नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने और मुस्लिम व पारसी समुदाय की महिलाओं के साथ होने वाले कथित भेदभाव से संबंधित मामलों पर विचार के लिए 9 सदस्यीय संविधान पीठ गठित की. मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े की अध्यक्षता में यह संविधान तैयार की गई. ये संविधान पीठ सारे मामले में 13 जनवरी से सुनवाई करेगी.
चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एम एम शांतनागौडर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्य कांत शामिल हैं.
9 न्यायाधीशों की पीठ तब गठित की गई जब सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 3:2 के बहुमत से मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने का फैसला सुनाया. पीठ ने यह फैसला सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने के अपने 28 सितंबर 2018 के ऐतिहासिक फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया था.
जस्टिस गोगोई के अलावा जस्टिस ए एम खानविल्कर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा (पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश) ने बहुमत का फैसला सुनाया था, जबकि जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अल्पमत का फैसला लिखा था. 9 न्यायाधीशों की पीठ में पिछली पीठ का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है. 9 सदस्यीय पीठ 13 जनवरी से मामले में सुनवाई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक नोटिस जारी करके इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन की याचिका पर न्यायालय के 2018 के ऐतिहासिक फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं को सुनवाई के लिये 13 जनवरी को लिस्ट तैयार करने की सूचना दी थी. सितंबर 2018 के फैसले में न्यायालय ने सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी.
हालांकि, न्यायालय की इस नोटिस में न्यायाधीशों के नामों का उल्लेख नहीं था. संविधान पीठ के सदस्य न्यायाधीशों के नामों की घोषणा मंगलवार को गयी. पिछले साल 14 नवंबर को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत के फैसले में सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं को सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था.
पीठ ने कहा था कि धर्मस्थलों में महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश पर प्रतिबंध की धार्मिक परंपराओं की संवैधानिक वैधता को लेकर छिड़ी बहस सिर्फ सबरीमला प्रकरण तक ही सीमित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मस्जिदों और दरगाह में मुस्लिम महिलओं के प्रवेश और गैर पारसी पुरुष से विवाह करने वाली पारसी समुदाय की महिलाओं को परिजनों के अंतिम संस्कार से संबंधित अज्ञारी जैसे पवित्र स्थान पर प्रवेश पर पाबंदी है. पीठ ने कहा था कि यही समय है कि सुप्रीम कोर्ट व्यापक न्याय के लिए एक न्यायिक नीति तैयार करे.
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