नई दिल्ली: कोरोनो काल मे हर चीज़ का तरीका बदल गया है. रहन-सहन, खान-पान के तरीके से लेकर काम-काज और पढ़ाई-लिखाई के तरीकों तक में बदलाव आ गया है. इस दौरान सबसे ज़्यादा असर जिन चीजों पर पड़ा है उनमें से एक है बच्चों की पढ़ाई पर.


स्कूल बंद हैं और ऑनलाइन क्लासेज के ज़रिए पढ़ाई हो रही है. पढ़ाई के इस तरीके से घर बैठकर बच्चों को पढ़ाया और कोरोना संक्रमण से बचाया तो जा सकता है, लेकिन समस्या है उस तबके के बच्चों के लिये जिनके माता पिता स्मार्टफोन खरीदने और इंटरनेट कनेक्शन का बिल भरने में सक्षम नहीं हैं. लेकिन बदलाव और परेशानी की कई कहानियों के बीच कुछ ऐसे चेहरे और कहानियां भी हैं जो ये विश्वास पैदा करती हैं कि इंसानियत के बल हम इस महामारी से जंग जीत सकते हैं.


ऐसी ही एक कहानी है कहानीकार और शायर अंकित गुप्ता की. जिन बच्चों के पास पढ़ने के लिये स्मार्टफोन नहीं हैं, ऐसे बच्चों की मदद का ज़िम्मा अंकित ने उठाया है. अंकित ने अब तक क्राउड फंडिंग के ज़रिए 75 स्मार्टफोन फोन गरीब तबके के बच्चों को उपलब्ध कराए हैं.  अब उनका लक्ष्य करीब 250 स्मार्टफोन के लिए फंड जुटाना है और ये काम उन्होंने शुरू भी कर दिया है. फंड जुटाने और ज़रूरतमंदों तक पहुंचने में अंकित को सोशल मीडिया से काफी मदद मिली. अब कई स्कूलों के अधयापकों ने भी उनसे संपर्क किया है ताकि उनके यहां पढ़ रहे बच्चों को भी स्मार्टफोन मिल सके.


इन बच्चों की मदद करने की कैसे सोची इसके जवाब में अंकित अपने शायर वाले लहज़े में अपना ही लिखा हुआ ही एक शेर पढ़ते हैं, "मजदूर भी रातों को सोएगा चैन से, ऐ हुकूमत तेरा वादा किधर गया?" अंकित का कहना है कि हर मां-बाप का सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनके बच्चे अच्छा पढ़ें और खुश रहें. लेकिन जिन मां बाप के बच्चे चैन से नहीं रह पा रहे हैं, खाना नहीं खा पा रहे हैं, पढ़ नहीं पा रहे हैं तो वो मजदूर कैसे चैन से रहेंगे. अगर इन तक खाना नहीं पहुंचा, ये सुविधाएं नहीं पंहुची कि वो ऑनलाइन क्लासेज़ में पढ़ सके तो कैसे ये बच्चे पढ़ लेंगे.  सरकार को ये सोचना चाहिए था कि ये बच्चे कैसे पढ़ेंगे. इसलिए अपनी तरफ से जो मैं कर सकता हूं कर रहा हूं.


अंकित का कोई एनजीओ नहीं है. वह क्राउड फंडिंग के ज़रिए अभी तक 75 बच्चों को स्मार्टफोन दे चुके है. अंकित का कहना है, "जब लॉकडाउन हुआ तब सारे स्कूल बंद हो गए और सबसे ज्यादा दिक्कत गरीब परिवार के बच्चों को आई, क्योंकि ऑनलाइन क्लासेज शुरु हो गई.   जिन परिवारों के पास राशन नहीं था खाने को दो वक्त की रोटी नहीं थी उनके पास मोबाइल होना एक मुश्किल बात थी. वो स्मार्टफोन कैसे खरीदते और इंटरनेट पैक कैसे डलवाते. हमने ऐसे बच्चों के बारे में पता किया और उन तक स्मार्टफोन स्मार्टफोन पहुंचाने की पहल की ताकि बच्चों की पढ़ाई चल सके.


अंकित ने बताया कि फोन के लिए पैसा टि्वटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक के ज़रिए इकठ्ठा करना शुरू किया. जिनको हम जानते नहीं है ऐसे भी कई लोगों ने पैसे डोनेट किए. सबसे अहम चीज रही सोशल मीडिया जिसके जरिए हम लोगों से कनेक्ट हुए, कई स्कूलों से कनेक्ट हुए और बच्चे भी ऐसे कई सोशल मीडिया पर मिले जिनको फोन की जरूरत थी. अभी करीब 200-250 और लोगों की रिक्वेस्ट है स्मार्टफोन की. हम कोशिश कर रहे हैं कि क्राउड फंडिंग के जरिए इसको पूरा कर दें."


जिन बच्चों तक अंकित के दिए स्मार्टफोन पहुँचे हैं उनमें से एक है 7 साल का फैज़ल जो दिल्ली नगर निगम के एक स्कूल के दूसरी कक्षा का छात्र है. उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर इलाके में एक कमरे के किराए के मकान में फैज़ल अपने माता-पिता और बड़ी बहन के साथ रहता है. पिता पेशे से मजदूर हैं और प्लास्टिक मोल्डिंग का काम करते हैं. फैज़ल को 4 दिन पहले ही स्मार्टफोन मिला है और वो पूरी रुचि के साथ अंग्रेज़ी के कोर्स मटीरियल को फोन पर पढ़ रहा है. फैज़ल को बड़े होकर डॉक्टर बनना है.


फैज़ल की मां नज़मा बताती हैं कि फोन नहीं था तो पढ़ाई में काफी दिक्कत थी.  जब स्कूल शुरू हुए तो हफ्ते में एक बार स्कूल से फोटो कॉपी करा कर सारा काम लेकर आते थे. पढ़ाई पीछे हो जाती थी. जबसे फोन आ गया है तो काफी मदद हो गई है. सारा काम स्कूल का फोन पर आ पर आ जाता है. फैज़ल की बड़ी बहन जो छठी कक्षा में है उसका काम भी अब फोन पर व्हाट्सएप पर टीचर भेज देती हैं. घर पर पहले पुराना बटन वाला फोन था जो फैज़ल के पिता साथ ले जाया करते थे. अब उसी फोन का सिम निकाल कर स्मार्टफोन में डाल दिया है. अब बच्चे इसी से पढ़ाई कर रहे हैं.


फैज़ल के माता पिता को अब इस बात की संतुष्टि है कि दोनों बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर पा रहे हैं. अंकित जैसे लोगों की मदद से फैज़ल जैसे अन्य तमाम बच्चों का डॉक्टर, इंजीनियर और अफसर बनने का सपना पूरा हो सकता है. ये दिखाता है कि कैसे एक छोटी सी कोशिश हमारे आने वाले भविष्य को संवार सकती है.


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