जर्मनी-चीन के बाद अब भारत में भी चलेगी हाईड्रोजन ट्रेनें, जानें क्या है ये ट्रेन और इनका रूट
हाइड्रोजन से चलने वाली सभी ट्रेनों को 'मेक इन इंडिया' योजना के तहत भारत में ही बनाया जाएगा. हाइड्रोजन ट्रेनों के चलने से देश में हजारों नई नौकरियों के अवसर मिलने की उम्मीद है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट में रेलवे के लिए 2.41 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रेलवे को आवंटित बजट पर खुशी जाहिर करते हुए हाइड्रोजन ट्रेनों की घोषणा की. उन्होंने कहा कि एक हाइड्रोजन ट्रेन तैयार है और दिसंबर 2023 तक ये ट्रेन सेवाएं देना भी शुरू कर देगी.
हाइड्रोजन से चलने वाली सभी ट्रेनों को 'मेक इन इंडिया' योजना के तहत भारत में ही बनाया जाएगा. हाइड्रोजन ट्रेनों के चलने से देश में हजारों नौकरियां पैदा होंगी. हाइड्रोजन ट्रेन हाइड्रोजन ईंधन सेल से चलेगी. ये ट्रेन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बिल्कुल भी नहीं करेगी. आगामी हाइड्रोजन संचालित ट्रेनों को वंदे मेट्रो के नाम से जाना जाएगा.
क्या होती हैं हाइड्रोजन ट्रेनें
हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों को हाइड्रेल भी कहा जाता है. आसान भाषा में हाइड्रोजन ट्रेन वह है जो हाइड्रोजन का इस्तेमाल ईंधन के रूप में करती है. यानी इन ट्रेनों में इंजन के तौर पर हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है. हाइड्रोजन ट्रेनें कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, या पार्टिकुलेट मैटर जैसे नुकसानदायक गैंसों का उत्सर्जन नहीं करती हैं. यानी हाइड्रोजन ट्रेने पुरानी ट्रेडिशनल ट्रेनों के मुकाबले इंवॉरमेंट फ्रेंडली होती हैं. साथ ही हाइड्रोजन गैसों को काफी नेचुरल तरीके से बनाया जा सकता है.
साफ है कि हाइड्रोजन ट्रेने भारतीय रेलवे को ग्रीन इंडिया का चेहरा बनाएंगी. लेकिन इन ट्रनों को बनाने में सबसे बड़ी मुश्किल इनको बनाने में लगने वाली भारी रकम है.
डीजल इंजन के मुकाबले बहुत मंहगी है ये ट्रेनें
रिसर्च और रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के मुताबिक, भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत लगभग 492 रुपये प्रति किलोग्राम है. इस वजह से, ईंधन सेल बेस्ड हाइड्रोजन इंजन के संचालन की लागत डीजल इंजन के मुकाबले करीब 27 फीसदी ज्यादा होगी.
अश्विनी वैष्णव ने इस मामले में जानकारी देते हुए कहा था कि भारतीय रेलवे उत्तर रेलवे कार्यशाला में हाइड्रोजन ईंधन आधारित ट्रेन का प्रोटोटाइप बना रहा है. जिसका परीक्षण हरियाणा में सोनीपत-जींद खंड पर किया जाएगा. वंदे भारत ट्रेनों के डेवलपमेंट के साथ लगभग 1275 स्टेशनों को दोबारा से बनाया जाएगा, ताकि इन ट्रेनों को किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो.
रेलवे के लिए सरकार का बजट सराहनीय
गौतम सोलर के प्रबंध निदेशक गौतम मोहनका ने ग्रीन इंडिया के लिए बजट आवंटन की सराहना की थी. उन्होंने कहा था कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ग्रीन इंडिया ट्रेनों के लिए 35000 करोड़ रुपये की पुंजी निवेश करने पर राजी है. ये रकम लक्ष्य को हासिल करने में बड़ा कदम साबित होगा.
मोहनका ने ये भी कहा कि वित्त मंत्री ने 2030 तक 5 एमएमटी के वार्षिक उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए 19000 करोड़ रुपये पर सहमति जताई है. जो इस साल भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन शुरू करने के भारतीय रेलवे की तरफ से उठाया गया पहला कदम है.
भारत में किन राज्यों में चलेगी ये ट्रेने
हाइड्रोजन से चलने वाली वंदे मेट्रो ट्रेने शुरुआत में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरि माउंटेन रेलवे, कालका शिमला रेलवा वाई, माथेरान हिल रेलवे, कांगड़ा घाटी, बिलमोरा वाघई और मारवाड़-देवगढ़ मडरिया जैसी जगहों पर ही चलेगी. रेल मंत्री ने ये कहा कि बाद में इन ट्रेनों का विस्तार देश के अलग अलग राज्यों में भी किया जाएगा.
हाइड्रोजन या ग्रीन ट्रेनों की खासियत
हाइड्रोजन संचलित ट्रेनें कम शोर करती हैं . साथ ही दूसरी ट्रेनों की तरह आपको इसके डीजल से निकलने वाले धुएं से नुकसान और हवा में उसकी गंध भी नहीं फैलेगी. इससे निकलने वाला धुंआ नाइट्रोजन ऑक्साइड का भी उतसर्जन नहीं करता है. नाइट्रोजन ऑक्साइड सेहत के लिए बहुत खतरनाक गैस माना जाता है.
जर्मनी में पहले से ही चल रही हैं हाइड्रोजन ट्रेनें
जर्मन सरकारी एजेंसियों ने देश में हाइड्रोजन ट्रेन चलाए जाने के लिए कई योजनाएं शुरू की थी. इन योजनाओं पर अब तक 92 मिलियन खर्च किए जा चुके हैं. जर्मनी में 2018 में क्षेत्रीय रेल लाइनों पर हाइड्रोजन संचालित ट्रेनों का परीक्षण शुरू किया गया था. इसके बाद जर्मनी ने डीजल पर चलने वाली अपनी सभी 126 ट्रेनों को चरणबद्ध तरीके से शुरू करने की योजना बना रहा है. फिल्हाल बडे़ शहरों के लिए जर्मन सरकार ने 27 ट्रेनों को चलाए जाने का आदेश दिया है.