहां देखें ये बच्चे कैसे बनाते हैं पैड्स