AADHAAR: क्या है आधार एक्ट की धारा 57, जिसे सरकार ने किया रद्द
आधार को बैंक खाता नंबर से लिंक करने की अनिर्वाता को भी सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि आयकर दाखिल करने और PAN को आधार के साथ लिंक करना जरूरी है.
नई दिल्ली: आधार की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैद्य माना है. सबसे बड़ी बात यह रही कि आधार कानून की धारा 57 को खत्म कर दिया है.
आधार की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए आधार की कानूनी मान्यता बरकरार रखी है. लेकिन आधार एक्ट के कई प्रावधानों में बदलाव किए गए है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट की धारा 57 को रद्द कर दिया. प्राइवेट कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकती हैं. आधार को बैंक खाता नंबर से लिंक करने की अनिर्वाता को भी सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि आयकर दाखिल करने और PAN को आधार के साथ लिंक करना जरूरी है.
धारा 57 के अनुसार सिर्फ राज्य ही नहीं बल्कि बॉडी कॉरपोरेट या फिर किसी व्यक्ति को आइडेंटिफिकेशन के लिए आधार कार्ड मांगने का अधिकार नहीं है. इस प्रावधान के तहत मोबाइल कंपनी, प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर्स के पास वैधानिक सपोर्ट था जिससे वो पहचान के लिए आपका आधार कार्ड मांगते थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है कि आधार कानून को लोकसभा अध्यक्ष ने धन विधेयक (मनी बिल) बताने का सही निर्णय किया क्योंकि 'यह सब्सिडी के लक्षित वितरण' से जुड़ा है जिसके लिये धन भारत की संचित निधि से आता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की संविधान पीठ ने आधार अधिनियम की धारा 57 का उल्लेख किया था जो कहती है 'राज्य या कोई निगम या व्यक्ति' आधार संख्या का इस्तेमाल 'किसी भी उद्देश्य के लिये किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने में कर सकता है. '
पीठ ने संकेत दिया था कि आधार कानून को धन विधेयक नहीं कहा जा सकता है. पीठ ने यह टिप्पणी तब की थी जब अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम समेत वकीलों की दलीलों का जवाब दे रहे थे. चिदंबरम का कहना था कि आधार को किसी भी तरीके से लोकसभा अध्यक्ष को धन विधेयक नहीं बताना चाहिये था क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 110 (धन विधेयक की परिभाषा) की शर्तों को पूरा नहीं करता है.
वेणुगोपाल ने आधार अधिनियम, 2016 की प्रस्तावना और कई अन्य प्रावधानों का उल्लेख किया और कहा था कि शब्द 'सब्सिडी के लक्षित वितरण' में धन के खर्च पर विचार किया गया है. उन्होंने कहा था कि, 'भारत की संचित निधि से हजारों करोड़ रुपये खर्च किये जाने हैं. यह अपने आप में इसे (कानून को) संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक के दायरे में लाता है.'
पीठ ने कहा था कि, 'धारा 57 के तहत कोई लाभ और सब्सिडी का वितरण नहीं है.' वेणुगोपाल ने संविधान के अनुच्छेद 110 (1) (जी) का उल्लेख किया था जिसमें 'कोई मामला' शब्द का जिक्र है और आधार कानून इस परिभाषा के भीतर आता है और इसे धन विधेयक बताकर सही किया गया. मार्च 11 को आधार बिल को लोकसभा में पेश किया गया जहां स्पीकर ने इसे धन विधेयक की तरह पेश किया था. इसके बाद इसे राज्यसभा में उतारा गया. इसके बाद राज्य सभा ने 16 मार्च को 5 संशोधन के साथ इसे वापस भेज दिया. लेकिन इसे लोकसभा ने अस्वीकार किया जिसके बाद आधार एक्ट को 2016 में पास किया गया.
'आधार का उद्देश्य सेवाओं की डिलीवरी'
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि सब्सिडी की लक्षित डिलीवरी का मतलब है कि देश के समेकित निधि से खर्च होना. ये संविधान की धारा 110 के तहत भी आता है. भले ही ये पहले से मौजूद है लेकिन आधार एक्ट का मुख्य उद्देश्य सेवाओं और लाभों की डिलीवरी करना है. आधार एक्ट की धारा 7, 24 और 25 संविधान की धारा 110 के तहत आते हैं और इस एक्ट का एक भी प्रावधान गैरजरुरी या असंबद्ध नहीं है.