नई दिल्लीः दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच वोटकटवा बनाम सीटकटवा की राजनीति शुरू हो गई है. दरअसल इसकी शुरुआत आप के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को दिल्ली में वोटकटवा पार्टी बता कर की. इसके पलटवार के तौर पर दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने आम आदमी पार्टी को सीटकटवा करार दे दिया. दिलचस्प ये है कि दोनों पार्टी के नेता तीखी बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन बीजेपी के खिलाफ दोनों के गठबंधन को लेकर भी लगातार कयास लगाए जाते रहे हैं.

शनिवार को एक चुनावी सभा में केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस को वोट देने का मतलब है बीजेपी की मदद करना क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है. इसके जवाब में रविवार को अजय माकन ने एक जनसभा में कहा कि आम आदमी पार्टी अगर 1-2 सीट जीत भी जाए तो उनका कोई प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं है जबकि कांग्रेस दिल्ली में सीट जीतती है तो उससे राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं बनती हैं. माकन ने तंज कसते हुए कहा कि इस बात की कौन ज़िम्मेदारी लेगा कि बिहार के नीतीश कुमार की तरह कल को आप सांसद नरेंन्द्र मोदी को फिर प्रधान मंत्री बनाने में न जुट जाएं क्योंकि आप पार्टी ने ही कहा था 'मोदी फॉर पीएम एंड केजरीवाल फॉर सीएम'.

आपको याद दिला दें कि पिछली दिल्ली विधानसभा चुनाव के एलान के तत्काल बाद आम आदमी पार्टी की वेबसाइट पर 'मोदी फॉर पीएम एंड केजरीवाल फॉर सीएम' वाला नारा लिखा गया था. हालांकि चर्चा आने के तुंरत बाद आप ने ना केवल इस नारे से खुद को किनारा किया बल्कि वेबसाइट से नारे के साथ-साथ नारा लिखने वाले कार्यकर्ता को भी हटा दिया था.

दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं और 2014 में बीजेपी ने सभी सीटें जीती थी. 2009 में सभी सातों सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही दिल्ली में तीसरे नम्बर की पार्टी बन गई है. इसके बाद 2014 लोकसभा में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया तो 2015 विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती. 2017 नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने अपना कब्जा बरकरार रखा और तीनों निगमों में आप विपक्ष में बैठी. हालांकि नगर निगम चुनाव से लेकर दो विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस का ग्राफ ऊपर गया है.

अब नजरें 2019 लोकसभा पर टिकी हैं कि बीजेपी को मुख्य चुनौती आप और कांग्रेस में से कौन देगा? फिलहाल मुख्य मुकाबला बीजेपी और आप में नजर आ रहा है लेकिन कांग्रेस को लगता है कि अगर वो पांचों विधानसभा चुनावों खास तौर पर राजस्थान और मध्यप्रदेश में वो जीत दर्ज करती है और यूपी, बिहार, महाराष्ट्र में उसने महागठबंधन कर लिया तो फिर दिल्ली में भी बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाले वोट उसे ही मिलेंगे क्योंकि केंद्र सरकार के चुनाव में आप की कोई बिसात ही नहीं है.

बहरहाल एक संभावना ये भी जताई जाती रहती है कि दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस और आप साथ आ सकते हैं. लेकिन सीट बंटवारे को लेकर बात बन पाएगी इसकी उम्मीद कम ही है. आप अगर दिल्ली में कांग्रेस के लिए सीट छोड़ेगी तो पंजाब में वो कांग्रेस से ऐसी ही उम्मीद करेगी. जहां तक पंजाब का सवाल है तो वहां की कांग्रेस इकाई ने किसी भी गठबंधन से साफ इंकार कर दिया है. गठबंधन से इंकार दिल्ली में कांग्रेस और आप के नेता भी करते हैं. लेकिन सूत्रों के मुताबिक दोनों पार्टी का नेतृत्व संपर्क में है और गठबंधन को लेकर आखिरी फैसला राहुल गांधी को ही करना है.

लेकिन दिल्ली में केजरीवाल और मकान जिस तरह एक दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाजी कर रहे हैं उसके संकेत तो यही हैं कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो फिर बीजेपी विरोधी 'लहर' को अपने पाले में करने का माहौल अभी ये बनाया जा रहा है. जहां तक बीजेपी का सवाल है तो उनकी सारी रणनीति 'ब्रांड मोदी' पर निर्भर है. उनके सांसदों की छवि बहुत लोकप्रिय नहीं है लेकिन आप और कांग्रेस अलग लड़े तो फिर 2014 का नतीजा दुहराया भी जा सकता है और अगर विपक्ष का गठबंधन हुआ तो फिर खाता खोलने में भी मुश्किल आएगी.
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