कोरोना का कहर दुनिया भर में भारी तबाही लेकर आया है. इसने हर आदमी के जीवन को थाम दिया है लेकिन जिसे इसका संक्रमण होता है उसकी आर्थिक स्थिति तो बर्बाद ही हो जाती है. अगर COVID-19 के कारण ICU में भर्ती होना पड़ता है तो औसतन भारतीय को सात महीनों की सैलरी या इससे ज्यादा की सैलरी कुछ ही दिनों में खत्म हो जाती है. असंगठित क्षेत्र के कामगारों को तो इस स्थिति में साल भर से ज्यादा की कमाई खर्च करनी पड़ती है. यह भयावह सच एक रिसर्च में सामने आया है. कैजुअल वर्कर के लिए कई महीनों की सैलरी चुकानी पड़ती है. ऐसे में परिवार के ऊपर आर्थिक बोझ का संकट खड़ा हो जाता है.    


कैजुअल वर्कर की एक सप्ताह की कमाई में आरटीपीसीआर टेस्ट 
Public Health Foundation of India और Duke Global Health Institute ने मिलकर इस तरह की पहली रिसर्च की है जिसमें कोरोना के कारण परिवार पर आए आर्थिक बोझ का आकलन किया जा रहा है. इस रिसर्च में पाया गया कि निजी अस्पतालों में RT-PCR टेस्ट का खर्च 2,200 रुपये है जो किसी कैजुअल वर्कर की एक हफ्ते की कमाई के बराबर है. बीमारी के कारण एक से अधिक टेस्ट कराने पड़ते हैं और परिवार के दूसरे सदस्यों का भी टेस्ट कराना पड़ता है. इससे परिवार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है. रिसर्च के मुताबिक अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक कोरोना की टेस्टिंग और इलाज पर परिवारों को 34,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करन पड़ा जबकि इसी अवधि के दौरान सरकार ने इन चीजों पर 30 हजार करोड़ रुपये खर्च किए. इसमें सरकार द्वारा तय कीमतों का इस्तेमाल किया गया है. अस्पतालों में इलाज का खर्च बहुत ज्यादा है और समाज का एक बड़ा तबका इसे उठाने की स्थिति में नहीं है.


अस्पताल में आइसोलेशन पर 67 हजार रुपये खर्च
रिसर्च के मुताबिक कोविड संक्रमण होने पर अस्पताल में आइसोलेशन का औसत खर्च 67,470 रुपये है जबकि होम आइसोलेशन पर खर्च 829 रुपये है. अगर संक्रमण के कारण किसी को आईसीयू में भर्ती होना पड़ता है तो इसपर 128,110 रुपये का खर्च आता है. इसका मतलब यह हुआ कि स्थायी कर्मचारियों को हॉस्पीटल आइसोलेशन पर अपनी सैलरी में से 124 दिनों का वेतन खर्च करना पड़ेगा. दूसरी तरफ अगर व्यक्ति खुद कोई काम करता है तो उसे 170 दिन की कमाई इस पर खर्च करनी होगी. जो लोग कैजुअल यानी असंगठित क्षेत्र में मजदूरी करते हैं उन्हें तो 257 दिनों की कमाई इसके लिए खर्च करने होंगे. 


51 प्रतिशत नियमित वेतनभोगी आईसीयू का खर्च उठाने में असमर्थ
रिसर्च के मुताबिक आईसीयू में इलाज का खर्च 86 फीसदी कैजुअल वर्कर्स की सालाना इनकम से अधिक है. यानी उसे 481 दिनों की कमाई आईसीयू के लिए चुकानी होगी. इसी तरह यह 50 फीसदी वेतनभोगियों की सालाना इनकम और स्वरोजगार में लगे दो-तिहाई लोगों की सालाना इनकम से अधिक है. यहां तक कि अस्पताल में आइसोलेशन का खर्च 43 फीसदी से अधिक कैजुअल वर्कर्स की सालाना इनकम से अधिक है. यह स्वरोजगार में लगे एक चौथाई लोगों और 15 फीसदी सैलरीड लोगों की सालाना इनकम से अधिक है. यानी अगर किसी वेतनभोगी लोगों को आसीयू में जाना पड़े तो उसे इसपर 318 दिनों का वेतन खर्च करना होगा. रिसर्च में पाया गया कि 51 प्रतिशत नियमित कर्मचारी एक साल के अपने वेतन से आईसीयू का खर्च नहीं उठा सकेगा जबकि इनमें से 15 प्रतिशत तो हॉस्पीटल आइसोलेशन का खर्च भी उठाने में असमर्थ होगा. 


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