वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण भारत में भी सरकार ने लॉकडाउन कर दिया था. इस दौरान पूरे देश पर तालाबंदी हो गई . स्कूल-कॉलेज, दुकानें, मॉल, कारखाने, होटल-रेस्टोरेंट सब बंद कर दिए गए. लॉकाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था तो काफी प्रभावी हुई ही वहीं शिक्षा प्रणाली पर भी तालाबंदी का काफी असर हुआ.  हालांकि बच्चों की पढाई सुचारू रूप से चल सके इसके लिए स्कूलों द्वारा ऑनलाइन क्लासेज शुरू कर दी गई. लेकिन इस दौरान समस्या उन माता-पिता के सामने खड़ी हो गई जो रोज खाते-कमाते थे. दरअसल मजदूरी करने वाले ये लोग अपने बच्चों की पढ़ाई को चालू रखने के लिए लैपटॉप या स्मार्ट फोन को अफोर्ड ही नहीं कर सकते थे. ऐसे में लॉकडाउन के समय जरूरतमंदों के लिए मसीहा बने एक पुलिसवाले ने गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षित करने का भी बीड़ा उठा लिया.


दिल्ली पुलिस का कांस्टेबल लगाता है पाठशाला


दिल्ली पुलिस में तैनात एक कांस्टेबल थान सिंह ने भी पहल करते हुए गरीब बच्चों के लिए पाठशाला लगा दी. कांस्टेबल थान सिंह की ये पाठशाला लाल किले के पास एक मंदिर परिसर में लगती है. उनकी कक्षा में काफी संख्या में गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं. कांस्टेबल थान सिंह इन बच्चों को किताब-कापी, पेंसिल भी खुद से ही मुहैया कराते हैं. अपनी पाठशाला में थान सिंह इन मासूम बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा नैतिक मूल्यों के विषय में भी बताते हैं और उन्हे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.


महामारी के पहले से लगा रहे हैं पाठशाला


कांस्टेबल थान सिंह बताते हैं कि, वे महामारी से पहले से ही गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं लगा रहे हैं. वे कहते हैं कि कोरोना संकट में जब लॉकडाउन किया गया तो उन्होने भी एहतियात के तौर पर अपनी पाठशाला को बंद कर दिया था. लेकिन जब उन्होने देखा की गरीब परिवारों के बच्चे ऑनलाइन क्लासेज लेने में सक्षम नहीं हैं तो उन्होने अपनी पाठशाला को दोबारा शुरू कर दिया ताकि ये बच्चे किसी बुरी संगत में न पड़ें. उनकी कक्षाओं में भाग लेने वाले ज्यादातर छात्र क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों के बच्चे हैं.

2010 में कांस्टेबल भर्ती हुए थे


मूल रूप से दिल्ली के निहाल विहार के रहने वाले थान सिंह 2010 में कांस्टेबल बने थे. इन दिनों कोतवाली थाना एरिया में लालकिला चौकी में तैनात है. लाल किले के अंदर की बीट थान सिंह के पास है. बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखऩे वाले थान सिंह कहते हैं कि उन्होने स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर अपनी पढ़ाई की है. नौकरी लगने से पहले उन्होने पढ़ाई के साथ मेहनत मजदूरी भी की है. इसलिए वे जानते हैं कि गरीब परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा कितनी मायने रखती हैं ताकि वे पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवार सकें. यकीनन थान सिंह जैसे लोग अंधकार में 'प्रकाश' की उस किरण के समान हैं जो गरीब बच्चो की जिंदगी में शिक्षा का उजाला करने का बीड़ा उठाए हुए हैं.


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