नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उन आशंकाओं को खारिज कर दिया कि आधार योजना से नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है. कोर्ट ने कहा कि नामांकन प्रक्रिया में न्यूनतम आंकड़ा एकत्र किया गया था. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और खुद अपने लिये फैसला लिखते हुए जस्टिस ए के सीकरी ने कहा कि पुतलियों और उंगलियों के निशान के तौर पर बेहद मामूली बायोमीट्रिक आंकड़े जुटाए गए हैं. प्रमाणीकरण की प्रक्रिया इंटरनेट पर सुलभ नहीं है.
ऐसा कोई कानून नहीं है जो इन कार्रवाई के लिये अधिकृत करे
उन्होंने याचिकाकर्ताओं के उस प्रतिवेदन से भी सहमति नहीं जताई कि आधार परियोजना जुटाई गई, संरक्षित और साझा की गई जनसांख्यिकी और बायोमीट्रिक सूचना के संदर्भ में निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है. ऐसा कोई कानून नहीं है जो इन कार्रवाई के लिये अधिकृत करे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार अधिनियम गरीब और वंचित व्यक्तियों के लिये बेहतर जिंदगी जीने और स्वतंत्रता को वास्तव में सुरक्षित करने की कोशिश करता है.
सब्सिडी और लाभों की आपूर्ति के लिए आधार जरूरी- कोर्ट
पीठ ने कहा, ''डिजिटल पहचान के जरिये लक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करने से यह न सिर्फ राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त पहचान उपलब्ध कराता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करने का भी प्रयास करता है कि भारत के सार्वजनिक खजाने/समेकित निधि की सहायता से सेवाओं, सब्सिडी और लाभों की आपूर्ति हो.''
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