नई दिल्ली: एक महिला किसी की संपत्ति या गुलाम नहीं है, उसे पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक केस में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. एक शख्स ने कोर्ट में याचिका दायर की थी, इसमें कहा गया था कि कोर्ट उसकी पत्नी को दोबारा उसके साथ रहने के लिए आदेश दे.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि तुम्हें क्या लगता है? एक महिला क्या कोई संपत्ति है जिसके लिए हम आदेश दे सकते हैं. क्या पत्नी कोई गुलाम है जिसे तुम्हारे साथ रहने का आदेश दिया जा सकता है.
दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है. अप्रैल 2019 में फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह ऐक्ट के सेक्शन 9 के तहत पति के हक में फैसला सुनाया था. महिला ने दावा किया था कि उसका पति उसे साल 2013 में शादी बाद से ही दहेज के लिए प्रताड़ित करता है. कोर्ट ने पति को 20 हजार रुपये महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. इसके बाद पति ने दांपतिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की थी.
शख्स ने कोर्ट के फैसले के बाद हाई कोर्ट में गुहार लगायी. शख्स की दलील थी कि जब वो अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए तैयार है तो फिर गुजारा भत्ता क्यों दिया जाए? हाई कोर्ट इस याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद शख्स ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए याचिका खारिज कर दी. वहीं इस मामले में महिला की ओर से दलील दी गयी थी कि पति गुजारा भत्ता की राशि से बचने के लिए इस तरह का खेल खेल रहा है. महिला के वकील ने कहा कि गुजारा भत्ता देने के आदेश बाद ही पति ने फैमिली कोर्ट का रुख किया.
ये भी पढ़ें: कोरोना टीकाकरण के दूसरे चरण का दूसरा दिन, 74% लोगों ने निजी अस्पताल में लगवाया टीका
कोरोना टीकाकरण के दूसरे चरण में मांग बढ़ी, सरकार ने दी ज्यादा निजी अस्पतालों को अनुमति