Manish Sisodia Bail: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धनशोधन के मामलों में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया को शुक्रवार (09 अगस्त) को जमानत दे दी. अब वो तिहाड़ जेल से बाहर आ चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 17 माह से हिरासत में हैं. शीर्ष अदालत ने अधीनस्थ अदालतों की आलोचना करते हुए कहा कि मामले की सुनवाई शुरू हुए बिना लंबे समय तक जेल में रखे जाने से वह शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित हुए हैं.


1. जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि अब समय आ गया है कि निचली अदालतें और हाई कोर्ट इस सिद्धांत को स्वीकार करें कि 'जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है.”  पीठ ने कहा कि सिसोदिया की समाज में गहरी पैठ है और उनके देश छोड़कर जाने की कोई आशंका नहीं है.


2. सिसोदिया की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि दोनों मामलों से संबंधित लगभग 69,000 पन्नों के दस्तावेज हैं. पीठ ने कहा, ‘‘इसमें शामिल दस्तावेजों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को उक्त दस्तावेजों की जांच के लिए उचित समय लेने का अधिकार नहीं है.’’


3. कोर्ट ने कहा, ‘‘निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का लाभ उठाने के लिए, अभियुक्त को दस्तावेजों की जांच के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.’’ पीठ ने कहा कि सीबीआई और ईडी के दर्ज दोनों मामलों में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यद्यपि विभिन्न आरोपियों के विभिन्न आवेदन दायर किए गए हैं, सिसोदिया ने सीबीआई मामले में केवल 13 और ईडी मामले में 14 आवेदन दायर किए हैं. पीठ ने कहा कि इन सभी आवेदनों को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया था. त्वरित सुनवाई और स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है साथ ही किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक कैद में रखने को ‘‘बिना सुनवाई के सजा’’ नहीं बनने दिया जाना चाहिए.


4. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया त्वरित न्याय के अपने अधिकार से वंचित हैं क्योंकि वह लगभग 17 महीने से जेल में हैं और सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है. पीठ ने अपने 38 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘हम पाते हैं कि लगभग 17 महीने तक जेल में रखने और सुनवाई शुरू न होने के कारण अपीलकर्ता (सिसोदिया) को शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है.’’


5. पीठ ने कहा, “इस अदालत का मानना है कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण अधिकार हैं. इन अधिकारों से इनकार करते समय, निचली अदालतों के साथ-साथ हाई कोर्ट को भी इस बात को उचित महत्व देना चाहिए था.”


6. पीठ ने पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि समय के साथ कोर्ट ने पाया कि निचली अदालतें और हाई कोर्ट कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जो कि संविधान की ओर से प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है.


7. पीठ ने कहा, ‘‘अब, अपीलकर्ता को फिर से निचली अदालत और इसके बाद हाई कोर्ट भेजना और फिर इस अदालत में आने के लिए बाध्य करना हमारे विचार से, उसे ‘सांप और सीढ़ी’ का खेल खेलने पर मजबूर करने जैसा होगा.’’ पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत और हाई कोर्ट पहले ही अपना निर्णय दे चुके हैं और हमारे विचार में अपीलकर्ता को दोबारा निचली अदालत और हाई कोर्ट में भेजना महज औपचारिकता होगी.’’


8. दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार व धनशोधन मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों ने गिरफ्तार किया था. दोनों मामलों में शीर्ष अदालत की तरफ से जमानत मिलने पर आज 10 लाख रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही धनराशि के दो निजी मुचलके भरने के बाद वो जेल से बाहर आ चुके हैं.


9. जजों ने जमानत की शर्तें तय करते हुए कहा कि उन्हें अपना पासपोर्ट विशेष अधीनस्थ अदालत में जमा कराना होगा. इसके अलावा वह न तो किसी गवाह को प्रभावित करने का प्रयास करेंगे और न ही सबूतों से छेड़छाड़ करेंगे. साथ ही उन्हें प्रत्येक सोमवार और गुरुवार को पूर्वाह्न 10 से 11 बजे के बीच जांच अधिकारी के समक्ष पेश होना होगा.


10. पीठ ने कहा कि सीधे सरल और पेचीदा मामलों में भी जमानत न दिए जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिकाओं की बाढ़ सी आ गई है. इससे लंबित मामलों की संख्या और बढ़ गई है. जजों ने कहा कि मुकदमे के शीघ्र पूरा होने की संभावना के तहत सिसोदिया को असीमित समय तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा.


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